विनीत खरे, बीबीसी संवाददाता
कोरोना के लगातार बढ़ते मामलों के कारण तेज़ी से बढ़ी ऑक्सीजन की मांग को देखते हुए भारतीय रेल ने सोमवार रात से ऑक्सीजन एक्सप्रेस ट्रेन की शुरुआत कर दी है। पहली ट्रेन सोमवार रात 8:05 बजे रवाना हुई।
रेल मंत्रालय के एक अधिकारी के मुताबिक पहली ट्रेन मुंबई के कालंबोली रेलवे स्टेशन से खाली कंटेनर लेकर विशाखापट्टनम जाएगी और वहां से रीफ़िल होने के बाद वापस आएगी।
अधिकारी के मुताबिक सात डिब्बों की विशेष रेल के हर डिब्बे में 16 मीट्रिक टन मेडिकल ऑक्सीजन आएगी और इस ट्रेन को आने-जाने में प्राथमिकता दी जाएगी। मंत्रालय के मुताबिक इस ट्रेन के अलावा दूसरी ट्रेनों को भी चलाने की योजना है। भारत में कोविड के करीब 20 लाख ऐक्टिव मामले हैं और एक लाख 78 हज़ार लोगों की मौत हो चुकी है।
ऑक्सीजन की कमी के चलते कितनी मौतें?
देश के कई हिस्सों में अस्पतालों में बिस्तर और दवाइयों के अलावा मेडिकल ऑक्सीजन की किल्लत सामने आई है। कोरोना पीड़ित लोगों के लिए मेडिकल ऑक्सीजन बेहद महत्वपूर्ण होती है।
इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के मुताबिक भोपाल के एक अस्पताल में कथित तौर पर ऑक्सीजन की कमी से छह लोगों को मौत हो गई।
एनडीटीवी के मुताबिक मुंबई के एक अस्पताल में एक दिन में सात लोगों की मौत के बीच ऑक्सीजन की कथित कमी के आरोप लगे।
मेडिकल ऑक्सीजन की सबसे ज़्यादा कमी 12 कोरोना प्रभावित राज्यों में है और ये राज्य हैं- महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, गुजरात, उत्तर प्रदेश, दिल्ली, छत्तीसगढ़, कर्नाटक, केरल, तमिलनाडु, पंजाब, हरियाणा और राजस्थान।
एक तरफ़ मध्य प्रदेश जैसे राज्यों में मेडिकल ऑक्सीजन की मांग को पूरा करने के लिए उत्पादन क्षमता नहीं है, तो दूसरी ओर ऑक्सीजन निर्मित करने वाले राज्य जैसे गुजरात, कर्नाटक और राजस्थान में मेडिकल ऑक्सीजन की मांग बढ़ रही है।
सरकार क्या क़दम उठा रही है?
स्थिति इतनी खराब है कि 50,000 मेट्रिक टन ऑक्सीजन के आयात के लिए कदम उठाए जा रहे हैं। सरकार के एंपावर्ड ग्रुप-2 ने नौ उद्योगों को छोड़कर ऑक्सिजन के औद्योगिक इस्तेमाल पर रोक लगा दी है।
इसके अलावा सरकार ने 162 पीएसए मेडिकल ऑक्सीजन प्लांट स्थापित करने के लिए पैसे मुहैया करवाए हैं।
ये छोटे आकार के अस्थायी ऑक्सीजन बनाने वाले प्लांट होते हैं जिन्हें दूर-दराज़ के इलाकों में ज़रूरत के लिए बनाया जाता है लेकिन विनायक एअर प्रोडक्ट्स प्राइवेट लिमिटेड के राजीव गुप्ता के मुताबिक कोविड के बाद इन प्लांट की ज़रूरत खत्म हो जाएगी।
वो कहते हैं, "इन प्लांट में ऑक्सीजन की शुद्धता 92-93 प्रतिशत होती है जिससे काम चल जाता है और इनकी क्षमता एक से दो मेट्रिक टन की होती है।" लेकिन, आखिर ऑक्सीजन की कमी की स्थिति यहां कैसे पहुंची?
ट्रेन की ज़रूरत क्यों?
जानकार कहते हैं कि भारत में मेडिकल ऑक्सीजन को लेकर समस्या उसकी कमी की नहीं बल्कि उसे ज़रूरत के इलाकों में पहुंचाने की है।
आइनॉक्स एअर प्रोडक्ट्स के डायरेक्टर सिद्धार्थ जैन के मुतबिक कोविड से पहले भारत की मेडिकल ऑक्सीजन पैदा करने की दैनिक क्षमता 6,500 मीट्रिक टन थी जो दस प्रतिशत बढ़कर अभी 7,200 मीट्रिक टन प्रतिदिन हो गई है।
जैन के मुताबिक कोविड से पहले भारत को हर दिन 700 मीट्रिक टन मेडिकल ऑक्सीजन की ज़रूरत होती थी जबकि आज ये दैनिक ज़रूरत बढ़कर करीब 5,000 मीट्रिक टन हो गई है।
जानकारों के मुताबिक चुनौती है मेडिकल ऑक्सीजन को ज़रूरत के इलाकों में पहुंचाना। ऑल इंडिया इंडस्ट्रियल गैसेज़ मैन्युफ़ैक्चरर्स एसोसिएशन के प्रमुख साकेत टीकू कहते हैं, "एक तरफ़ जहां मेडिकल ऑक्सीजन की ज़रूरत महाराष्ट्र में है लेकिन स्टॉक पड़ा हुआ है पूर्वी भारत जैसे राउरकेला, हल्दिया स्टील प्लांट्स में।"
मेडिकल ऑक्सीजन को एक से दूसरी जगह ले जाने के लिए विशेष रूप से तैयार किए टैंकरों की ज़रूरत पड़ती है जिन्हें क्रायोजेनिक टैंकर कहा जाता है। दरअसल, मेडिकल ऑक्सीजन को सिलिंडर और तरल रूप में क्रायोजेनिक टैंकरों में वितरित किया जाता है।
रेल के इस्तेमाल से होगा क्या?
साकेत टीकू के मुताबिक क्रायोजेनिक टैंकरों में तरल ऑक्सीजन को -183 डिग्री सेल्सियस में रखा जाता है, लेकिन किसी ने भी नहीं सोचा था कि आज के हालात में इतनी ज़्यादा मात्रा में मेडिकल ऑक्सीजन की ज़रूरत पड़ेगी।
एक बड़ी कंपनी के अधिकारी के मुताबिक उनकी कंपनी के पास 550 क्रायोजेनिक टैंकर हैं और पिछले साल भर से वो लगातार इस्तेमाल हो रहे हैं। इसके बावजूद सड़क से तरल ऑक्सीजन को एक जगह से दूसरी जगह पहुंचाने में वक़्त लग रहा है। ऐसे में रेल के इस्तेमाल से उम्मीद है कि ऑक्सीजन लाने ले जाने में तेज़ी आएगी।
रेल मंत्रालय के एक अधिकारी के मुताबिक ट्रेन के सहारे ऑक्सीजन लाने ले जाने को लेकर एक नीति बनाई गई है और अगर मांग आए तो रेल मंत्रालय क्रायोजेनिक टैंकर्स के डिज़ाइन और उन्हें बनाने का सोच सकता है।
ऑक्सीजन की कितनी माँग हो रही है?
ऑल इंडिया इंडस्ट्रियल गैसेज़ मैन्युफ़ैक्चरर्स एसोसिएशन के प्रमुख साकेत टीकू के मुताबिक पिछले साल सितंबर का कोविड पीक आते-आते ऑक्सीजन की मांग 3000-3200 मीट्रिक टन प्रतिदिन हो गई थी लेकिन उसके बाद जैसे-जैसे कोविड मरीज़ों की संख्या गिरी, मेडिकल ऑक्सीजन की मांग भी गिरना शुरू हो गई।
यहां बता दें कि जानकारों के मुताबिक इंडस्ट्रियल ग्रेड और मेडिकल ऑक्सीजन में बहुत ज़्यादा फ़र्क नहीं होता और जहां इंडस्ट्रियल ग्रेड ऑक्सीजन 99।5 प्रतिशत साफ़ होती है, मेडिकल ऑक्सीजन 90% से 93% साफ़ होती है।
तो क्या जब कोविड के मामले गिरे तो भारत में ऑक्सीजन की क्षमता को तेज़ी से बढ़ाने के लिए कदम नहीं उठाए जाने चाहिए थे?
आइनॉक्स एअर प्रोडक्ट्स के डायरेक्टर सिद्धार्थ जैन के मुताबिक उनकी कंपनी ने फरवरी में दो हज़ार करोड़ के निवेश से अगले 36 महीनों में आठ नए प्लांट लगाने की घोषणा की थी।
जैन कहते हैं, "भारत ने अपनी क्षमता दस प्रतिशत बढ़ाई है। आइनॉक्स के अलावा किसी दूसरी कंपनी को लिक्विड ऑक्सीजन प्लॉंट लगाने के लिए दो साल लगते हैं।"
क्षमता बढ़ाने के सवाल पर राजीव गुप्ता कहते हैं कि मेडिकल ऑक्सीजन को अकेले अस्पताल के इस्तेमाल के लिए पैदा नहीं किया जा सकता।
वो कहते हैं, "मेडिकल ऑक्सीजन का बड़ा इस्तेमाल करने वाला स्टील उद्योग होता है और स्टील उद्योग की ज़रूरत के हिसाब से मेडिकल ऑक्सीजन के प्लांट लगते हैं।"
उधर साकेत टीकू कोरोना के बढ़ते मामलों से चिंतित हैं। वो आगाह करते हुए कहते हैं, "हमारे पास ऑक्सीजन असीमित मात्रा में नहीं है।" हालांकि, उन्होंने भरोसा दिलाते हुए कहा है, "अभी हमारे पास ऑक्सीजन का स्टॉक उपलब्ध है।"
उन्होंने बताया कि ऑक्सीजन की उपलब्धता बढ़ाने के लिए ऑक्सीजन एक्सप्रेस जैसे कुछ और उपायों पर काम चल रहा है लेकिन वो क्या हैं इस बारे में जानकारी नहीं दी।
ऑक्सीजन का इस्तेमाल कैसे हो?
साकेत टीकू के मुताबिक ज़रूरी है कि ऑक्सीजन का सोच समझकर इस्तेमाल किया जाए। वो कहते हैं कि वो समझ नहीं पा रहे हैं कि एक तरफ़ जहां गुजरात के 60,000 कोरोना मरीज़ों के लिए हर दिन 700-800 मेट्रिक टन मेडिकल ऑक्सीजन की ज़रूरत पड़ती है जबकि 6।5 लाख कोरोना मामलों वाले महाराष्ट्र की दैनिक ज़रूरत 1200 मेट्रिक टन है।
वो कहते हैं, "केरल तो हर दिन 100 मेट्रिक टन ऑक्सीजन का इस्तेमाल भी नहीं कर पा रहा है। हम ये बात स्वास्थ्य मंत्रालय के संज्ञान में लाए हैं और उनसे कहा है कि इसे देखें।"
राजीव गुप्ता के मुताबिक बहुत सारे लोगों ने डर के मारे अपने पास सिलेंडर रख लिये हैं जिससे उनके पास सिलेंडर की कमी हो गई है। पिछले कुछ दिनों में गुजरात के हालात खराब हुए हैं।
मधुराज इंडस्ट्रीज गैसेज़ प्राइवेट लिमिटेड के जिग्नेश शाह के मुताबिक कोविड से पहले जहां गुजरात में निर्मित 1000 मीट्रिक टन ऑक्सीजन में से 150 मीट्रिक टन प्रतिदिन अस्पतालों के पास जाती थी, अब ये मात्रा बढ़कर 850-900 मीट्रिक टन प्रतिदिन हो गई है।
वो कहते हैं, "लोग हाथ पैर जोड़ रहे हैं, एक बॉटल दे दो, दो बॉटल दे दो। हमारी मां मर रही है, हमारे पिताजी मर रहे हैं, हमारी बीवी मर रही है। ऐसी स्थिति है कि खाना गले से उतर नहीं रहा है। ऐसा सोचा नहीं था कि ये दिन आएंगे।"