- कमलेश
कटने के बाद थोड़ा ख़ून बहने के बाद बंद हो जाता है, लेकिन कई लोगों के साथ ऐसा नहीं होता। हीमोफीलिया में ख़ून बहना बंद नहीं होता है। इसमें जान जाने का भी ख़तरा होता है। 17 अप्रैल को हीमोफीलिया डे है जो इस बीमारी को लेकर जागरूकता लाने के लिए मनाया जाता है।
क्या है हीमोफीलिया
ये एक आनुवांशिक बीमारी है जिसमें ख़ून का थक्का बनना बंद हो जाता है। जब शरीर का कोई हिस्सा कट जाता है तो ख़ून में थक्के बनाने के लिए ज़रूरी घटक खून में मौजूद प्लेटलेट्स से मिलकर उसे गाढ़ा कर देते हैं। इससे ख़ून बहना अपने आप रुक जाता है।
जिन लोगों को हीमोफीलिया होता है उनमें थक्के बनाने वाले घटक बहुत कम होते हैं। इसका मतलब है कि उनका ख़ून ज़्यादा समय तक बहता रहता है।
गंगाराम अस्पताल में मेडिसिन कंसल्टेंट डॉ। अतुल गोगिया बताते हैं, ''ये बीमारी अधिकतर आनुवांशिक कारणों से होती है यानी माता-पिता में से किसी को ये बीमारी होने पर बच्चे को भी हो सकती है। बहुत कम होता है कि किसी और कारण से बीमारी हो।''
''हीमोफीलिया दो तरह का होता है। हीमोफीलिया 'ए' में फैक्टर 8 की कमी होती और हीमोफीलिया 'बी' में घटक 9 की कमी होती है। दोनों ही ख़ून में थक्का बनाने के लिए ज़रूरी हैं।''
डॉ। अतुल का कहना है कि ये एक दुर्लभ बीमारी है। हीमोफीलया 'ए' का 10 हज़ार में से एक मरीज़ पाया जाता है और 'बी' के 40 हज़ार में से एक, लेकिन ये बीमारी बहुत गंभीर है और इसे लेकर जागरूकता बहुत कम है।
हीमोफीलिया के लक्षण
इसके लक्षण हल्के से लेकर बहुत गंभीर तक हो सकते हैं। ये ख़ून में मौजूद थक्कों के स्तर पर निर्भर करता है। लंबे समय तक रक्तस्राव के अलावा भी इस बीमारी के दूसरे लक्षण होते हैं।
*नाक से लगातार ख़ून बहता है।
*मसूड़ों से ख़ून निकलता है।
*त्वचा आसानी से छिल जाती है।
*शरीर में आंतरिक रक्तस्राव के कारण जोड़ों में दर्द होता है।
*कई बार हीमोफीलिया में सिर के अंदर भी रक्तस्राव होता है। इसमें बहुत तेज़ सिरदर्द, गर्दन में अकड़न होती उल्टी आती है। इसके अलावा धुंधला दिखना, बेहोशी और चेहरे पर लकवा होने जैसे लक्षण भी होते हैं। हालांकि, ऐसा बहुत कम मामलों में होता है।
हीमोफीलिया के तीन स्तर होते हैं। हल्के स्तर में शरीर में थक्के के बनाने वाले घटक 5 से 50 प्रतिशत तक होते हैं। मध्यम स्तर में ये घटक 1 से 5 प्रतिशत होते हैं और गंभीर स्तर के 1 प्रतिशत से भी कम होते हैं।
ये बीमारी बच्चे के जन्म से भी हो सकती है। कई बार जन्म के बाद ही इसका पता चल जाता है। अगर हीमोफीलिया मध्यम और गंभीर स्तर का है तो बचपन में आंतरिक स्राव के चलते कुछ लक्षण सामने आने लगते हैं। लेकिन, गंभीर स्तर के हीमोफीलिया में खतरा बहुत ज़्यादा होता है। कहीं ज़ोर से झटका लगने पर भी आंतरिक रक्तस्राव शुरू हो सकता है।
लेकिन, अगर बीमारी हल्के स्तर की है तो इसका आसानी से पता नहीं चल पाता। अमूमन जब बच्चे का दांत निकलता है और ख़ून बहना बंद नहीं होता तब इस बीमारी का पता चल पाता है। कई बार घुटने में चोट लगती है और ख़ून अंदर ही जम जाता है जिससे घुटने में सूजन आ जाती है।
क्या है इलाज
एक समय पहले हीमोफीलिया का इलाज मुश्किल था, लेकिन अब घटकों की कमी होने पर इन्हें बाहर से इंजेक्शन के ज़रिये डाला जा सकता है। अगर बीमारी की गंभीरता कम है तो दवाइयों से भी इलाज हो सकता है। अगर माता या पिता को ये बीमारी तो उनसे बच्चे में आने की संभावना होती है। ऐसे में पहले ही इसकी जांच कर ली जाती है।
वहीं, भाई-बहन में से किसी एक को है, लेकिन दूसरे में उस समय इसके लक्षण नहीं है तो आगे चलकर भी ये बीमारी होने की आशंका बनी रहती है।
डॉ. अतुल बताते हैं कि ज़्यादातर मामलों में घटक 8 की कमी पाई जाती है। ऐसे में पहले पता लगाया जाता है कि शरीर में किस घटक की कमी है। अब बाजार में इस तरह के घटक उपलब्ध हैं इसलिए बीमारी का इलाज आसान हो गया है। समय पर इसका पता चल जाने पर इंजेक्शन देकर इलाज हो सकता है।