- डेविड रॉबसन (बीबीसी फ्यूचर)
इस बार के आम चुनाव में किसकी जीत होगी?
अमेठी से राहुल गांधी जीतेंगे या स्मृति ईरानी?
क्या ब्रिटेन इस साल यूरोपीय यूनियन से अलग हो जाएगा?
क्या अमेरिकी संसद इस साल राष्ट्रपति ट्रंप के ख़िलाफ़ महाभियोग चलाएगी?
अबकी बार अमेरिका की डेमोक्रेटिक पार्टी किसी महिला को राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाएगी या किसी पुरुष को?
आप इन सवालों के जवाब कैसे देंगे, ये सिर्फ़ आप की तालीम या अक़्लमंदी पर निर्भर नहीं करता. इसके लिए अभ्यास और आप के सोचने का तरीक़ा भी ज़िम्मेदार होता है. इसे किसी इम्तिहान के पैमाने से नहीं मापा जा सकता. ये सिर्फ़ अभ्यास और क़ुदरती प्रतिभा के मेल से आता है।
जो लोग सटीक अनुमान लगा लेते हैं, उनके लिए ज़िंदगी में तरक़्क़ी करना आसान होता है। अमेरिका में पिछले चार साल से गुड जजमेंट प्रोजेक्ट चल रहा है। इस में शामिल होने वाले लोगों को ऐसे ही सवालों के जवाब देने होते हैं। यानी उन्हें आने वाले वक़्त की घटनाओं के पूर्वानुमान लगाने होते हैं।
इस में शामिल लोग, जिनके अनुमान ज़्यादा सही निकले, वो अलग-अलग उम्र के, महिलाएं और पुरुष दोनों ही थे। वो समाज के अलग-अलग तबक़ों से भी आते हैं। ऐसी ही एक महिला हैं एलेन रिच। वो अमेरिका के मैरीलैंड राज्य की रहने वाली हैं और दवाएं बेचने का काम करती हैं। एलेन की उम्र 60 साल से ज़्यादा है।
गुड जजमेंट प्रोजेक्ट के टूर्नामेंट में शामिल होने के बाद उन्होंने लगातार सही पूर्वानुमान लगाए हैं। मज़े की बात ये है कि वो विश्व की ऐसी घटनाओं का सही पूर्वानुमान लगा लेती हैं, जिनके बारे में उन्हें ज़्यादा जानकारी भी नहीं होती।
एलेन दुनिया की उठा-पटक पर बहुत नज़र नहीं रखतीं। न ही वो गणित में तेज़ रही थीं। लेकिन, कुछ अभ्यास और ट्रेनिंग की मदद से वो पूर्वानुमान लगाने वालों की अव्वल जमात का हिस्सा बन गईं।
कौन लोग बेहतर पूर्वानुमान लगाते हैं?
गुड जजमेंट प्रोजेक्ट के अगुवा फिलिप टेटलॉक अपनी किताब 'सुपर फोरकास्टिंग' में लिखते हैं कि, 'पहेलियां सुलझाने में सबसे तेज़ रहने वालों के अंदर एक क़ुदरती क़ाबिलियत तो होती है। लेकिन, उसके अंदर सवाल पूछने, कुछ बातों पर यक़ीन रखने वालों पर सवाल उठाने का माद्दा नहीं है, तो वो कम अक़्लमंद लोगों से बेहतर पूर्वानुमान नहीं लगा सकेगा।'
हर इंसान में कुछ बातों का पूर्वानुमान लगाने की क्षमता होती है। हालांकि सभी लोग हर मामले में सटीक अटकल लगा लें, ये ज़रूरी नहीं। हो सकता है कि आप शुरुआत में सही पूर्वानुमान न लगा पाएं। लेकिन, अगर आप को सही ट्रेनिंग और अभ्यास का मौक़ा मिले, तो आप भी एक्सपर्ट बन सकते हैं।
सिर्फ़ अपने पढ़े हुए विषय के नहीं, बल्कि हर मसले पर पूर्वानुमान लगाने में आप का कोई सानी नहीं रहेगा। इसके लिए पहली शर्त ये है कि आप को ख़ुले ज़हन का होना पड़ेगा। बुद्धिमानी भरे फ़ैसले लेने के लिए ज़रूरी है कि हम अपनी सोच के क़ैदी न बनें।
हम सब के जीवन में बहुत से मौक़े आते हैं, जब हम दो-राहे पर खड़े होते हैं। कई बार तो विकल्प दो से ज़्यादा भी होते हैं, जिनमें से एक को हमें चुनना पड़ता है। ये फ़ैसला सही निकले, हम इस के लिए बहुत सिर खपाते हैं। बहुत से लोग फ़ौरी फ़ैसले ले लेते हैं। उनके फ़ैसले कभी ग़लत, तो कभी सही निकलते हैं।
सत्रहवीं सदी के फ्रेंच दार्शनिक रेने देकार्त का मानना था कि बहुत अक़्लमंद होना ही सही फ़ैसला लेने की गारंटी नहीं। इसमें तो ग़लती की आशंका और बढ़ जाती है।
देकार्त ने लिखा था कि, 'सबसे बुद्धिमान लोगों में बहुत सारी ख़ूबियों के साथ ढेर सारे ऐब भी होते हैं। जो लोग धीरे-धीरे अपने सफ़र पर आगे बढ़ते हैं। सही दिशा में चलते हैं, वो निश्चित रूप से अपनी मंज़िल तक पहुंचते हैं। उनके मुक़ाबले जल्दबाज़ लोग अक्सर अपने रास्ते से भटक जाते हैं।'
पूर्वानुमान लगाने की क्षमता को और बेहतर कैसे बनाएं
नए दौर में जो मनोवैज्ञानिक रिसर्च हुई हैं, वो बताती हैं कि हम अपने दिमाग़ की पूर्वानुमान लगाने की क्षमता को अभ्यास से और बेहतर बना सकते हैं।
लेकिन, उससे पहले आप को ये जानना चाहिए कि जज़्बाती होकर सोचने से हम अक्सर ग़लत फ़ैसले कर बैठते हैं। ख़ास तौर से मामला हमारी ज़ात, समुदाय या निजी पहचान से जुड़ा हो तो, हम जज़्बाती हो जाते हैं। फिर हम सबूतों के आधार पर फ़ैसला करने के बजाय भावनाओं में बहकर क़दम उठाते हैं।
अगर आप बहुत पढ़े-लिखे और जानकार हैं, तो आप को सामने वाले के तर्क़ स्वीकार नहीं हो पाते। तब भी आप को सही और संतुलित फ़ैसला लेने में दिक़्क़त होती है। आप का तेज़ दिमाग़ आपकी सोच और विचारधारा को ही आगे बढ़ाने का काम करने लगता है।
जलवायु परिवर्तन या ग्लोबल वार्मिंग को ही लीजिए। जो पढ़े-लिखे और वैज्ञानिक समझ रखने वाले लोग हैं, वो इस बात पर यक़ीन करते हैं कि इंसान के प्रदूषण फैलाने की वजह से ही धरती गर्म हो रही है।
अमेरिकामें डेमोक्रेटिक पार्टी के पढ़े-लिखे समर्थक इस बात पर दिल से भरोसा करते हैं। उनके मुक़ाबले रिपब्लिकन पार्टी के जो जानकार समर्थक हैं, उनकी ये दृढ़ सोच है कि धरती के गर्म होने में इंसान का कोई हाथ नहीं है।
स्टेम सेल के रिसर्च की बात हो, या अमरीका की बंदूक संस्कृति पर लगाम लगाने का मसला, हर मुद्दे पर लोगों की राय इसी तरह बंटी हुई है। आप को किसी भी मुद्दे की जितनी ज़्यादा समझ होगी, आप उतना ही एक ख़ास ध्रुवीकरण के शिकार होंगे।
जो लोग चतुर होते हैं, वो गुमान कर बैठते हैं कि उन्हें ही सबसे ज़्यादा जानकारी है। ऐसे में उनके ज़हन की खिड़कियां बंद हो जाती हैं। राजनीति विज्ञान के एक्सपर्ट ये मान बैठते हैं कि सियासत की जितनी समझ उन्हें हैं, उतनी किसी और को है ही नहीं। नतीजा ये होता है कि वो सामने रखे सबूत भी नहीं देख पाते और ग़लत अनुमान लगाते हैं। क्योंकि उन्हें लगता है कि वो सर्वज्ञाता हैं।
हालांकि हर बुद्धिमान और चतुर व्यक्ति ऐसी कमज़ोरी का शिकार नहीं होता। अगर लोगों के दिमाग़ में सवाल उठते हैं। नई बातें जानने की ललक होती है, तो वो अपनी बुद्धिमानी के जाल में नहीं फंसते। वो नए सबूत तलाशते हैं। नए सवालों के जवाब पूछते हैं। और जानकारी जुटाते हैं। ऐसे लोगों के पूर्वानुमान लगाने की क्षमता बेहतर होती है। बहुत ज़रूरी है कि हमारे भीतर सवाल उठाने की भूख हो। हम अपनी जानकारी पर भी सवाल उठा सकें।
बौद्धिक विनम्रता
एक और बात जो आप को सही फ़ैसला लेने में मदद करती है, वो है बौद्धिक विनम्रता। मतलब ये कि आप ये आसानी से मान लें कि आप ग़लत हैं। ऐसे में आप सामने वाले के नज़रिए को भी अपने फ़ैसला लेने की प्रक्रिया का हिस्सा बनाएंगे। आपके किसी नतीजे पर पहुंचने की प्रक्रिया ज़्यादा संतुलित होगी। किसी ख़ास विचारधारा से प्रेम करने के बाद भी आप विरोधी विचारधारा को भी सुनेंगे-समझेंगे।
गुड जजमेंट प्रोजेक्ट में शामिल लोगों में वो ज़्यादा कामयाब हुए, जिन्होंने अपनी कमियों को स्वीकार किया। दूसरों के नज़रियों को भी तरज़ीह दी। नए सबूत तलाशने की कोशिश की। वहीं, जिन लोगों के ज़हन के दरवाज़े बंद थे। जिनकी सोच में अकड़न-जकड़न थी, वो सही पूर्वानुमान लगाने की होड़ में पिछड़ गए। ऐसे लोगों में वो भी शामिल थे, जिनका आईक्यू बहुत ज़्यादा था, जो ज़्यादा पढ़े-लिखे भी थे।
अच्छी बात ये है कि इंसान के ज़हन में लोच ख़ूब होता है। आप अपने दिमाग़ को नई चीज़ें समझने के लिए आसानी से राज़ी कर सकते हैं। इसका अच्छे से अभ्यास कर लेने से आपको कोई फ़ैसला लेने से पहले तमाम विकल्पों पर ग़ौर करने का मौक़ा मिल जाता है। इससे आप के ग़लत अंदाज़ा लगाने की आशंका कम होती जाती है।
स्वास्थ्य, वित्त और राजनीति से जुड़े मसलों में आप ज़्यादा से ज़्यादा ख़बरें और जानकारियां हासिल कर के, अपने अंदाज़े को पुख़्ता बना सकते हैं। अच्छे सोच-विचार की आदत डाली जा सकती है। तमाम मुद्दों का पूर्वानुमान लगाना, आपको जीवन में बहुत सारे फ़ैसले लेने में मदद कर सकता है। आपको आपकी विचारधारा की क़ैद से आज़ाद कर सकता है। जो लोग बौद्धिक स्तर पर विनम्र होते हैं। दूसरों की बातें ग़ौर से सुनते हैं। उन्हें तुरंत ख़ारिज नहीं करते हैं, उनकी अटकलें ज़्यादा सही साबित होती हैं।