मंगलवार, 26 नवंबर 2024
  • Webdunia Deals
  1. सामयिक
  2. बीबीसी हिंदी
  3. बीबीसी समाचार
  4. Citizenship amendment law
Written By BBC Hindi
Last Updated : सोमवार, 16 दिसंबर 2019 (09:41 IST)

नागरिकता संशोधन कानून : क्या बीजेपी हड़बड़ी में गड़बड़ी कर गई

नागरिकता संशोधन कानून : क्या बीजेपी हड़बड़ी में गड़बड़ी कर गई - Citizenship amendment law
मानसी दाश (बीबीसी संवाददाता)
 
12 और 13 दिसंबर की दरमियानी रात को नागरिकता संशोधन विधेयक पर राष्ट्रपति ने हस्ताक्षर कर दिए और इसे क़ानून की शक्ल दे दी, लेकिन राष्ट्रपति तक विधेयक पहुंचने से पहले ही पूरे पूर्वोत्तर में इसका ज़ोरदार विरोध शुरू हो गया।
 
10 दिसंबर को लोकसभा में इस विधेयक पर लंबी चर्चा हुई जिसके बाद सदन में ये बहुमत से पास हो गया। इसी दिन से असम में छात्रों और आम लोग सड़कों पर उतरना शुरू हो गया था। स्थिति पर काबू पाने के लिए सुरक्षाबलों की भारी तैनाती की गई लेकिन सड़कों पर विरोध कम नहीं हुआ।
11 दिसंबर को विधेयक राज्यसभा पहुंचा और देर शाम जब ये पारित हुआ उस वक्त तक उत्तरपूर्व के असम, मणिपुर, त्रिपुरा में विरोध प्रदर्शन और हिंसा भड़क उठी। शाम तक गुवाहाटी में कर्फ्यू लगा दिया गया था।
 
अब तक हालात संभालने की कोशिशें हुईं नाकाम
 
विधेयक पारित कराने के लिए सदन में सरकार की तरफ से मोर्चा संभालने वाले गृहमंत्री अमित शाह ने कहा कि उत्तरपूर्व को इस विधेयक के कारण नुक़सान नहीं होगा, लेकिन उनकी बात के असर होता कहीं दिखा नहीं।
 
ग़ौरतलब है कि नागरिकता संशोधन विधेयक को पेश करने के दौरान ही यानी 9 दिसंबर को मणिपुर को भी इनर लाइन परमिट में शामिल करने का प्रस्ताव किया गया था, लेकिन हिंसा भड़कने के बाद ही इससे संबंधित दस्तावेज़ बने।
11 दिसंबर को अचानक मणिपुर में भी इनर लाइन परमिट व्यवस्था लागू करने संबंधी आदेश पर राष्ट्रपति ने हस्ताक्षर कर दिए। इनर लाइन परमिट एक तरह का यात्रा दस्तावेज़ है, जिसे भारत सरकार अपने नागरिकों के लिए जारी करती है, ताकि वो किसी संरक्षित क्षेत्र में निर्धारित अवधि के लिए यात्रा कर सकें। फिलहाल ये अरुणाचल प्रदेश, नागालैंड, मिज़ोरम और मणिपुर में लागू है।
 
कांग्रेस नेता गौर गोगोई इसे बीजेपी की विभाजनकारी नीति बताते हैं और कहते हैं कि ये उत्तर-पूर्व को बांटने का बीजेपी का एक तरीक़ा है, लेकिन मामला सिर्फ़ उत्तरपूर्व में विरोध का नहीं है बल्कि दिल्ली, मुंबई, औरंगाबाद, केरल, पंजाब, गोवा, मध्यप्रदेश समेत कई इलाकों में विरोध प्रदर्शन बढ़ रहे हैं।
 
क्या बीजेपी को इस बात का अंदेशा नहीं था कि असम में इतने बड़े स्तर के प्रदर्शन शुरू हो जाएंगे? यह सवाल इसलिए भी उठ रहा है क्योंकि जापान के प्रधानमंत्री शिंज़ो आबे भारत आने वाले थे और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ गुवाहाटी में उनकी मुलाक़ात होने वाली थी। आबे का दौरा 15-17 दिसंबर तक के लिए प्रस्तावित था मगर अंतिम वक्त पर इसे टाल दिया गया।
 
चर्चा हो रही है कि अगर सरकार को अनुमान होता कि इस तरह के प्रदर्शन हो सकते हैं तो इस मुलाक़ात के लिए या तो गुवाहाटी को नहीं चुना जाता या फिर इस समय इस विधेयक को पेश करने से बचा जाता। क्या बीजेपी की नागरिकता संशोधन क़ानून लागू करने की कोशिश उत्तरपूर्व में बैकफ़ायर कर गई?
 
उत्तरपूर्व में नहीं चला बीजेपी का फॉर्मूला?
 
राजनीतिक विश्लेषक राधिका रामासेशन कहती हैं, 'मुझे लगता है कि दिल्ली से बहुत कम लोग ही उत्तरपूर्व को समझ पाए हैं। वहां कई तरह के समुदाय हैं और उन्हें समझने में पूरा एक जनम लगेगा। बीजेपी पूरे उत्तर-पूर्व को असम की तरह समझ रही थी। शायद असम को भी पूरी तरह बीजेपी समझ नहीं पाई है।'
 
कोलकाता में मौजूद वरिष्ठ पत्रकार सुबीर भौमिक बताते हैं, 'उत्तर-पूर्व के बारे में बीजेपी की जानकारी बहुत कम है। इसका कारण ये है कि बीजेपी के नेता हर चीज़ को धर्म के चश्मे से देखते हैं। उन्हें लगा कि वो ऐसा कर देंगे तो हिंदू लोग उनके पक्ष में आ जाएंगे। उन्हें ये अंदाज़ा नहीं है कि असम या उत्तरपूर्व के दूसरे क्षेत्र हैं वहां रहने वालों के लिए बंगाली हिंदू और बंगाली मुसलमान एक ही चीज़ है. वो मानते हैं कि ये लोग यहां आकर बसेंगे तो यहां की डेमोग्राफ़ी बदल जाएगी।'
 
'बीजेपी का मंत्र, 'असमिया हिंदू, बंगाली हिंदू भाई भाई' ये फॉर्मूला वहां नहीं चल पाया। उन्हें लगा कि असम में हमें बहुमत मिला था और ये हिंदू राज्य है यहां कोई विरोध नहीं होगा, लेकिन बाद में उन्होंने यहां कुछ जगहों पर इनर लाइन परमिट को बढ़ाया। ऐसे में असम और त्रिपुरा में लोगों को लगने लगा कि दूसरी जगहों के बंगाली हिन्दू उनकी जगहों में आ जाएंगे।'
 
बीर भौमिक बताते हैं, 'बीजेपी जल्दबाज़ी में अपना कोई राजनीतिक एजेंडा कामयाब करना चाहती है। उन्हें पता है कि अर्थव्यवस्था जैसे मामलों में वो पहले ही बैकफुट पर हैं तो हम हिंदू एजेंडा आगे बढ़ाएंगे। उन्हें लगा कि कश्मीर, एनआरसी, राम मंदिर और नागरिकता संशोधन क़ानून कर देंगे को हिंदू वोट हमारे पक्ष में जाएंगे। पार्टी बहुत जल्दी में है।'
 
राधिका रामासेशन बताती हैं, 'ये केवर उत्तर भारत का सवाल नहीं है। बीजेपी पश्चिम बंगाल में चुनावों पर भी ध्यान दे रही है। उन्हें लगता है कि अगर वो नागरिकता संशोधन क़ानून को ठीक से लागू कर लेंगे तो उन्हें बंगाली हिंदुओं का एक नया वोटबैंक (जिन्हें अब तक नागरिकता नहीं मिली है) उन्हें मिल जाएगा।'
 
'एक वक्त कांग्रेस ने भी असम में मुसलमान वोट बैंक बनाया था। उन्होंने ईस्ट पाकिस्तान और बांग्लादेश से आए शरणार्थियों को लेकर एक ठोस वोट बैंक था।'
 
कश्मीर जितना संवेदनशील है उत्तर-पूर्व
 
इससे पहले 5 अगस्त को भारत सरकार ने एक और बड़ा फ़ैसला लिया था। सरकार ने जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले संविधान के अनुच्छेद 370 को ख़त्म कर दिया और वहां के लगभग सभी बड़े नेताओं और कई कार्यकर्ताओं को या तो जेल में ले लिया था या फिर उन्हें नज़रबंद कर दिया।
 
जम्मू-कश्मीर में सुरक्षाबलों की भारी तैनाती कर दी गई और यहां संचार के सभी माध्यमों पर भी रोक लगा दी गई। बाद में जम्मू में इंटरनेट सुविधा चालू कर दी गई लेकिन चार महीने बाद भी कश्मीर में इंटरनेट चालू नहीं किया गया है।
 
सुबीर भौमिक कहते हैं, 'कश्मीर को लेकर सरकार के पास जानकारी है कि यहां जिहादी हमला हो सकता है। इस कारण वहां पहले ही काफी तैयारी थी, लेकिन उत्तर-पूर्व भी उतना ही संवेदनशील इलाक़ा है।' वहीं राधिका रामासेशन कहती हैं कि कश्मीर की नज़र से असम को देखना सही नहीं होगा क्योंकि यहां का मामला पूरा अलग है।
 
क्या बीजेपी से हड़बड़ी में गड़बड़ी हो गई?
 
राधिका रामासेशन बताती हैं कि नागरिकता संशोधन क़ानून के तार एनआरसी से जुड़े हुए हैं। वो कहती हैं कि जिस तरह असम में एनआरसी लागू किया गया उसे लेकर असम और बंगाल में काफी प्रतिक्रिया हुई थी।
 
वो कहती हैं, 'मुझे नहीं समझ आ रहा है कि इतनी प्रतिक्रिया देखते हुए उन्होंने ये क़ानून कैसे लागू किया। बीजेपी का कहना है कि एनआरसी में जो हुआ उसे ठीक करने के लिए नागरिकता संशोधन क़ानून लाया जा रहा है।'
 
'नागरिकता संशोधन क़ानून और राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर एक दूसरे बहुत गहरे तरीके से जुड़े हुए हैं और इन्हें आप अलग कर के नहीं देख सकते। पूरे भारत में नागरिकता संशोधन क़ानून तो लागू हो गया है, अब इसका अगला कदम होगा एनआरसी। गृह मंत्री अमित शाह खुद कई बार कह चुके हैं कि इसे एनआरसी से जोड़ा जाएगा। ऐसे में समस्या जहां से शुरू हुई हम वहीं पहुंच जाएंगे।'
 
सुबीर भौमिक कहते हैं, 'हाल में असम में एनआरसी हुआ था जिसमें 20 लाख लोगों को राज्य का नागरिक नहीं पाया गया। इस सूची में चार से पांच से लाख ही मुसलमान हैं जबकि 11 से 12 लाख अधिकतर हिंदू है। इस कारण भी उनका फॉर्मूला वहां नहीं चला।'
 
वो कहते हैं, 'असम समेत उत्तर-पूर्व में पहले भी सरकार विरोधी संगठनों ने काम किया है जो वक्त के साथ कमज़ोर हो रहे थे लेकिन अब वो भी समने आ रहे हैं और वो मज़बूत हो सकते हैं। हाल में इस मुद्दे पर अल्फ़ा का बयान आया है।'
 
अब आगे लुक ईस्ट नीति का क्या होगा?
 
भारत की 'लुक ईस्ट' नीति 1991 में तत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिंह राव ने शुरू की थी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2014 में 'लुक ईस्ट' नीति को 'ऐक्ट ईस्ट' नीति में बदल दिया।
 
गुवाहाटी में फरवरी 2018 में सम्मेलन हुआ था जिसके प्रधानमंत्री मोदी ने कहा था कि देश लुक ईस्ट की बजाय उनकी सरकार एक्ट ईस्ट नीति में विश्वास रखती हैं और इसके लिए पूर्वोत्तर के राज्य बेहद अहम हैं। सरकार का इरादा पूर्वोत्तर के राज्यों के ज़रिए पूर्वी एशियाई देशों के साथ कारोबार बढ़ाने का था।
 
सुबीर भौमिक बताते हैं कि उत्तरपूर्व के हालात सरकार की ऐक्ट ईस्ट पॉलिसी के लिए करारा झटका है। वो कहते हैं, 'ऐसे हालात में कैसे कोई इकोनॉमिक कॉरिडोर बनेगा? भारत के कौन व्यापारी ऐसे इलाके से अपना सामान दक्षिणपूर्व एशिया में अपना सामान भेजेगा, जहां हिंसा हो रही है। आपको सामान भेजना हुआ तो आप उसे समंदर के रास्ते भेजेंगे क्योंकि वहां कई गड़बड़ नहीं है। लुक ईस्ट-ऐक्ट ईस्ट कामयाब होने के लिए पहली शर्त ये है कि उत्तरपूर्व में जो हालात हैं उन्हें सामान्य रखा जाए और कोई नई गड़बड़ी पैदा न की जाए, जो अब हो चुकी है। ये इलाक़ा अगर डिस्टर्ब हो गया तो लुक ईस्ट-ऐक्ट ईस्ट केवल भाषण के तौर पर रह जाएगा।'
 
'हर बात को हिंदुत्व के चश्मे को देखना बीजेपी की बड़ी ग़लती है। उन्हें लगता है कि पाकिस्तान मुसलमान मुक्त है और बांग्लादेशभी. इन्हें समझना चाहिए बांग्लादेश बंगाली मुल्क है, इसे धर्म के चश्मे से नहीं देखना चाहिए था.'
 
राधिका रामासेशन समझाती हैं, 'बांग्लादेश के साथ भारत के संबंध हमेशा से अच्छे रहे हैं लेकिन आज के जो हालात हैं उनमें उनके साथ रिश्तों पर बुरा असर पड़ रहा है. बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख़ हसीना बार बार कह रही हैं कि किसी नागरिक को यहां से वापिस नहीं लेंगे।'
 
'ये मामला सिर्फ़ भारत का नहीं है बल्कि पड़ोसियों के साथ भी भारत के रिश्ते ख़राब हो सकते हैं। श्रीलंका से आए तमिल जो तमिलनाडु में बसे हैं उनके बारे में ये क़ानून कुछ नहीं कहता। जिन देशों के नाम भारत ने क़ानून में लिए हैं उनमें अफ़ग़ानिस्तान है, जो भारत की विश्वस्त मित्र है यानी भारत सीधे सीधे कह रहा है कि वहां के सिख या हिंदुओं पर इतना अत्याचार हो रहा है कि हम उन्हें वापस लेने के लिए तैयार हैं।'
 
वो कहती हैं, 'बीजेपी बंगाल के चुनाव के लिए असम का त्याग कर रही है जो ये राजनीति बेहद घातक है। त्रिपुरा में, मेघालय में इनर लइन परमिट की मांग हो रही है। तो ऐसे में सवाल उठेगा कि असम को क्यों इससे दूर रखा जाएगा। समय की बात है, लेकिन हो सकता है कि असम में भी इनर लाइन परमिट सिस्टम आ जाएगा। हालांकि असम के लिए इसके बेहर गंभीर परिणाम हो सकते हैं।'
ये भी पढ़ें
सुरक्षा परिषद की बैठक बुलाने से नाराज उत्तर कोरिया