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Last Modified: गुरुवार, 17 मई 2018 (11:36 IST)

बिजनौर का वो गांव जो 'मुजफ्फरनगर' नहीं बनना चाहता

बिजनौर का वो गांव जो 'मुजफ्फरनगर' नहीं बनना चाहता - Bijnor Muzaffarnagar
- शहबाज अनवर
 
पश्चिम उत्तरप्रदेश के बिजनौर जिले के गांव गारवपुर में धर्मस्थल पर लाउडस्पीकर लगाने के मुद्दे पर दो संप्रदाय आमने-सामने आ गए। एक समुदाय के लोगों ने दूसरे समुदाय के घरों पर 'बिकाऊ है' तक लिख दिया।
 
 
बिगड़ते हालात को देखते हुए गांव के एक पक्ष के लोग पलायन तक कर गए। लेकिन जल्द ही उनकी समझ में आ गया कि फिजूल के झगड़े से कुछ मिलने वाला नहीं है। बाद में तय हुआ कि तनाव को खत्म कर आपस में गले मिला जाए। हुआ भी यही। सभी ने आपस में बैठ गिले-शिकवे दूर किए और गांव की जिंदगी पहले की तरह ही हंसी-खुशी से चलने लगी।
 
गांव वालों ने निकाला विवाद का हल
 
पुलिस उपाधीक्षक नगीना महेश कुमार कहते हैं कि गारवपुर प्रकरण का पटाक्षेप हो गया है। ग्रामीणों ने आपसी सौहार्द का परिचय देते हुए मामले का हल निकाल लिया है। गांव में कई दिनों तक काफी तनाव रहा। विवाद के सौहार्दपूर्ण हल से प्रशासन ने भी राहत की सांस ली है।
 
दरअसल, 17 जनवरी को बिजनौर की तहसील नगीना के अंतर्गत आने वाले गांव गारवपुर में हिन्दू-मुस्लिमों के बीच धार्मिक स्थलों पर लाउडस्पीकर लगाने को लेकर तनाव हो गया था। यह तनाव इतना बढ़ गया था कि बीते 7 मई को गांव से हिन्दू समाज के 35 परिवारों ने अपने घरों पर 'मकान बिकाऊ है' लिख दिया था। इतना ही नहीं, 9 मई को गांव से मानसिंह, योगेंद्र, अजयपाल के परिवार पलायन कर जंगल में तंबू गाड़ वहां रहने लगे। कई अन्य परिवारों ने भी पलायन कर लिया था। गांव में सांप्रदायिक झगड़ा होने का खतरा बढ़ रहा था।
 
पुलिस प्रशासन भी दोनों पक्षों को समझाने में थक-हार गया था। लेकिन न मुस्लिम मानने को तैयार थे और न ही हिन्दू। मामले की जानकारी हुई तो भारतीय किसान यूनियन के जिलाध्यक्ष दिगंबर सिंह 11 मई को दोनों पक्षों से बात बातचीत करने गांव पहुंच गए। दिगंबर सिंह कहते हैं कि मैं दोनों पक्षों के लोगों के पास गया। उन्हें समझाया कि लड़ाई-दंगों से कुछ हासिल नहीं होगा। मुजफ्फरनगर कांड देख लो, क्या मिला? दिगंबर सिंह को दोनों पक्षों को समझाने में पूरी रात गुजर गई लेकिन अगले दिन का सवेरा जिले के लिए नई मिसाल बनकर आया।
 
वे बताते हैं कि मेरी बात हिन्दू और मुस्लिमों को समझ आ गई। संगठन के हिन्दू-मुस्लिम पदाधिकारियों ने भी लड़ाई-झगड़े के परिणाम दोनों पक्षों को बताए। उन्हें समझ आ गया था कि पहले इंसानियत है, हम सबको गांव में हमेशा एकसाथ रहना है इसलिए झगड़े से कोई लाभ मिलने वाला नहीं है।
 
अपने गांव को नहीं बनाना मुजफ्फरनगर
 
गांव वालों ने साफ कह दिया कि उन्हें अपने गांव को मुजफ्फरनगर नहीं बनने देना है। बात समझ में आई तो मुस्लिम पक्ष के लोग पलायन कर गए हिन्दू परिवारों के पास जंगल में पहुंच गए। आपसी गिले-शिकवे दूर किए गए। हिन्दुओं ने हंसी-खुशी मुस्लिमों को गले लगाया और एक-दूसरे से नाराजगी दूर की। कुछ बुजुर्ग तो इस शिकवे-शिकायत में रो भी पड़े।
 
गांव के सरफराज बताते हैं कि हम समझ गए कि आपस में प्यार से रहने से ही गांव का माहौल शांत रहेगा। लाउडस्पीकर कोई कहीं भी लगाए, इससे फर्क नहीं पड़ता है। बस दिलों में मोहब्बत बढ़ जाए। सरफराज ये भी बताते हैं कि हमने खुद हिन्दू भाइयों के घर पहुंचकर घरों पर 'बिकाऊ है' लिखे को पेंट कर साफ किया। वहीं एक अन्य ग्रामीण जोगेंद्र ने कहा कि हम गांव में पहले की तरह मोहब्बत चाहते हैं। नासमझी में कुछ गलत हो गया लेकिन अब गांव में सांप्रदायिक सौहार्द पहले की तरह कायम होगा।
 
वहीं भारतीय किसान यूनियन से जुड़े लोगों का दावा है कि महेंद्र सिंह टिकैत ने एक समय में मेरठ दंगों को खत्म करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी और उनकी विरासत को आधार बनाकर राजनीति करने के लिए जरूरी है कि सांप्रदायिक सद्भाव को बचाने के लिए हरसंभव कोशिश होती रहे।
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