वृषभ लग्न : मेष राशि पर साढ़ेसाती-1
मध्य साढे़साती स्थान परिवर्तन कराएँ
वृषभ लग्न वालों को मेष राशि पर शनि की साढे़साती मीन पर शनि के आने से शुरु होगी। शनि इस समय भाग्येश-कर्मेश होकर एकादश भाव से गोचर भ्रमण करेगा। इस समय व्यापार-व्यवसाय में उत्तम परिणाम मिलेंगे वहीं पिता का सहयोग भी मिलेगा। नौकरीपेशा व्यक्ति भी अनुकूल स्थिति पाएँगे। स्वास्थ्य भी ठीक रहेगा। भाग्य भी साथ देगा। राज्य पक्ष में अनुकूल स्थिति का वातावरण रहेगा। विद्यार्थी वर्ग के लिए समय सुखद कहा जा सकता है। सन्तान पक्ष का सहयोग भी रहेगा। आयु के मामलों में वृद्धि होगी। इस समय धन की स्थिति अनुकूल होने से बचत करना आगे चलकर लाभकारी रहेगा। शनि की दूसरी साढे़साती शनि के मेष राशि पर आने से शुरू होगी जो उसकी नीच राशि है। यहाँ पर शनि भाग्येश व कर्मेश नीच का होकर भ्रमण करने से भाग्योन्नति में बाधा धर्म-कर्म में आस्था की कमी रहेगी। व्यापार-व्यवसाय में रूकावट, पिता के स्वास्थ्य में गडबडी रह सकती है। बाहरी संबंधों में दरार आ सकती है, यात्रा में नुकसान संभव है। विदेश यात्रा का योग टल सकता है। इस समय शत्रु वर्ग प्रभावहीन होंगे, नाना-मामा का सहयोग मिल सकता है। मुकदमें मे विजय हो सकती है। शनि के कुछ परिणाम मिले-जुले भी रहेंगे। शनि जब अन्तिम चरण में होगा तब लाभदायक समय आ जाएगा तो आपके कार्य बनने लगेंगे। पराक्रम में वृद्धि होगी, शत्रु प्रभावहीन होंगे। विवाहितों के लिए यह समय ठीक नहीं कहा जा सकता। अपने जीवनसाथी के स्वास्थ्य की चिन्ता रहेगी या वाद-विवाद की स्थिति बन सकती है या संबंध विच्छेद भी हो सकता है।अविवाहितों के लिए विवाह में देरी का कारण भी बन सकता है। ऐसा स्थिति में शनि से संबंधित जैसे काला कंबल शुक्रवार को ओढ़कर दान देवें या सरसों का तेल एक कटोरी में भरकर अपना मुँह देख कर किसी डाकोतिया (जो शनि महाराज के नाम से दान लेते हैं) को शनिवार को दे दें। शनि राज्य, व्यापार-व्यवसाय, पिता, नौकरी और राजनीति में सफलता का कारक रहेगा। इस समयावधि में आपके सारे गिले-शिकवे दूर हो जाएँगे। शनि जब हानिप्रद रहता है तब वह जन्म के समय नीच का हो या मंगल के साथ हो या दृष्ट हो या शत्रु क्षेत्री हो व इन्हीं की महादशा या इनमें से किसी की दशा-अन्तरदशा चल रही हो। अन्यथा शनि का दुषप्रभाव नहीं होता। पं अशोक पवांर मयंक