राहु आकस्मिक धन प्रदायक ग्रह
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दिलीप शर्मा सदैव राहु के नाममात्र से भय की आशंका किया जाना व्यर्थ है। यह सब कुछ इस बात पर निर्भर करता है कि व्यक्ति की कुंडली में उसकी स्थिति क्या है।ज्योतिष शास्त्र में सूर्य, शनि, राहु को पृथकतावादी ग्रह की श्रेणी का कहा जाता है किन्तु फिर भी सूर्य एक क्रूर ग्रह है। यद्यपि राहु एक पृथकतावादी ग्रह अवश्य है किन्तु इसका स्वयं का आधिपत्य न होने से यह एक 'छाया ग्रह' कहलाता है। इसका आशय यह है कि राहु अपना प्रभाव संबंधित राशि में होने के आधार पर तथा शुभ भावेश शुभ ग्रह के साथ बैठने पर उस भाव या भावेश की शुभता/अशुभता को दुगना कर देता है। लाभेश, धनेश, लग्नेश गुरु के साथ-साथ राहु सर्वाधिक आकस्मिक धन प्रदायक ग्रह माना जाता है। अतः सदैव राहु के नाममात्र से भय की आशंका किया जाना व्यर्थ है। यह सब कुछ इस बात पर निर्भर करता है कि व्यक्ति की कुंडली में उसकी स्थिति क्या है। अतः राहु-केतु के फलादेश के समय ज्योतिषी को विशेष परीक्षण कर शांति, जाप आदि की सलाह योग्य चिकित्सक के रूप में देना चाहिए। |
यह सब कुछ इस बात पर निर्भर करता है कि व्यक्ति की कुंडली में उसकी स्थिति क्या है। अतः राहु-केतु के फलादेश के समय ज्योतिषी को विशेष परीक्षण कर शांति, जाप आदि की सलाह योग्य चिकित्सक के रूप में देना चाहिए। |
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* राहु शून्य डिग्री से 20 डिग्री में हो तो अच्छा फल देता है जबकि 20 डिग्री से 30 डिग्री में मिश्रित फलदायी है। * जन्म नक्षत्र में ही राहु हो तो भी उसका अच्छा फल प्राप्त होता है। * यदि स्त्री राशिगत केन्द्र त्रिकोण में स्थित है तो छाया ग्रह के गुण अनुसार शुभ परिणाम का द्योतक है। * यदि विदेश यात्रा योग की जाँच की जाना हो तो अन्य योग जैसे नवम नवमेश, द्वादश द्वादेश के चर राशिगत परिणाम के साथ-साथ सदैव राहु के परिणाम को भी देखा जाना चाहिए। तृतीय, चतुर्थ, नवम, दशम भावगत है तो विदेश यात्रा योग प्रबल होता है। यदि अन्य योग के साथ गोचरवश ग्रह भी प्रभाव दें, तब यह विदेश यात्रा योग भी देता है।
* राहु/ केतु यदि कारक ग्रह के साथ विराजमान हो जाए तो वह कारक ग्रह भी बन जाता है अर्थात सहस्थिति अनुसार यदि त्रिकोण भाव से त्रिकोणेश के साथ बैठे तो अपनी शक्ति भी भाग्येश त्रिकोणेश को देकर दुगना प्रभाव दे देगा (हाँ अष्टम द्वादश में पापी ग्रह के साथ यह अवश्य मृत्युकारी, कष्टकारी योग भी छाया ग्रह होने के कारण देगा)। * यदि आकस्मिक धन प्राप्ति योग की व्याख्या किसी कुंडली में करना हो तो धनेश, लाभेश एवं धनकारी गुरु ग्रह के साथ-साथ राहु की स्थिति का प्रभाव ही अधिकांश आकस्मिक धन योग प्राप्ति को काफी हद तक प्रभावित करेगा। * शुभ ग्रह जिसे केन्द्राधिपति दोष प्राप्त है, के साथ बैठने पर राहु को भी केन्द्राधिपति दोष की प्राप्ति होगी जबकि पापी केन्द्रेश के साथ होने पर यह पापत्व कम कर शुभकारी परिणाम देगा। कुल मिलाकर राहु के गुण-अवगुण राशिगत भावेश के परिणामों के आधार पर ही तय होते हैं। यद्यपि राहु अपने रोगकारी गुण तो यथावत ही रखता है। अतः ज्योतिषी को अपनी पैनी नजर का उपयोग कर तदनुसार ही परिणाम घोषित करना चाहिए, न कि सदैव राहु के भयकारी परिणाम से भयभीत करना चाहिए।