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Written By WD Feature Desk
Last Updated : शुक्रवार, 14 नवंबर 2025 (16:11 IST)

Vrishchika Sankranti 2025: 15 या 16 नवंबर, कब है सूर्य वृश्चिक संक्रांति, जानें महत्व और पूजन विधि

Sun Vrishchika Sankranti 2025
Scorpio Sankranti 2025: सूर्य वृश्चिक संक्रांति एक महत्वपूर्ण हिंदू पर्व है जो हर साल सूर्य के वृश्चिक राशि में प्रवेश करने के साथ मनाया जाता है। यह समय 'संक्रांति' के रूप में एक प्रमुख धार्मिक अवसर होता है और आमतौर पर नवंबर महीने के मध्य में आता है। इस दिन को विशेष रूप से पूजा, दान, और धार्मिक अनुष्ठानों के लिए महत्व दिया जाता है।ALSO READ: Surya gochar 2025: सूर्य के तुला राशि में होने से 4 राशियों को मिलेगा लाभ ही लाभ
 
सूर्य के वृश्चिक राशि में प्रवेश के कारण यह समय का बदलाव शारीरिक और मानसिक उन्नति, पवित्रता और संतुलन की ओर इंगित करता है। यह समय नए कार्यों की शुरुआत करने और पुराने कार्यों को साकार रूप देने के लिए उपयुक्त माना जाता है। वर्ष 2025 में, सूर्य वृश्चिक संक्रांति 16 नवंबर, रविवार को मनाई जाएगी। आइए  यहां जानते हैं इस पर्व के बारे में खास जानकारी...
 
वृश्चिक संक्रांति 2025: तिथि और शुभ मुहूर्त: 
 
संक्रांति की तिथि- 16 नवंबर 2025, रविवार को 
 
पुण्य काल- सुबह 08 बजकर 02 मिनट से दोपहर 01 बजकर 45 मिनट तक।
अवधि- 05 घंटे 43 मिनट्स
महा पुण्य काल- सुबह 11 बजकर 58 मिनट से दोपहर 01 बजकर 45 मिनट तक
अवधि- 01 घंटा 47 मिनट्स
संक्रांति का क्षण- दोपहर 01 बजकर 45 मिनट पर।
 
शुभ योग और समय:
ब्रह्म मुहूर्त- 04:58 ए एम से 05:51 ए एम।
अभिजित मुहूर्त- 11:44 ए एम से 12:27 पी एम।
गोधूलि मुहूर्त-05:27 पी एम से 05:54 पी एम।
द्विपुष्कर योग- 17 नवंबर को 02:11 ए एम से 04:47 ए एम तक।
सर्वार्थ सिद्धि योग- 06:45 ए एम से 17 नवंबर को 02:11 ए एम तक।
अमृत सिद्धि योग- 06:45 ए एम से 17 नवंबर को 02:11 ए एम तक। 
 
वृश्चिक संक्रांति का महत्व: सनातन धर्म में संक्रांति को विशेष महत्व दिया जाता है, क्योंकि यह एक खगोलीय घटना है जो ऋतु परिवर्तन का भी संकेत देती है। वृश्चिक संक्रांति के दिन किए गए दान, स्नान और पूजा का विशेष फल मिलता है। मान्यतानुसार इस दिन निम्नानुसार कार्य करना फलदाई माने गये हैं...ALSO READ: Solar Eclipse 2026: वर्ष 2026 में कब होगा सूर्य ग्रहण, कहां नजर आएगा और क्या होगा इसका समय?
 
सूर्य देव की पूजा: यह दिन सीधे सूर्य देव को समर्पित है। इस दिन उनकी पूजा करने से जीवन में स्वास्थ्य, ऊर्जा, यश, मान-सम्मान और आत्मविश्वास की वृद्धि होती है।
 
पाप मुक्ति: संक्रांति के पुण्य काल में किसी पवित्र नदी में स्नान करने या घर पर ही गंगाजल मिलाकर स्नान करने से सभी पापों का नाश होता है और आत्म-शुद्धि होती है।
 
दान का महत्व: इस दिन तिल, गुड़, गेहूं, लाल वस्त्र और तांबे के बर्तन दान करने का विधान है। दान-पुण्य करने से जीवन में सुख-शांति आती है और आर्थिक समृद्धि बढ़ती है।
 
विवाह कार्यों का आरंभ: सूर्य जब तुला से वृश्चिक में प्रवेश करते हैं, तो मांगलिक कार्यों पर विशेष प्रभाव पड़ता है।
 
वृश्चिक संक्रांति की पूजन विधि: वृश्चिक संक्रांति पर सूर्य देव की पूजा निम्नलिखित तरीके से करनी चाहिए:
 
स्नान और शुद्धिकरण: प्रातःकाल सूर्योदय से पहले उठकर पवित्र नदी या घर पर ही जल में गंगाजल मिलाकर स्नान करें। स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
 
अर्घ्य दें: तांबे के लोटे में शुद्ध जल लें। उसमें लाल चंदन, लाल फूल और अक्षत/ चावल मिलाएं। सूर्योदय के समय सूर्य देव को अर्घ्य दें। अर्घ्य देते समय यह मंत्र- 'ॐ घृणिः सूर्याय नमः' या 'ॐ आदित्याय विद्महे मार्तण्डाय धीमहि तन्नः सूर्यः प्रचोदयात्' बोलें। ये भगवान सूर्यदेव के अत्यंत प्रभावशाली और शुभ मंत्र हैं।
 
पूजा सामग्री: सूर्य देव को लाल फूल, रोली, कुमकुम, और गुड़ से बने नैवेद्य या भोग अर्पित करें। लाल दीपक जलाएं।
 
मंत्र जाप: लाल चंदन की माला से 'ॐ दिनकराय नमः' या 'ॐ ह्रीं ह्रीं सूर्याय नमः' मंत्र का 108 बार जाप करें।
 
दान: अपनी क्षमतानुसार तिल, गुड़, गेहूं या तांबे के बर्तन किसी ब्राह्मण या ज़रूरतमंद व्यक्ति को दान करें।
 
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