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26 दिसंबर : विनायकी चतुर्थी व्रत का शुभ मुहूर्त, कथा, महत्व, मंत्र और पूजा विधि

26 दिसंबर : विनायकी चतुर्थी व्रत का शुभ मुहूर्त, कथा, महत्व, मंत्र और पूजा विधि - Vinayaki Chaturthi Date Muhurat 2022
प्रतिमाह शुक्ल पक्ष में आने वाली चतुर्थी को विनायकी चतुर्थी व्रत कहते हैं। यह तिथि भगवान श्री गणेश को समर्पित होने के कारण इस दिन श्री गणेश का पूजन करके उन्हें प्रसन्न किया जाता है तथा जीवन के कष्टों तथा अचानक आने वाले संकटों का निवारण होता है। आइए जानते हैं यहां महत्व, मुहूर्त, पूजा की विधि और कथा के बारे में- 
 
विनायकी चतुर्थी कथा-Ganesh Katha
 
कथा- एक दिन भगवान भोलेनाथ स्नान करने के लिए कैलाश पर्वत से भोगवती गए। महादेव के प्रस्थान करने के बाद मां पार्वती ने स्नान प्रारंभ किया और घर में स्नान करते हुए अपने मैल से एक पुतला बनाकर और उस पुतले में जान डालकर उसको सजीव किया गया। पुतले में जान आने के बाद देवी पार्वती ने पुतले का नाम 'गणेश' (ganesha) रखा और बालक गणेश को स्नान करते जाते वक्त मुख्य द्वार पर पहरा देने के लिए कहा। 
 
माता पार्वती ने कहा कि जब तक मैं स्नान करके न आ जाऊं, किसी को भी अंदर नहीं आने देना। भोगवती में स्नान कर जब भोलेनाथ अंदर आने लगे तो बालस्वरूप गणेश ने उनको द्वार पर ही रोक दिया। भगवान शिव के लाख कोशिश के बाद भी गणेश ने उनको अंदर नहीं जाने दिया। गणेश द्वारा रोकने को उन्होंने अपना अपमान समझा और बालक गणेश का सिर धड़ से अलग कर वे घर के अंदर चले गए।
 
शिव जी जब घर के अंदर गए तो वे बहुत क्रोधित अवस्था में थे। ऐसे में देवी पार्वती ने सोचा कि भोजन में देरी की वजह से वे नाराज हैं, इसलिए उन्होंने दो थालियों में भोजन परोस कर उनसे भोजन करने का निवेदन किया। भोजन की दो थालियां लगीं देखकर शिव जी ने पूछा- दूसरी थाली किसके लिए है? 
 
तब पार्वती जी ने जवाब दिया कि दूसरी थाली पुत्र श्री गणेश के लिए है, जो द्वार पर पहरा दे रहा है। तब भगवान शिव ने देवी पार्वती से कहा कि उसका सिर मैंने क्रोधित होने की वजह से धड़ से अलग कर दिया है। इतना सुनकर पार्वती जी दु:खी हो गईं और विलाप करने लगीं। उन्होंने भोलेनाथ से पुत्र गणेश का सिर जोड़ कर जीवित करने का आग्रह किया। तब महादेव ने एक हाथी के बच्चे का सिर धड़ से काट कर गणेश के धड़ से जोड़ दिया। अपने पुत्र को फिर से जीवित पाकर माता पार्वती अत्यंत प्रसन्न हुईं। 
 
विनायकी चतुर्थी के मुहूर्त-Vinayaki Chaturthi Muhurat 2022
सोमवार, 26 दिसंबर 2022
पौष शुक्ल चतुर्थी- 26 दिसंबर को 04.51 ए एम से शुरू होगी तथा 27 दिसंबर को 01.37 ए एम पर चतुर्थी का समापन होगा।
चतुर्थी पूजा टाइम- 26 दिसंबर को 11.20 ए एम से 01.24 पी एम तक। कुल अवधि- 02 घंटे 04 मिनट्स तक। 
 
महत्व- धार्मिक पुराणों के अनुसार प्रतिमाह आने वाली शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को विनायक/विनायकी तथा कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को संकष्टी चतुर्थी कहते हैं। इस बार पौष मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को विनायकी चतुर्थी (Varad Chaturthi 2022) के नाम से जाना जाता है। भगवान श्री गणेश को विघ्नहर्ता कहा जाता है, विघ्नहर्ता यानी आपके सभी दु:खों को हरने वाले देवता। इसीलिए भगवान श्री गणेश को प्रसन्न करने के लिए यह चतुर्थी व्रत किया जाता हैं।  
 
हिन्दू धर्मग्रंथों के अनुसार इस दिन विधिपूर्वक श्री गणेश का पूजन करने से गणेश जी प्रसन्न होते हैं तथा उनकी कृपा जीवन के असंभव कार्य भी सहज रूप से पूर्ण हो जाते हैं। विनायकी चतुर्थी के दिन श्री गणेश की पूजा मध्याह्न समय में की जाती है।

इस दिन उनकी उपासना से घर में सुख-समृद्धि, धन, संपन्नता एवं बुद्धि की प्राप्ति भी होती है तथा श्री गणेश के मंत्रों का जाप करने से विशेष पुण्यफल की प्राप्ति होती है। विनायक चतुर्थी में चंद्र दर्शन करने की मनाही है। मान्यता नुसार विनायकी चतुर्थी को चंद्रदर्शन करने से जीवन में कलंक लगता है। अत: इस दिन चंद्रमा के दर्शन करने से बचें। 
 
श्री गणेश मंत्र-Ganesh Mantra
 
- 'ॐ गणेशाय नम:' 
- 'ॐ वक्रतुण्डाय हुं।'
- 'ॐ गं गणपतये नम:।'
- सिद्ध लक्ष्मी मनोरहप्रियाय नमः।
- 'ॐ नमो हेरम्ब मद मोहित मम् संकटान निवारय-निवारय स्वाहा।'
- 'ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं ग्लौं गं गणपतये वर वरद सर्वजनं मे वशमानय स्वाहा।'
- ॐ श्रीं गं सौभाग्य गणपतये। वर्वर्द सर्वजन्म में वषमान्य नम:।।
- गणेश वंदना मंत्र-गजाननं भूत गणादि सेवितं, कपित्थ जम्बू फल चारू भक्षणम्।
उमासुतं शोक विनाशकारकम्, नमामि विघ्नेश्वर पाद पंकजम्।।।
 
पूजा विधि-Vinayaki Chaturthi Puna Vidhi
 
- चतुर्थी के दिन सुबह ब्रह्म मुहूर्त में जागकर नित्य कर्मों से निवृत्त होकर स्नानादि करके लाल रंग के वस्त्र धारण करें। 
 
- पूजन के समय अपने सामर्थ्य के अनुसार सोने, चांदी, पीतल, तांबा, मिट्टी अथवा सोने या चांदी से निर्मित शिव-गणेश प्रतिमा स्थापित करें। 
 
- संकल्प के बाद भगवान शिव और श्री गणेश का पूजन करके आरती करें। 
 
- तत्पश्चात अबीर, गुलाल, चंदन, सिंदूर, इत्र चावल आदि चढ़ाएं। 
 
- अब श्री गणेश को  21 दूर्वा दल चढ़ाएं। दूर्वा चढ़ाते वक्त मंत्र- 'ॐ गं गणपतयै नम:' का जाप करें।
 
- श्री गणेश को बूंदी के 21 लड्डू तथा भोलेनाथ को मालपुए का भोग लगाएं। 
 
- पूजन के समय श्री गणेश स्तोत्र, अथर्वशीर्ष, स्तुति, सहस्रनामावली, गणेश चालीसा, संकटनाशक गणेश स्त्रोत आदि का पाठ करें तथा श्री गणेश की आरती करें।
 
- सायं में चतुर्थी कथा, गणेश पुराण आदि का स्तवन करें। 
 
- पुन: श्री गणेश की आरती करें। 
 
- ब्राह्मण को भोजन करवा कर दान-दक्षिणा दें। 
 
- अपनी शक्ति हो तो उपवास करें अथवा शाम के समय खुद भोजन ग्रहण करें। 

Ganesha Puja 

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