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Sun transit in Taurus : वृषभ संक्रांति महत्व एवं पूजा विधि

Sun transit in Taurus : वृषभ संक्रांति महत्व एवं पूजा विधि - Sun transit in Taurus vrashabh sankranti
साल के 12 महीनों की तरह 12 राशियां होती है और इन 12 राशियों के नाम से प्रत्येक महीने में एक संक्रांति मनाई जाती है। सूर्य का राशि परिवर्तन ज्योतिष के अनुसार एक अहम घटना है। सूर्य के इस परिवर्तन से सौर वर्ष के मास की गणना भी की जाती है। सूर्य देव पूरे वर्ष में एक-एक कर सभी राशियों में प्रवेश करते हैं उनके इस चक्र को संक्रांति कहा जाता है। मेष राशि से वृषभ राशि में सूर्य का संक्रमण वृषभ संक्रांति कहलाता है। 
 
वृषभ संक्रांति वर्ष में आने वाली 12 संक्रांतियों में से बहुत ही महत्वपूर्ण मानी गई है।
 
इस दिन सूर्योदय से पहले किसी पवित्र नदी में स्नान करना चाहिए और व्रत का संकल्प लेना चाहिए। इसके बाद सूर्य देव और भगवान शिव के 'ऋषभरुद्र' स्वरुप की पूजा करनी चाहिए। प्रसाद के रूप में भगवान को खीर का भोग लगाएं। 
 
वृषभ संक्राति पर दान पुण्य का बड़ा ही महत्व होता है। इस दिन दान दक्षिणा देने से बहुत पुण्य मिलता है और इस दिन गौ दान को बहुत ही ख़ास माना जाता है। 
 
वृषभ संक्रांति पर गौ दान करना बहुत ही लाभकारी होता है। बिना दान के वृषभ संक्रांति की पूजा अधूरी होती है। गौ दान के अलावा वृषभ संक्रांति पर अगर किसी ब्राह्मण को पानी से भरा घड़ा दान किया जाए तो इससे विशेष लाभ मिलता है। 
 
भारत के विभिन हिस्सों में वृषभ संक्रांति को अलग अलग नामों से जाना जाता है। दक्षिण भारत में वृषभ संक्रांति को वृषभ संक्रमण के रूप में जाना जाता है। वहीं सौर कैलेंडर के अनुसार इस त्योहार को नए मौसम की शुरुआत का प्रतीक माना जाता है। तमिल कैलेंडर में इसे वैगसी मासुम का आगमन कहा जाता है तो मलयालम कैलेंडर में 'एदाम मसम'। बंगाली कैलेंडर में इसे 'ज्योत्तो मश' का प्रतीक माना जाता है। ओडिशा में वृषभ संक्रांति को 'ब्रश संक्रांति' के रूप में जाना जाता है। इस वर्ष वृषभ संक्रांति 14 मई (गुरुवार) को मनाई जाएगी।
 
वृषभ संक्रांति महत्व एवं पूजा विधि
 
वृषभ संक्रांति पर प्रातःकाल सूर्योदय से पूर्व स्नान करके भगवान् शिव का पूजन किया जाता है। इस दिन भगवान शिव के रिषभरूद्र स्वरुप को पूजा जाता है। वृषभ संक्रांति में व्रत रखने वाले व्यक्ति को रात्रि में जमीन पर सोना होता है।  संक्रांति मुहूर्त के पहले आने वाली 16 घड़ियों को बहुत शुभ माना जाता है। इस समय में दान, मंत्रोच्चारण, पितृ तर्पण और शांति पूजा करवाना भी बहुत शुभ माना जाता है।
 
भगवान शिव के वाहक नंदी भी एक बैल हैं जो भगवान शिव के सबसे प्रिय भक्त है इसलिए इस दिन पर भगवान शिव की अराधना करने से शुभ फल प्राप्त होता है। भगवान ब्रह्मा ब्रह्मांड के निर्माता हैं, भगवान विष्णु देखभाल करने के लिए ज़िम्मेदार है और भगवान शिव (जिसे महेश भी कहा जाता है) इसे समाप्त करने के लिए जिम्मेदार है।
 
इस प्रकार ब्रह्मांड में संतुलन बनाए रखने के लिए तीनों का होना आवश्यक है। जीवन का यह चक्र इन्हीं तीनों के कराण चलता है। वृषभ संक्राति पर इनकी आराधना मोक्ष दिलाती है।
 
वृषभ संक्रांति का मुहूर्त
 
वृषभ संक्रांति 14 मई गुरुवार को मनाई जाएगी।
 
वृषभ संक्रांति का पुण्यकाल - सुबह 10.37 बजे से शाम 5.33 बजे तक
 
वृषभ संक्रांति का  पुण्यकाल की कुल अवधि - 6.56 घंटे
 
वृषभ संक्रांति का महा  पुण्यकाल - 3.23 बजे से शाम 5.33 बजे तक