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शनि अमावस्या विशेष : ग्रहों में सबसे सुंदर शनि

शनि अमावस्या विशेष : ग्रहों में सबसे सुंदर शनि - Shani Dev
-पं. आनंदशंकर व्यास 
 
शनि- नवग्रहों में शनि को सप्तम ग्रह के रूप में मान्यता है। लिखा है- 'अथ खेटा रविश्चन्द्रो मंगलश्व बुधस्‍तथा। गुरु: शुक्र: शनि राहु: केतुश्चेते यथाक्रमम्।' रवि, चन्द्र, मंगल, बुध, बृहस्पति, शुक्र, शनि, राहु व केतु ये क्रम से नवग्रह हैं। शनि के नाम- मंद, कोण, यम और कृष्ण हैं। शनि क्रूर ग्रह (पाप ग्रह) है। तर्त्राक शनि भूस्वुत्रा: क्षीणेन्दु- राहु- केतव:। क्रूरा:, शेषग्रहा सौम्या क्रूर: क्रूर- युतोबुध:। इन ग्रहों में रवि, शनि, मंगल, क्षीणचन्द्र, राहु-केतु को क्रूर ग्रह में लिखा गया है जिसमें शनि भी है। छाया सुनुश्चेदु:खद: से शनि को दु:खस्वरूप कहा है। शनि को श्रमिक या भृत्य का कारक कहा गया है। 
 
शनि को कृष्ण वर्ण कहा है। शनि स्त्री-पुरुषादि में नपुंसक हैं और वायुतत्व हैं। शनि तमोगुणी है। शनि का स्वरूप दुर्बल, लंबादेह, पिंगल नेत्र, वात प्रकृति, स्थूल दंत, आलसी, पंगु, कठोर रोम वाला कहा है। शरीर में स्नायुओं का शनि स्वामी है। कसैला रस शनि का है। शनि पश्चिम दिशा का स्वामी है। शनि रात्रि बली है। शनि कृष्ण पक्ष में, दक्षिणायन में बली होते हैं। कुत्सित वृक्षों का शनि स्वामी है। नीरस वृक्षों की उत्पत्ति शनि से होती है। शनि शिशिर ऋतु का स्वामी है। वृद्धस्वरूप है। 
 
शनि- पुष्प, अनुराधा व उत्तरा भाद्रपदा नक्षत्र का स्वामी है। राशियों में मकर-कुंभ राशि का अधिपति है। शनि के बुध, शुक्र मित्र ग्रह हैं। सूर्य, चन्द्र व मंगल शत्रु हैं। गुरु सम है। शनि जन्माक्षर में स्थित अपने स्थान से 3, 7, 10वें स्थान को पूर्ण दृष्टि से देखता है। 
 
शनि का भ्रमण- नवग्रहों में शनि आकाश में सबसे अधिक दूरी पर होने से, उसका वृत्त मार्ग बड़ा है इसलिए शनि की गति कम है। उसको पूरा चक्र भ्रमण में लगभग 38 से 30 वर्ष लगते हैं अर्थात 12 राशि के भ्रमण में लगभग 28 से 30 वर्ष लगते हैं। एक राशि का भ्रमण काल औसत 2।। वर्ष होता है। दूरबीन से देखने पर शनि अन्य ग्रहों की अपेक्षा सबसे सुंदर दिखाई देता है। उसके पिंड के चारों ओर एक सुंदर वलय दिखाई देता है। अति दूर पर होने के बाद भी यह दु:खकारक शनि प्राणियों को संकट देता रहता है।

ढैया और साढ़ेसाती के रूप में (अर्थात बृहत्कल्याणी व लघु कल्याणी) इसका प्रभाव मनुष्यों पर होता है। लघु कल्याणी अर्थात ढैया शनि, बृहत्कल्याणी अर्थात साढ़ेसाती। अपनी राशि से शनि की स्थिति 12 वीं, पहली व द्वितीय होने पर साढ़ेसाती होती है। शनि की चतुर्थ-अष्टम स्थिति लघु कल्याणी के रूप में मानी जाती है। शनि अपनी राशि का मित्र हो और कुंडली में उत्तम स्थान या मित्र, उच्च व स्वराशि में स्थित हो तो साढ़ेसाती का प्रभाव विशेष प्रतिकूल नहीं होता है। 
 
शनि दोष निवृत्ति के लिए शनि के पदार्थों का दान करें, यथा नीलम, सुवर्ण, लोहा, उड़द, काली तिल, तेल, कृष्ण वस्त्र, काले या नीले पुष्प, कस्तूरी, काली गौ, भैंस का दान करें।
 
शनि की वनस्पतियों से स्नान- काले तिल, सूरमा, लोबान, धमनी, सौंफ, मुत्थरा, खिल्ला आदि। 
 
शनि दोष निवृत्ति के लिए 'ॐ खां खीं खूं स: मंदाय नम:' बीज मंत्र का जाप करें अथवा पुराणोक्त मंत्र का जाप करें, जो इस प्रकार है- 
 
नीलांजन समाभासं रविपुत्रं यमाग्रजम।
छाया मार्तण्डसंभूतं तम नमामि शनैश्चरम्।।
 
इस मंत्र का जाप 23 हजार बार करना चाहिए। कलियुग चतुर्गुणित 92 हजार संख्या में करें। तेल का दीपक भी लगाएं। काली तिल से हवन करें। 
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