राहु-केतु हुए वक्री, जानें देश-विदेश के लिए कैसा होगा यह परिवर्तन
गोचर का ज्योतिष शास्त्र में विशेष महत्व माना गया है। गोचर शब्द 'गम्' धातु से बना है, जिसका अर्थ होता है गतिमान या चलने वाला। वहीं 'चर' शब्द से आशय भी निरंतर गति से होता है। सभी ग्रह निरंतर गतिमान रहते हुए एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करते रहते हैं। ग्रहों के इसी राशि परिवर्तन को 'गोचर' कहा जाता है।
ज्योतिष शास्त्र में राहु-केतु को छाया ग्रह माना गया है, इसलिए कुछ विद्वान राहु-केतु के 'गोचर' को अधिक मान्यता नहीं देते हैं किंतु यवनाचार्य जैसे अधिकतर विद्वान ज्योतिष के प्रसिद्ध सिद्धांत 'शनिवत् राहु, कुजवत् केतु' के आधार पर राहु-केतु के गोचर को मान्यता प्रदान करते हैं। राहु-केतु सदैव वक्री गति अर्थात् उल्टे चलते हैं।
23 सितंबर 2020 को राहु गोचरवश अपनी वक्रगति के चलते मिथुन से वृषभ राशि एवं केतु-धनु से वृश्चिक राशि में प्रवेश किया है। राहु को ज्योतिष शास्त्र में शनि के समान व केतु को मंगल के समान स्वभाव वाला ग्रह माना गया है। छाया ग्रह होने के कारण राहु-केतु जिस भाव में; जिस भावेश के साथ होते हैं उसी के अनुरूप फलित करते हैं।
नैसर्गिक रूप से राहु का स्वभाव पृथकताजनक और केतु का स्वभाव आक्रामक व मारणात्मक होता है। राहु-केतु का यह राशि परिवर्तन देश के लिए प्रतिकूल परिस्थितियां उत्पन्न करने वाला रहेगा। राहु-केतु का यह राशि परिवर्तन आम जनमानस पर भी अपना प्रभाव डालेगा।
देश में महंगाई और बेरोजगारी बढ़ेगी। सरकार के प्रति जनाअक्रोश उत्पन्न होगा। पड़ोसी देशों से रिश्तों में दरार आएगी। सीमा पर तनाव बढ़ेगा। चीन के साथ युद्ध की स्थिति उत्पन्न होगी और सीमित युद्ध की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता।
(निवेदन- उपर्युक्त विश्लेषण ग्रह-गोचर की गणना पर आधारित है। जन्म पत्रिका में ग्रह स्थिति एवं दशाओं के कारण इसमें परिवर्तन संभव है।)
-ज्योतिर्विद् पं. हेमन्त रिछारिया
प्रारब्ध ज्योतिष परामर्श केन्द्र