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देवउठनी एकादशी पूजन : सरल प्रामाणिक विधि

देवउठनी एकादशी पूजन : सरल प्रामाणिक विधि - Dev Uthani Ekadashi Pooja vidhi In Hindi
10 और 11 नवंबर 2016 को देवउठनी एकादशी का पर्व है। इस दिन जगत के पालनकर्ता भगवान श्री विष्णु अपनी शयन निद्रा से जाग्रत होंगे और सृष्टि का कार्यभार पुन: संभालेंगे । इसी तरह भगवान आशुतोष शिव पुन: कैलाश की यात्रा पर निकल पड़ेंगे। आइए जानें कैसे करें व्रत-पूजन :- 
* देवउठनी एकादशी के दिन व्रत करने वाली महिलाएं प्रातःकाल में स्नानादि से निवृत्त होकर आंगन में चौक बनाएं।
 
* पश्चात भगवान विष्णु के चरणों को कलात्मक रूप से अंकित करें।
 
* फिर दिन की तेज धूप में विष्णु के चरणों को ढंक दें।
 
* देवउठनी एकादशी को रात्रि के समय सुभाषित स्त्रोत पाठ, भगवत कथा और पुराणादि का श्रवण और भजन आदि का गायन करें।
 
* घंटा, शंख, मृदंग, नगाड़े और वीणा बजाएं।
 
* विविध प्रकार के खेल-कूद, लीला और नाच आदि के साथ इस मंत्र का उच्चारण करते हुए भगवान को जगाएं : -
 
'उत्तिष्ठ गोविन्द त्यज निद्रां जगत्पतये।
त्वयि सुप्ते जगन्नाथ जगत्‌ सुप्तं भवेदिदम्‌॥'
'उत्थिते चेष्टते सर्वमुत्तिष्ठोत्तिष्ठ माधव।
गतामेघा वियच्चैव निर्मलं निर्मलादिशः॥'
'शारदानि च पुष्पाणि गृहाण मम केशव।'
 
इसके बाद विधिवत पूजा करें।
 
कैसे करें व्रत-पूजन :-
 
* पूजन के लिए भगवान का मन्दिर अथवा सिंहासन को विभिन्न प्रकार के लता पत्र, फल, पुष्प और वंदनबार आदि से सजाएं।
 
* आंगन में देवोत्थान का चित्र बनाएं, तत्पश्चात फल, पकवान, सिंघाड़े, गन्ने आदि चढ़ाकर ढंक दें तथा दीपक जलाएं।
 
* विष्णु पूजा या पंचदेव पूजा विधान अथवा रामार्चनचन्द्रिका आदि के अनुसार श्रद्धापूर्वक पूजन तथा दीपक, कपूर आदि से आरती करें।
 
* इसके बाद इस मंत्र से पुष्पांजलि अर्पित करें : -
 
'यज्ञेन यज्ञमयजन्त देवास्तानि धर्माणि प्रथमान्यासन।
तेह नाकं महिमानः सचन्त यत्र पूर्वे साध्याः सन्तिदेवाः॥'
 
पश्चात इस मंत्र से प्रार्थना करें : -
 
'इयं तु द्वादशी देव प्रबोधाय विनिर्मिता।
त्वयैव सर्वलोकानां हितार्थ शेषशायिना॥'
इदं व्रतं मया देव कृतं प्रीत्यै तव प्रभो।
न्यूनं सम्पूर्णतां यातु त्वत्प्रसादाज्जनार्दन॥'
 
साथ ही प्रह्लाद, नारद, पाराशर, पुण्डरीक, व्यास, अम्बरीष,शुक, शौनक और भीष्मादि भक्तों का स्मरण करके चरणामृत, पंचामृत व प्रसाद वितरित करें। तत्पश्चात एक रथ में भगवान को विराजमान कर स्वयं उसे खींचें तथा नगर, ग्राम या गलियों में भ्रमण कराएं।
 
(शास्त्रानुसार जिस समय वामन भगवान तीन पद भूमि लेकर विदा हुए थे, उस समय दैत्यराज बलि ने वामनजी को रथ में विराजमान कर स्वयं उसे चलाया था। ऐसा करने से 'समुत्थिते ततो विष्णौ क्रियाः सर्वाः प्रवर्तयेत्‌' के अनुसार भगवान विष्णु योग निद्रा को त्याग कर सभी प्रकार की क्रिया करने में प्रवृत्त हो जाते हैं)। अंत में कथा श्रवण कर प्रसाद का वितरण करें। 

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