रविवार, 1 दिसंबर 2024
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Written By ND

मजाज़ की नज्म आवारा

मजाज़ की नज्म आवारा -
ऎ ग़म-ए-दिल क्या करूँ, ऎ वहशत-ए-दिल क्या करूँ

शहर की रात और मैं, .नाशाद-ओ-नाकारा फिरूँ (दुखी) (बेकार)
जगमगाती जागती सड़कों पे आवारा फिरूँ
ग़ैर की बस्ती है कब तक दर-ब-दर मारा फिरूँ (इधर-उधर,दरवाज़े-दरवाज़े)
ग़म-ए-दिक्या करूँ, ऎ वहशत-ए-दिल क्या करूँ (दिल का दुख) (दिल की घबराहट)

ये रुपहली छाँव ये आकाश पर तारों का जाल
जैसे सूफ़का तसव्वुर, जैसे आशिक़ का ख्याल (ईश्वर की याद में खोया हुआ)
आह लेकिन कौन जाने कौन समझे जी का हाल
ऎ ग़म-ए-दिल क्या करूँ, ऎ वहशत-ए-दिल क्या करूँ

रात हंस-हंस के ये कहती है कि मयखानमें चल (शराबखाने, मधुशाला)
फिर किसी शहनाज़-ए-लालारुख के काशाने में चल (घर, ठिकाने)
ये नहीं मुमकिन तो फिर ऎ दोस्त वीराने में चल
ऎ ग़म-ए-दिल क्या करूँ, ऎ वहशत-ए-दिल क्या करूँ

रास्ते में रुक के दम लूँ ये मेरी आदत नहीं
लौट कर वापस चला जाऊँ मेरी फ़ितरनहीं (ज़मीर, आत्मसम्मान)
और कोई हमनवमिल जाए ये क़िस्मत नहीं (साथी, दोस्त, मित्र)
ऎ ग़म-ए-दिल क्या करूँ, ऎ वहशत-ए-दिल क्या करूँ

जी में आता है कि अब अहद-ए-वफ़भी तोड़ दूँ (वफ़ा करने का पक्का इरादा)
उनको पा सकता हूँ मैं, ये आसरा भी छोड़ दूँ
हाँ मुनासिब है ये ज़ंजीर-ए-वफ़ा ही मोड़ दूँ (सच्चाई की ज़ंजीर)
ऎ ग़म-ए-दिल क्या करूँ, ऎ वहशत-ए-दिल क्या करूँ

इक महल की आड़ से निकला वो पीला माहताब .... (चाँद)
जैसे मुल्ला का 14.अमामा, जैसे बनिए की किताब (पगड़ी, टोपी, साफ़ा)
जैसे 15.मुफ़लिकी जवानी, जैसे बेवा का 16.शबाब (ग़रीब) (जवानी)
ऎ ग़म-ए-दिल क्या करूँ, ऎ व्हशत-ए-दिल क्या करूँ

बढ़ के इस इंदर सभा का साज़-ओ-सामाँ फूँक दूँ
इसका गुलशन फूँक दूँ, उसका 17.शबिस्ताफूँक दूँ (सोने का कमरा, बेडरूम)
18.तख्त-ए-सुल्ताक्या मैं सारा 19.क़स्र-ए-सुल्ताँ फूँक दूँ (राजा का तख्त) (राजा का महल)
ऎ ग़म-ए-दिल क्या करूँ मैं, वहशत-ए-दिल क्या करूँ

जी में आता है ये मुर्दा चाँद-तारे नोच लूँ
इस किनारे नोच लूँ और उस किनारे नोच लूँ
एक दो का ज़िक्र क्या सारे के सारे नोच लूँ
ऎ ग़म-ए-दिल क्या करूँ, ऎ वहशत-ए-दिल क्या करूँ