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Written By WD

गोपाष्टमी और आंवला नवमी

गोपाष्टमी और आंवला नवमी - Gopa Ashtami/ Aanwala Navami
कार्तिक मास की अष्टमी को गोपाष्टमी और नवमी को आंवला नवमी कहते हैं। गोपाष्टमी पर गो, ग्वाल और कृष्ण को पूजने का महत्व है तो आंवला नवमी पर आंवले के वृक्ष के पूजन का महत्व है।


गोपाष्टमी : इस दिन भगवान कृष्ण को गौ चराने के लिए मां यशोदा ने जंगल भेजा था। इस दिन प्रातःकाल गौओं को स्नान कराकर जल, अक्षत, रोली, गुड, जलेबी, वस्त्र तथा धूप-दीप से आरती उतारते हैं। संध्याकाल गायों के जंगल से वापस लौटाने पर उनके चरणों को धोकर तिलक लगाना चाहिए।

आंवला नवमी : पुत्ररत्न की प्राप्ति के लिए एक दिन एक वैश्य की पत्नी ने पड़ोसन के कहने पर पराए लड़के की बलि भैरव देवता के नाम पर दे दी। इस वध का परिणाम विपरीत हुआ और उक्त स्त्री को कोढ़ हो गई तथा लड़के की आत्मा सताने लगी।

बालवध करने के पाप के कारण शरीर पर हुए कोढ़ से छुटकारा पाने के लिए उक्त स्त्री गंगा के कहने पर कार्तिक की नवमी के दिन आंवला का व्रत करने लगी। ऐसा करने से वह भगवान की कृपा से दिव्य शरीर वाली हो गई तथा उसे पुत्र प्राप्ति भी हुई। तभी से इस व्रत को करने का प्रचलन है।

आंवला पूजन : आंवले के वृक्ष के नीचे पूर्व दिशा में बैठकर पूजन कर उसकी जड़ में दूध देना चाहिए। इसके बाद पेड़ के चारों ओर कच्चा धागा बांधकर कपूर बाती या शुद्ध घी की बाती से आरती करते हुए सात बार परिक्रमा करनी चाहिए। इस दिन महिलाएं किसी ऐसे गॉर्डन में जहां आंवले का वृक्ष हो, वहां जाकर वहीं भोजन करती हैं।