गंभीरता और अगंभीरता, दोनों का आजकल एक जैसा बाजार भाव चल रहा है। फिर भी हिंदी का आम लेखक अपने छोटे-मोटे सम्मानों-निमंत्रणों-पुरस्कारों से ही इतना इतराया-इतराया रहता है कि हरेक में एक खास अकड़, एक खास टेढ़ापन दिखाई देता है, जैसे कि वह महान हो चुका है और आप जो हैं, सो हैं यानी आप हैं ही क्या?
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