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Written By ND

पीपल (पिप्पली)

पीपल (पिप्पली) -
जैसे हरड़-बहेड़ा-आंवला को त्रिफला कहा जाता है, वैसे ही सोंठ-पीपल-काली मिर्च को 'त्रिकटु' कहा जाता है। इस त्रिकटु के एक द्रव्य 'पीपल' की जानकारी इस प्रकार है।

पीपल को पीपर भी कहते हैं, यह छोटी और बड़ी दो प्रकार की होती है, जिनमें से छोटी ज्यादा गुणकारी होती है और यही ज्यादातर प्रयोग में ली जाती है।

विभिन्न भाषाओं में नाम : संस्कृत- पिप्पली। हिन्दी- पीपर, पीपल। मराठी- पिपल। गुजराती- पीपर। बंगला- पिपुल। तेलुगू- पिप्पलु, तिप्पली। फारसी- फिलफिल। इंग्लिश- लांग पीपर। लैटिन- पाइपर लांगम।

गुण : यह पाचक अग्नि बढ़ाने वाली, वृष्य, पाक होने पर मधुर रसयुक्त, रसायन, तनिक उष्ण, कटु रसयुक्त, स्निग्ध, वात तथा कफ नाशक, लघु पाकी और रेचक (मल निकालने वाली) है तथा श्वास रोग, कास (खांसी), उदर रोग, ज्वर, कुष्ठ, प्रमेह, गुल्म, बवासीर, प्लीहा, शूल और आमवात नाशक है।

कच्ची अवस्था में यह कफकारी, स्निग्ध, शीतल, मधुर, भारी और पित्तशामक होती है, लेकिन सूखी पीपर पित्त को कुपित करती है। शहद के साथ लेने पर यह मेद, कफ, श्वास, कास और ज्वर का नाश करने वाली होती है। ग़ुड के साथ लेने पर यह जीर्ण ज्वर (पुराना बुखार) और अग्निमांद्य में लाभ करती है तथा खांसी, अजीर्ण, अरुचि, श्वास, हृदय रोग, पाण्डु रोग और कृमि को दूर करने वाली होती है। पीपल के चूर्ण की मात्रा से ग़ुड की मात्रा दोगुनी रखनी चाहिए।

रासायनिक संघटन : इसमें सुगन्धित तेल (0.7%), पाइपरीन (4-5%) तथा पिपलार्टिन नामक क्षाराभ पाए जाते हैं। इनके अतिरिक्त दो नए तरल क्षाराभों का भी इसमें पता चला है, जिनके नाम सिसेमिन और पिपलास्टिरॉल हैं। पीपर की जड़ (पीपला मूल) में पाइपरिन (0.15-0.18%), पिपलार्टिन (0.13-0.20%), पाइपरलौंगुमिनिन, एक स्टिरायड तथा ग्लाइकोसाइड पाए जाते हैं।

परिचय : यह मुख्य रूप से दो प्रकार की होती है बड़ी और छोटी। वैसे निघण्टु में चार जातियां बताई जाती हैं- (1) पिप्पली (2) गज पिप्पली (3) सैंहली और (4) वन पिप्पली।

भारत में इसकी पैदावार उष्ण प्रदेशों यथा बंगाल, बिहार, असम, पूर्वी नेपाल, कोंकण से त्रावणकोर तक पश्चिमी घाट के वन, मलेशिया, इण्डोनेशिया, सिंगापुर, श्रीलंका तथा निकोबार द्वीप समूह में होती है। तमिलनाडु की अन्नामलाई पहाड़ियों तथा असम के चेरापूंजी क्षेत्र में इसकी खेती आन्ध्र के विशाखापत्तनम्‌ जिले के पहाड़ी इलाके में की जाती है।

उपयोग
पिप्पली क्वाथ : पीपर 20 ग्राम जौकुट (मोटा-मोटा) कूटकर एक गिलास पानी में डालकर उबालें। जब आधा पानी बचे तब उतारकर छान लें। इसके तीन भाग करके, एक-एक भाग, ठण्डा ही दिन में 3 बार, सुबह-दोपहर-शाम, एक चम्मच शहद डालकर पिएं। यह नुस्खा पुराना बुखार, तिल्ली बढ़ जाना और वात प्रकोपजन्य व्याधियों को दूर करता है। इसे लाभ होने तक सेवन करना चाहिए।

पिप्पल्यादि चूर्ण : पिप्पली, नागरमोथा, काकड़ासिंगी, अतीस, चारों द्रव्य 50-50 ग्राम लेकर, कूट-पीसकर महीन चूर्ण कर लें। इस चूर्ण को सुबह-शाम चने बराबर मात्रा में थोड़े से शहद में मिलाकर चाट लेना चाहिए। इस प्रयोग से, बच्चों को ज्वर, अतिसार, पेचिश, वमन, सर्दी-जुकाम और खांसी आदि व्याधियों से छुटकारा मिलता है। यह बच्चों के लिए एक सौम्य और निरापद औषधि है अतः निर्भयतापूर्वक बच्चों को दी जा सकती है।

कृष्णादि चूर्ण : पिप्पली, पद्माख, लाख और छोटी कटेली, सब 50-50 ग्राम लेकर कूट-पीसकर महीन चूर्ण कर कपड़े से छान लें। इस चूर्ण को आधा-आधा चम्मच, शहद में मिलाकर सुबह-शाम लेना चाहिए। कफ, कास, ज्वर और उरःक्षत, कफ के साथ रक्त जाना, कफ पीले रंग का और दुर्गन्धयुक्त कफ निकलना आदि व्यधियों को शीघ्र दूर करने वाली औषधि है।

64 प्रहरी पिप्पली : पिप्पली को अच्छा साफ करके कूट-पीसकर महीन चूर्ण करें और उसे कपड़े से छान लें। इस चूर्ण को 64 प्रहर तक खरल में घोंटने पर 64 प्रहरी पीपर तैयार होती है। इसकी मात्रा 2 से 4 रत्ती है और इसे दिन में दो बार शहद में मिलाकर लेते हैं। इसके सेवन से शरीर में सतत्‌ ऊर्जा का संचार होता है। यह पाचन संस्थान को शक्तिशाली बनाती है और कफ का नाश करती है। यह पुराने बुखार, श्वास, कास, वात प्रकोप और भूख कम होना आदि व्याधियों को दूर करने वाली उत्तम औषधि है। यह बनी-बनाई बाजार में इसी नाम से मिलती है।

पाचक पिप्पली : नीबू के रस में पीपर डालकर भिगो दें और थोड़ा सा पिसा सेंधा नमक डालकर इसे 7 दिन तक रखें। आठवें दिन पीपर निकालकर सुखा लें। सुबह शाम 2-2 पीपर कूटकर खाने से अपच, अरुचि, कब्ज और मन्दाग्नि दूर होती है तथा खाया-पिया ठीक तरह से हजम हो जाता है।

पिप्पली पाक : पीपर 100 ग्राम लेकर महीन चूर्ण बनाकर कपड़े से छान लें। 2 लीटर गाय के दूध में डालकर इसका मावा बना लें। इस मावे को 100 ग्राम घी में अच्छा गुलाबी होने तक सेकें। आधा किलो शकर की चाशनी बना लें और इसमें मावा मिलाकर थाल में जमा लें। जम जाए तब लगभग 10-10 ग्राम की बर्फी काट लें। सुबह खाली पेट और रात को भोजन के 2 घण्टे बाद, 2-2 बर्फी खूब चबा-चबाकर खाएं और मीठा कुनकुना गर्म दूध घूंट-घूंट करके पीते रहें। इस प्रयोग से पाचन शक्ति प्रबल होती है पेट, साफ रहता है, कब्ज नहीं होने पाती, खूब अच्छी भूख लगती है, हाजमा अच्छा रहता है और इस सबके परिणामस्वरूप शरीर सुडौल और बलवान होता है।

विभिन्न रोग और पीपल
वातश्लेष्म ज्वर : पीपर का काढ़ा आधा-आधा कप सुबह-शाम पीने से वातश्लेष्म ज्वर (बुखार) के अलावा आम वृद्धि और प्लीहा वृद्धि आदि दूर होते हैं।

जीर्ण ज्वर : रोगी को पीपर का आधा-आधा चम्मच चूर्ण गुड़ में सुबह-शाम देना चाहिए। पुराना बुखार टूट जाता है, भूख खुलकर लगने लगती है और पेट ठीक से साफ होने लगता है।

विषम ज्वर : रोगी को सुबह शाम आधा-आधा चम्मच पीपर चूर्ण थोड़े शहद में मिलाकर लेना चाहिए।

उदर वात : पीपर का चूर्ण 1 ग्राम और सेंधा नमक 2 ग्राम, छाछ के साथ दिन में 3 बार लेने से उदर की वायु निकल जाती है और पेट हलका होता है, अच्छा शौच होता है, इससे तबीयत प्रसन्न रहती है।

कफज कास : पीपर को घी में भून लें, फिर पीस-छानकर रख लें। आधा चम्मच यह चूर्ण, 1 ग्राम सेंधा नमक और दो चम्मच शहद तीनों मिलाकर सुबह-शाम लेने से कफज खांसी ठीक होती है। यह चूर्ण आधा चम्मच, गुड़ के साथ लेने से कास-श्वास, अजीर्ण, हृदय रोग, पाण्डु रोग, अग्निमांद्य, कामला, अरुचि और पुराना बुखार आदि रोग ठीक होते हैं।

पेचिश : पीपर के काढ़े को 4-4 चम्मच, बकरी के दूध के साथ, दिन में तीन बार लेना चाहिए। इस प्रयोग से पुरानी पेचिश भी ठीक हो जाती है।

बवासीर : भोजन करने के बाद आधा ग्राम पीपर चूर्ण, 1 ग्राम भुना हुआ पिसा जीरा और जरा सा सेंधा नमक तीनों को मिलाकर, छाछ के साथ, सुबह-शाम दो माह तक लेने से कैसी भी बवासीर हो, ठीक हो जाती है।

दांत निकलना : शिशु के दांत आसानी से निकलें, इसके लिए चुटकीभर पीपर चूर्ण शहद में मिलाकर, इसे शिशु के मसूढ़ों पर लगाकर, दिन में 2-3 बार, घिसना चाहिए। इस उपाय से शिशु के दांत आसानी से निकल आते हैं।

मोटापा : पीपर का चूर्ण आधा चम्मच, थोड़े से शहद में मिलाकर सुबह-शाम सेवन करने से 2-3 माह में मोटापा कम होने लगता है।