मुलहठी, जिसे मुलेठी भी कहते हैं, एक बहुत ही उपयोगी एवं सुपरिचित जड़ी है। यह दो वर्ष तक खराब नहीं होती और विभिन्न नुस्खों में औषधि के रूप में प्रयोग की जाती है।
इसका सत भी बनाया जाता है, जिसे सत मुलेठी या रुब्बे सूस कहते हैं। यह मधुर और शीतवीर्य होती है तथा किसी भी मौसम में प्रयोग की जा सकती है।
विभिन्न भाषाओं में नाम : संस्कृत- यष्टीमधु। हिन्दी- मुलहठी, मुलेठी। मराठी- ज्येष्ठीमध। गुजराती- जेठीमध। बंगाली- यष्टीमधु। तेलुगू- यष्ठीमधुकम। तमिल- अतिमधुरम। फारसी- वेख महक। इंग्लिश- लिकोरिस। लैटिन- ग्लिसीराइजा ग्लेब्रा।
गुण : यह शीतल, शीतवीर्य, भारी, स्वादिष्ट, नेत्रों के लिए हितकारी, बल तथा वर्ण के लिए उत्तम, स्निग्ध, वीर्यवर्द्धक, केशों तथा स्वर के लिए गुणकारी है। यह पित्त, वात एवं रुधिर विकार, व्रण, शोथ, विष, वमन, तृषा, ग्लानि तथा क्षय को नष्ट करने वाली है। नेत्रों के लिए फायदेमन्द, त्रिदोषनाशक और घाव को भरने वाली है।
परिचय : इसका पौधा 6 फीट तक ऊंचा होता है। यूं तो यह भारत के जम्मू-कश्मीर और देहरादून में पैदा होती है फिर भी ज्यादातर विदेशों से आयात की जाती है। इस पौधे की जड़ बहुत मीठी होती है। इसकी जड़ और काण्ड (तना) को ही अधिकतर प्रयोग में लिया जाता है। यह लकड़ी जैसी होती है और इसका टुकड़ा मुंह में रखकर चूसने से मीठा लगता है।
रासायनिक संघटन : इसमें एक प्रमुख तत्व ग्लिसीराइजिन पाया जाता है जो ग्लिसीराजिक एसिड के रूप में रहता है। यह शकर से 50 गुना मीठा होता है। इसमें एक स्टिरॉयड इस्ट्रोजन भी पाया जाता है। इसके अतिरिक्त ग्लूकोज, सुक्रोज, मैनाइट, स्टार्च, ऐस्पैरेजिन, तिक्त पदार्थ, राल, एक प्रकार का उड़नशील तेल और एक रंजक तत्व पाया जाता है।
उपयोग : इसका उपयोग औषधियों में, मीठे जुलाब में, मीठी गोली, खांसी की गोली, बलवीर्यवर्द्धक नुस्खों में प्रायः होता ही है। आयुर्वेदिक योग मधुयष्टादि चूर्ण, यष्टादि क्वाथ, यष्टी मध्वादि तेल में इसका उपयोग होता है। इसे मुंह में रखकर चूसने से कफ आसानी से निकल जाता है, खांसी में आराम होता है, गले की खराश और स्वरभंग में लाभ होता है।
* यह महिलाओं के मासिक ऋतुस्राव की अनियमितता को दूर करती है। केश एवं नेत्रों के लिए इसका प्रयोग अत्यन्त लाभकारी सिद्ध होता है। यहां कुछ परीक्षित एवं लाभकारी सिद्ध होने वाले घरेलू प्रयोग प्रस्तुत किए जा रहे हैं-
पौष्टिक औषधि : शरीर को पुष्ट, सुडौल और शक्तिशाली बनाने के लिए किसी भी आयु वाले स्त्री या पुरुष सुबह और रात को सोने से पहले मुलहठी का महीन पिसा हुआ चूर्ण 5 ग्राम, आधा चम्मच शुद्ध घी और डेढ़ चम्मच शहद में मिलाकर चाटें और ऊपर से मिश्री मिला ठण्डा किया हुआ दूध घूंट-घूंट कर पिएं। यह प्रयोग कम से कम 40 दिन करें। बहुत लाभकारी है।
कफ प्रकोप व खांसी : 5 ग्राम मुलहठी चूर्ण 2 कप पानी में डालकर इतना उबालें कि पानी आधा कप बचे। इस पानी को आधा सुबह और आधा शाम को सोने पहले पी लें। 3-4 दिन तक यह प्रयोग करना चाहिए। इस प्रयोग से कफ पतला हो जाता है और ढीला हो जाता है, जिससे बड़ी आसानी से निकल जाता है और खांसी व दमा के रोगी को बड़ी राहत मिलती है।
दाह : मुलहठी और लाल चन्दन पानी के साथ घिसकर लेप करने से दाह (जलन) शान्त होती है।
मुंह के छाले : मुलहठी का टुकड़ा मुंह में रखकर चूसने से मुंह के छाले ठीक होते हैं। इसके चूर्ण को थोड़े से शहद में मिलाकर चाटने से भी आराम होता है।
हिचकी : मुलहठी चूर्ण शहद के साथ चाटने से हिचकी आना बन्द होता है। यह प्रयोग वात और पित्त का शमन भी करता है।
पेट दर्द : वात प्रकोप से होने वाले उदरशूल में ऊपर बताए गए मुलहठी के काढ़े का सेवन आधा सुबह और आधा शाम को करने से बादी का उदरशूल ठीक हो जाता है।
मासिक ऋतुस्राव : मुलहठी का चूर्ण 5 ग्राम थोड़े शहद में मिलाकर चटनी जैसा बनाकर चाटने और ऊपर से मिश्री मिला ठंडा किया हुआ दूध घूंट-घूंटकर पीने से मासिक स्राव नियमित हो जाता है। इसे कम से कम 40 दिन तक सुबह-शाम पीना चाहिए और तले पदार्थ, गरम मसाला, लाल मिर्च, बेसन के पदार्थ, अंडा व मांस का सेवन बंद रखें। ऊष्ण प्रकृति के पदार्थों का सेवन न करें।
बलवीर्यवर्द्धक : मुलहठी का चूर्ण 5 ग्राम और 5 ग्राम अश्वगंधा चूर्ण थोड़े से घी में मिलाकर चाट लें और ऊपर से 1 गिलास मिश्री मिला मीठा दूध पिएं। लगातार 60 दिन तक यह प्रयोग सुबह-शाम करने से खूब बलवीर्य की वृद्धि होती है और शरीर पुष्ट व सुडौल होता है।