• Webdunia Deals
  1. लाइफ स्‍टाइल
  2. »
  3. साहित्य
  4. »
  5. विजयशंकर की कविताएँ
Written By WD

बीड़ी सुलगाते पिता

बीड़ी सुलगाते पिता -
- विजयशंकचतुर्वेद

WD
खेत नहीं थी पिता की छाती
फिर भी वहाँ थी एक साबुत दरार
बिलकुल खेत की तरह

पिता की आँखें देखना चाहती थीं हरियाली
सावन नहीं था घर के आसपास
पिता होना चाहते थे पुजारी
खाली नहीं था दुनिया का कोई मंदिर
पिता ने लेना चाहा संन्यास
पर घर नहीं था जंगल

अब पिता को नहीं आती याद कोई कहानी
रहते चुप अपनी दुनिया में
पक गए उनकी छाती के बाल
देखता हूँ
ढूँढती हैं पिता की निगाहें
मेरी छाती में कुछ

पिता ने नहीं किया कोई यज्ञ
पिता नहीं थे चक्रवर्ती
कोई घोड़ा भी नहीं था उनके पास
वे काटते रहे सफर
हाँफते-खखारते
फूँकते बीड़ी
दाबे छाती एक हाथ से

पिता ने नहीं की किसी से चिरौरी
तिनके के लिए नहीं बढ़ाया हाथ
हमारी दुनिया में सबसे ताकतवर थे पिता

नंधे रहे जुएं में उमर भर
मगर टूटे नहीं
दबते गए धरती के बहुत-बहुत भीतर
कोयला हो गए पिता
कठिन दिनों में जब जरूरत होगी आग की
हम खोज निकालेंगे
बीड़ी सुलगाते पिता।