शुक्रवार, 26 अप्रैल 2024
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Written By सीमान्त सुवीर

अब तो आराम करें बूढ़े क्रिकेटर...

सचिन क्या बीसीसीआई के जमाई राजा हैं?

अब तो आराम करें बूढ़े क्रिकेटर... -
श्रीलंका के खिलाफ तीसरे और निर्णायक टेस्ट के पहले ही दिन भारत की जो शर्मनाक हालत हुई है, उसने दुनियाभर में फैले भारतीय क्रिकेटप्रेमियों की भावनाओं को आहत किया है। इस अशुभ घड़ी में सचिन तेंडुलकर समेत सौरव गांगुली और राहुल द्रविड़ को जितना कोसा जाए, कम है।

जब भारत के पास युवा खून मौजूद है तो क्यों इन बूढ़े क्रिकेटरों को झेला जा रहा है? आखिर कब तक वे भारत की टेस्ट टीम पर बोझ बने रहेंगे? सचिन तेंडुलकर को क्या इसीलिए मौका दिया जा रहा है, ताकि वे ब्रायन लारा के सर्वाधिक टेस्ट रन बनाने के रिकॉर्ड को तोड़ें? यदि 10 साल तक वे यह कारनामा नहीं करेंगे तो क्या तब भी टीम में बने रहेंगे? भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड की बेबसी देखिए कि वह खुद यह कहने से बाज नहीं आता कि सचिन तेंडुलकर तब तक खेलेंगे, जब तक उनकी मर्जी रहेगी। यानी आज भारत सचिन का गुलाम बनकर रह गया है।

तीन टेस्ट मैचों की सिरीज में सचिन ने अब तक पाँच पारियों में 13.5 के औसत से केवल 81 (27, 12, 5, 31 और 6 रन) रन ही बनाए हैं। मास्टर ब्लास्टर को खुद इन आँकड़ों को देखकर शर्म से पानी-पानी हो जाना चाहिए और ऐसी जलालत को झेलने से खुद ही ये कह देना चाहिए कि अब टेस्ट मैच उनके बूते की बात नहीं रह गई है...

लेकिन भारतीय क्रिकेटर बहुत मोटी चमड़ी के होते हैं। ये वे सफेद हाथी हैं, जिनकी पीठ में भाला भी चुभो दो तो कोई असर नहीं होता। दरअसल, रुपयों की गर्मी ने उनका दिमाग इस कदर आसमान पर चढ़ा दिया है कि उन्हें मैदान पर किए गए प्रदर्शन से कोई फर्क नहीं पड़ता।

लगता है कि भारतीय क्रिकेट को चलाने वाले मानसिक दिवालिएपन का शिकार हो गए हैं। यही कारण है कि सचिन को टेस्ट टीम का बोझ तो बना ही रखा है, उन्हें पाकिस्तान में 11 सितम्बर से होने वाली चैम्पियंस ट्रॉफी के लिए भी चुन लिया गया है। एक युवा क्रिकेटर का हक मारने के पीछे दलील ये दी गई कि सचिन की ड्रेसिंग रूम में मौजूदगी ही काफी है। इससे विरोधी टीम पर मनोवैज्ञानिक दबाव बनता है। जनाब ऐसा ही है तो उन्हें क्यों न कोच और मैनेजर बना दिया जाए। कम से कम किसी युवा क्रिकेटर का हक तो नहीं मारा जाएगा। क्या सचिन की जगह दिल्ली के शिखर धवन या गोआ के वर्द्धमान असनोदकर का दावा नहीं बनता?

भारतीय क्रिकेट टीम के 'जमाई राजा' केवल सचिन ही नहीं हैं, बल्कि राहुल द्रविड़ और सौरव गांगुली के लिए भी कठोर शब्दों का प्रयोग करते हुए इनके बारे में लिखना पड़ेगा कि वे उस बड़ी उम्र के बकरे की तरह हो गए हैं, जिनकी कुर्बानी युवा टैलेंट को ऊपर लाने के लिए दे दी जानी चाहिए।

मौजूदा श्रीलंकाई दौरे में राहुल द्रविड़ का पाँच पारियों का लेखा-जोखा है 14, 10, 2, 44 और 10 रन। इसी तरह सौरव गांगुली के आँकड़े हैं 23, 4, 0, 16 और 35 रन। गांगुली टेस्ट क्रिकेट में 6835 और द्रविड़ के 10 हजार 168 रन चस्पा हैं, लेकिन आज हालत ये है कि ये बुजुर्ग क्रिकेटर रनों के लिए लंकाई गेंदबाजों से कटोरा लेकर भीख माँग रहे हैं।

भारत में त्योहारों का मौसम (16 अगस्त को राखी) बिलकुल दहलीज पर है और दुकानों में 1 पर दो या 1 पर तीन फ्री के बोर्ड लगे होते हैं या अखबारों में इश्तेहार छपवाए जाते हैं। भारतीय क्रिकेट भी किसी बाजार से कम नहीं है। यहाँ पर इस इश्तेहार को कुछ यूँ दिया जा सकता है कि 1 पर 3 ‍फ्री। यदि भारत का पहला विकेट आउट हो जाता है तो साथ में 3 विकेट फ्री मिल जाते हैं। पिछले दो टेस्ट मैच के बाद तीसरे टेस्ट की पहली पारी में भारत का मध्यक्रम जिस तरह से लड़खड़ाया है, उस पर '1 पर 3 विकेट फ्री' का जुमला बिलकुल सटीक बैठता है।

जहाँ एक ओर भारतीय टीम प्रबंधन प्रयोग करने के मामले में बिलकुल निकम्मा साबित हो रहा है, उसे कम से कम श्रीलंका से ही सीख लेनी चाहिए। श्रीलंका नए खिलाड़ियों को हाथोहाथ मौका देता है। इसका सबसे ताजा उदाहरण अजंता मेंडिस हैं। मेंडिस टेस्ट क्रिकेट में नए-नवेले हैं और तीसरे टेस्ट के पूर्व 2 टेस्ट में 18 विकेट झटक चुके हैं। तीसरे टेस्ट में भी वे 56 रन की कीमत पर 5 विकेट लेने में कामयाब रहे। यही नहीं, धमिका प्रसाद ने पहला टेस्ट खेलते हुए भारत के पहले तीनों सूरमा बल्लेबाजों सहवाग, द्रविड़ और सचिन तेंडुलकर को आउट किया।

यह बात बिलकुल गले नहीं उतरती है कि दूसरे देश जब युवा क्रिकेटरों को मौका दे सकते हैं तो भारतीय क्रिकेट चयनकर्ताओं को युवाओं से इतना परहेज क्यों? क्या उस दिन का इंतजार किया जा रहा है जब बुजुर्ग क्रिकेटरों को हटाए जाने की माँग को लेकर पुतले फूँके जाएँगे?

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