दिवाली रोज मनाएँ फूलझड़ी ये फूल बिखेरे चकरी चक्कर खाए अनार उछला आसमान तक रस्सी-बम धमकाए साँप की गोली हो गई लम्बी रेल धागे पर दौड़ लगाए आग लगाओ रॉकेट को तो वो दुनिया नाप आए टिकड़ी के संग छोटे-मोटे बम बच्चों को भाए ऐसा लगता है दिवाली हम तुम रोज मनाएँ - संदीप फाफरिया 'सृजन' उज्जैन