परमात्मा सबमें व्याप्त है। कोई अपनी बुद्धि से, गले में खराश हो और शब्द ठीक से नहीं निकले, आंखें मलीन हो और ठीक से दिखाई न दे तो। हम एक शेर अक्सर कहा करते हैं कि-
काबू में अपना मन नहीं तो ध्यान क्या करें। तेरी आंखें न करे दीदार तो उसमें भगवान क्या करें।
तेरी आंख न देख पाए तो इसमें भगवान का क्या दोष। कहीं न कहीं आश्रय तो लेना ही होता है। उनके आश्रय के बिना जीवन चल ही नहीं सकता। कहने का मतलब यह है कि भक्ति जहां भी आई वहां द्वेष नहीं, दुख तो रहेगा ही। रोना पड़ेगा। इसलिए सोच समझकर इस मार्ग में आना। यह मार्ग आंसुओं का है।
तो भक्ति व्याधि का शास्त्र है। पीड़ा और कसक का शास्त्र है। ऐसा कहा जाता है कि जो व्यक्ति कभी रोए ही नहीं, वो तंदुरुस्त नहीं माना जाता।