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Written By ND

एकता के संदेशवाहक वारिस अली शाह

एकता के संदेशवाहक वारिस अली शाह -
-ए.के.वारस
भारत की इस पावन भूमि पर जन्म लेकर सूफी संतों और महापुरुषों ने इसे मानवता और प्रेम का संदेश प्रदान करने के लिए अपना केंद्र बनाया, जो विश्व में एक बेमिसाल बात है। इसी कड़ी के तहत हुजूर वारिस अली शाह ने भी आज से लगभग दो सौ वर्ष पूर्व रमजान के महीने की पहली तारीख को इस पावन भूमि पर जन्म लिया एवं सेहरी के वक्त से रोजा इफ्तार के वक्त तक अपनी माताजी का दूध न पीकर प्रमाणित कर दिया कि उनका जन्म ईश्वरीय आदेश है।

उनका समाधि स्थल (दरगाह) उत्तरप्रदेश के बाराबंकी जिले के नगर देवा शरीफ में आज भी प्रेम व एकता का संदेश देने के साथ-साथ मानवीय परेशानियों से मुक्ति का केंद्र बना हुआ है। वहाँ से आज भी हजारों श्रद्धालु उपस्थित होकर लाभान्वित हो रहे हैं। वारिस अली हजरत मोहम्मद के नवासे हजरत हुसैन आली मुकाम इब्ने अली व फातमा की 26वीं पीढ़ी में हैं।

हुजूर वारिसे पाक ने समस्त मानव जाति को एक ही औलादे आदम सिद्ध कर प्रेम और एकता के सूत्र में बाँधा। उन्होंने सभी को नाम परिवर्तन व धर्म परिवर्तन किए बिना ही अपने संदेशों का पालन करने के लिए प्रेरित किया। उनके सभी अनुयायी अपने नाम के साथ 'वारसी' उपनामजोड़ते हैं। जैसे राजा पंचमसिंहजी वारसी, टामिशाह साहब वारसी, रोमशाह वारसी, पंडित दीनदारशाह वारसी, लाला कन्हैयालालजी वारसी, पंडित खुशहालदास वारसी, बेदमशाह वारसी आदि।

ये सभी नाम इस बात का प्रमाण हैं कि ईश्वर के यहाँ कोई भेदभाव नहीं है। सभी का धर्म इंसानियत है और जाति मानव है, चाहे वे किसी भी संप्रदाय से क्यों न हों। उन्होंने निःस्वार्थ सेवा की दृष्टि से पूरे जीवन में संसार के हर मोह को त्यागकर इंसानियत की सेवा को अपने पूर्वजों की तरह लक्ष्य बनाया।

उन्होंने प्रेम व एकता को सदैव अपनी शिक्षा में प्रथम स्थान प्रदान किया। उन्होंने सभी संप्रदायों के लोगों को एक ही शिक्षा देकर प्रमाणित कर दिया कि ईश्वर की कृपा सभी पर एक जैसी है, उसमें कोई अंतर नहीं है। मानव जाति के सभी लोग ईश्वर के नियमों पर चलकर ईश्वर को प्राप्त कर सकते हैं। उन्होंने कभी किसी धर्म या मजहब को बुरा नहीं बताया और फरमाया कि ये सभी ईश्वर तक पहुँचने के रास्ते हैं परंतु ईश्वर की मंजिल एक है।

आज भी आप देख सकते हैं कि जितने भी सूफी संत हैं, उनकी दरगाहों, आश्रमों और समाधि स्थलों पर जाने में कोई भेदभाव नहीं है। जो भी वहाँ जाता है, उसे बिना किसी भेदभाव के फैज (लाभ) मिलता है। इससे प्रमाणित होता है कि ईश्वर की तरफ से एक ही धर्म और जातिहै, बाकी सब रास्ते हैं। इसलिए हम सभी को चाहिए कि विश्व के इस झुलसते हुए माहौल में कुछ अवसरवादी लोगों की बातों और बहकावे में न आकर वारिस-ए-पाक जैसे ईश्वरीय प्रकाश स्रोत से रोशनी प्राप्त कर हम अपने जीवन को सार्थक एवं सफल बनाएँ।