इसके पहले वह सुंबा और बालीद्वीप को जीत चुका था। सुंबा में मयदानव से उसका परिचय हुआ। मयदानव से उसे पता चला कि देवों ने उसका नगर उरपुर और पत्नी हेमा को छीन लिया है। मयदानव ने उसके पराक्रम से प्रभावित होकर अपनी परम रूपवान पाल्य पुत्री मंदोदरी से विवाह कर दिया। मंदोदरी की सुंदरता का वर्णन श्रीरामचरित मानस के बालकांड में संत तुलसीदासजी ने कुछ इस तरह किया है- 'मय तनुजा मंदोदरी नामा। परम सुंदरी नारि ललामा' अर्थात मयदानव की मंदोदरी नामक कन्या परम सुंदर और स्त्रियों में शिरोमणि थी।
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