- चन्द्रप्रकाश जैन राजिम विधानसभा क्षेत्र में दो तिहाई पिछड़े वर्ग के मतदाताओं को रिझाने के लिए भाजपा और कांग्रेस में होड़ मच गई है। उसमें भी साहू मतदाताओं को अपने पक्ष में करने के लिए दोनों दलों के प्रत्याशी एड़ी-चोटी का जोर लगा रहे हैं। मौजूदा विधायक चंदूलाल साहू का टिकट काटने के बाद भाजपा 'डेमेज कंट्रोल' में जुटी है। कांग्रेस को इसमें फायदा नजर आ रहा है। इसके बावजूद आधा दर्जन से ज्यादा आदिवासी प्रत्याशी कांग्रेस पर भारी पड़ सकते हैं।
पौने दो लाख मतदाताओं वाली इस सीट में अकेले पिछड़े वर्ग की तादाद करीब एक लाख है। सबसे ज्यादा करीब 55 हजार मतदाता साहू समाज के हैं। बाकी 44 हजार अन्य पिछड़े वर्ग के हैं। अनुसूचित जाति के 26 व जनजाति के 20 हजार मतदाता भी चुनाव में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। कुल मिलाकर जातीय समीकरण ही इस सीट में प्रत्याशियों का भविष्य तय करता है। इसके बावजूद सत्तारुढ़ भाजपा ने मौजूदा विधायक चन्दूलाल साहू का टिकट काट दिया। बीते चुनाव में उन्हें टिकट मिलने पर समूचा साहू समाज लामबंद हो गया था।
नतीजतन, साहू ने तत्कालीन मंत्री अमितेश शुक्ल को 12 हजार वोटों से पटकनी दी थी। साहू का टिकट कटने से समाज का एक तबका नाराज है। इसकी एक झलक पांडुका में मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह की सभा में दिखाई दी, जिसमें साहू नदारद थे। प्रचार में उनकी भागीदारी नजर नहीं आ रही है। पार्टी का जिला अध्यक्ष होने के नाते वे जिले की सभी सीटों का दौरा कर रहे हैं। नुकसान की आशंका में भाजपा के नेता साहू समाज को मनाने का प्रयास कर रहे हैं। कांग्रेसी खेमा इस वोट बैंक में सेंध लगाने की फिराक में है।
भाजपा के प्रत्याशी बनाए गए संतोष उपाध्याय ने अपने जनसंपर्क और व्यवहार की बदौलत नाराज लोगों को मनाने की कोशिश की है। युवाओं की फौज खड़ी कर उन्होंने अपने पक्ष में अच्छा माहौल बना लिया है। कांग्रेस से भाजपा में आए उन्हें कुछ साल ही हुए हैं। उपाध्याय को टिकट मिलने के कारण पार्टी के पुराने कार्यकर्ता मायूस हैं। इसके बावजूद वे मन मसोस कर पार्टी प्रत्याशी का साथ दे रहे हैं। राजनीतिक प्रेक्षकों का मानना है कि युवाओं की इस टीम के सामने सबसे बड़ी चुनौती अपने पक्ष में मतदान कराने की है। कांग्रेस के पास मतदान कराने के लिए अनुभवी और समर्पित कार्यकर्ताओं की फौज है। इस मामले में उपाध्याय सिर्फ पार्टी काडर के भरोसे हैं।
कांग्रेस ने दोबारा अमितेश शुक्ल को मैदान में उतार कर अपनी खोई सीट हासिल करने का सपना संजोया है। शुक्ल का पूरा परिवार गाँव-गाँव का दौरा कर रहा है। कांग्रेसी खेमे को उम्मीद है कि साहू वोटों की नाराजगी का लाभ उन्हें मिलेगा। पार्टी से बगावत कर चुनाव लड़ने की तैयारी कर रही नंदिनी साहू का गुस्सा शांत कर शुक्ल ने साहू वोटों का बँटवारा होने से रोक दिया है।
कांग्रेस में टिकट वितरण विलंब से होने के कारण उनका प्रचार अभियान भाजपा से आगे नहीं निकल पाया है। अलबत्ता पूर्व केंद्रीय मंत्री विद्याचरण शुक्ल व पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह की सभाओं से पार्टी के अभियान को गति मिली है। पूर्व सांसद पवन दीवान भी कांग्रेस के प्रचार में निकल आए हैं। इसके बावजूद कि भाजपा प्रत्याशी उपाध्याय उनके अनुयायी हैं।
आधा दर्जन से ज्यादा आदिवासी प्रत्याशी कांग्रेस के लिए सिरदर्द साबित हो रहे हैं। इससे कांग्रेस पर परंपरागत वोट बैंक के छिन्न-भिन्न होने के खतरा मंडरा रहा है। इससे निपटने के लिए अभी कोई उपाय नहीं किए गए हैं। वहीं निर्दलीय प्रत्याशी अभिषेक मिश्रा ने क्षेत्र में धुँआधार प्रचार के जरिए कांग्रेस और भाजपा की नाक में दम कर दिया है। बसपा के प्रेमशंकर गौंटिया फिलहाल कोई चुनौती पेश नहीं कर पाए हैं। अलबत्ता पार्टी के वोट बैंक के अलावा नए मतदाताओं को रिझाने में वे भी कोई कोर-कसर बाकी नहीं रख रहे हैं। इलाके की ताजा तस्वीर भाजपा और कांग्रेस के बीच काँटे के मुकाबला दिखा रही है।