शाहरुख खान दिल्ली के हैं, पर उन्होंने टीम खरीदी है कोलकाता की। शिल्पा शेट्टी का राजस्थान से कोई ताल्लुक नहीं, पर वो मालिक हैं राजस्थान रॉयल्स की। प्रीति जिंटा शिमला की हैं, पर टीम उन्होंने खरीदी है पंजाब की। फिर मज़े की बात यह है कि राजस्थान रॉयल्स में राजस्थान का कोई खिलाड़ी इस बार नहीं है। पंजाब की टीम में पंजाब के अलावा भी देश-विदेश के कई खिलाड़ी हैं। कोलकाता नाइटराइडर्स में भी हालत यही है।
आईपीएल जब शुरू हुआ था तो लगा था कि यह प्रांतवाद बढ़ाने वाला एक और आयोजन है, पर धीरे-धीरे साफ होता जा रहा है कि यह विशुद्ध रूप से क्रिकेट उत्सव है। इसमें सारी टीमें आपकी हैं, सारे खिलाड़ी आपके हैं और यह भी सच है कि आपकी कोई टीम नहीं, आपका कोई खिलाड़ी नहीं। जो अच्छा खेले वही आपका।
क्रिकेट ने कटुता भी बहुत बढ़ाई है। एक ज़माना था जब भारत-पाकिस्तान क्रिकेट मैच को युद्ध की तरह लिया जाता था। बाँटने वाले देशभक्ति के प्रमाण-पत्र यह देखकर बाँटते थे कि आपने पाकिस्तानी खिलाड़ी के खेल पर तालियाँ बजाईं या भारतीय खिलाड़ी के खेल पर। इंग्लैंड में क्रिकेट के शौकीन हर अच्छे शॉट पर तालियाँ बजाया करते थे, मगर भारत-पाकिस्तान में अगर "दुश्मन देश" के खिलाड़ी को किसी ने सराह दिया तो वो गद्दार और काफिर ठहराया जाता था।
ऐसे में क्रिकेट को क्रिकेट से प्यार के चलते नहीं बल्कि इस उम्मीद में देखा जाता था कि हमारे खिलाड़ी दुश्मनों का भुर्ता बना देंगे और हम भुर्ता बनता देखकर बहुत आनंद लेंगे। इंग्लैंड से मैच होता था तो हम सन सैतालीस में पहुँच जाया करते थे और पाकिस्तान से मैच होने पर सन पैंसठ में। क्रिकेट के ज़रिए हम उग्रराष्ट्रवादी हो जाया करते थे। अपने देश में क्रिकेट के बहुत लोकप्रिय होने का एक कारण यह भी है कि हम क्रिकेट को जंग की तरह लिया करते थे।
मगर कभी-कभी मर्ज खुद दवा बन जाया करते हैं। अब जो आईपीएल हो रहा है, उसने राष्ट्रवाद और प्रांतवाद को कूट-पीसकर हवा में उड़ा दिया है। पिछले साल सोहेल तनवीर के हर विकेट पर देश के करोड़ों क्रिकेट प्रेमी झूम जाते थे। अब क्रिस गेल को छक्के लगाते देख मज़ा मिलता है। अब दर्शक किसी टीम की हिमायत इसलिए नहीं करता कि वो टीम देश या प्रदेश की है।
मुंबई में कितना ही प्रांतवाद क्यों न हो, मुंबई की टीम जयसूर्या के बिना आधी हो जाती है। कोई भी टीम अन्य देशी-विदेशी खिलाड़ियों के बगैर जीत ही नहीं सकती। बेंगलुरू रॉयल चैलेंजर्स की टीम भी नाम की ही बेंगलुरू वाली है। डेक्कन चार्जर्स हैदराबाद के हीरो हैं गिलक्रिस्ट और हरशल गिब्स, जो न तो मसालेदार बिरयानी खा सकते हैं और न हैदराबादी उर्दू का एक शब्द समझ सकते हैं। उन्हें न तो तेलंगाना की कोई जानकारी होगी और न ही मख्दूम मुहीउद्दीन का नाम उन्होंने सुना होगा।
आईपीएल की सबसे बड़ी खूबसूरती यही है कि क्रिकेट पहली बार राष्ट्रवाद और प्रांतवाद से मुक्त हुआ है। पहली बार दर्शक बिना तनाव के शुद्ध क्रिकेट देख रहे हैं। बेशक फिल्मी सितारों को भी इसका श्रेय दिया जाना चाहिए। फिल्म सितारे भी यही चाहते हैं कि लोग एक रहें और देश, प्रदेश और जात-धरम के नाम पर न बँटे। आईपीएल जैसे आयोजन अन्य खेलों के भी होने चाहिए। खेल शुद्ध मज़ा है। देश-प्रांत के झगड़े खेलों के साथ-साथ हर काम को ज़हरीला कर देते हैं।