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Written By BBC Hindi

अवसाद बढ़ाता इंटरनेट

अवसाद बढ़ाता इंटरनेट -
ब्रिटेन के वैज्ञानिकों का कहना है कि इंटरनेट पर ज्यादा समय बिताने वाले लोगों के अवसाद ग्रस्त होने का खतरा ज्यादा रहता है।

BBC
इस बारे में ‘साइकोपैथोलॉजी’ नाम की पत्रिका में छपी एक रिपोर्ट में कहा गया है कि जिन लोगों पर ये सर्वे किया गया वे इंटरनेट के आदी थे और इनमें से 1.2 फीसद अवसाद का शिकार थे।

ब्रिटन के लीड्स विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने ये नतीजे ऑनलाइन पर दिए प्रश्नपत्र के 1,319 जवाबों के आधार पर निकाले हैं। जवाब देने वाले 18 व्यक्ति यानी 1.2 फीसदी इंटरनेट के आदी थे. जवाब देने वालों का आयुवर्ग 16 से 51 वर्ष के बीच था।

अँधेरा पक्ष : वैज्ञानिकों का कहना है कि इंटरनेट के कुछ उपभोक्ता तो इंटरनेट के इतने आदी हैं कि वास्तविक जीवन में लोगों से मिलने जुलने की जगह, वे ऑनलाइन चैटरूम्स और सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर वक़्त बिताना ज्यादा पसंद करते हैं।

वैज्ञीनिकों की इस टीम की प्रमुख डॉक्टर कैटरियोना मौरिसंस का कहना है, 'आधुनिक जीवन में इंटरनेट की बहुत बड़ी भूमिका है, लेकिन इसके फायदों के साथ एक अँधेरा पक्ष भी जुड़ा हुआ है। हममें से अधिकतर लोग जहाँ इंटरनेट का इस्तेमाल खरीदारी, बिलों के भुगतान और ई-मेल आदि के लिए करते हैं वहीं कुछ लोग ऐसे भी हैं जो इंटरनेट पर इतना समय बिताते हैं कि उनकी रोजमर्रा के कामकाज पर भी उसका असर पड़ने लगता है'

रिपोर्ट में बताया गया है कि इंटरनेट के आदि लोग उन लोगों के मुकाबले लगभग 5 गुना ज्यादा अवसादग्रस्त होते हैं, जो जरूरी होने पर ही इंटरनेट का इस्तेमाल करते हैं।

लंदन के किंग्स कॉलेज के मनोविज्ञान विभाग के डॉ. वॉहन बैल ने इस समस्या के कारण और प्रभाव पर सवाल उठाते हुए कहा है कि इसी विषय पर आई पिछली रिपोर्ट में ये कहा गया था कि पहले से ही अवसाद ग्रस्त या उत्सुक किस्म के लोग इंटरनेट का ज्यादा इस्तेमाल करते हैं।

अपनी इस दलील के पक्ष में डॉ वॉहन बैल ने आगे बताया, 'कुछ अवसादग्रस्त और जिज्ञासु किस्म के लोग होते हैं जो अपनी सारी जिंदगी इंटरनेट पर समय बिताते हैं, लेकिन ऐसे ही कुछ और लोग भी हैं, जो बहुत ज्यादा टीवी देखते हैं या पुस्तकों में अपने को डुबो देते हैं या खरीदारी की अति कर देते हैं इसलिए ऐसा कोई प्रमाण नहीं हैं जिनसे पता चले कि समस्या की असली जड़ इंटरनेट है।'

इस ताजा अनुसंधान के आलोचकों का ये भी कहना है कि इंटरनेट के आदि होने या न होने के बीच के अंतर को जान पाना इतना आसान नहीं है क्योंकि ये भी हो सकता है कि जिन लोगों पर सर्वे किया गया, वे पक्षपात पूर्ण तरीके से चुने गए हों।