दीपावली महोत्सव : पांच दिन कैसे करें पूजन
दीपावली : 5 दिन का पूजन विधान
दीपावली के दिन महालक्ष्मी के साकार रूप का पूजन करने का विधान है। इस पूजन में उनके रूप के विषय में कुछ बातें अवश्य ध्यान देने योग्य हैं। महालक्ष्मी के अकेले का पूजन नहीं किया जाना चाहिए। उनके साथ गणेशजी, सरस्वतीजी होना चाहिए या विष्णुजी के साथ हो सकती हैं या नृसिंहजी के या वराह देवता के साथ ही लक्ष्मीजी का पूजन करना चाहिए। दुकान में खड़ी लक्ष्मीजी का तथा घर में बैठी हुईं लक्ष्मीजी का पूजन करना चाहिए। लक्ष्मीजी के पैर किसी भी स्थान में नहीं दिखाई दे ऐसा चित्र या विग्रह होना चाहिए। पैर को कमलपुष्प में या आभूषण में दबा होना चाहिए। पूजन करते समय देवी का मुंह पश्चिम में तथा भक्त का मुंह पूर्व में की स्थिति श्रेष्ठतम है। देवी की स्थापना पूर्व-उत्तर कोने में (ईशान कोण में) पूर्व की दीवार पर या उत्तर की दीवार पर, भवन-क्षेत्र, कार्यालय के मध्य स्थान पर करना चाहिए। देवी को लाल, गुलाबी, सिंदूर रेशमी कपड़े पर भू-स्तर से ऊपर स्थापित करना चाहिए। जिस कागज पर देवी का चित्र हो उसका आकार आयताकार श्रेष्ठतम चौकोर अच्छा माना गया है। देवी का चित्र आभूषण सहित होना चाहिए।
धन त्रयोदशी 5
दिवसीय दीपावली पर्व का आरंभ धन त्रयोदशी से होता है। इस दिन सायंकाल घर के मुख्य द्वार पर यमराज के निमित्त एक अन्न से भरे पात्र में दक्षिण मुख करके दीपक रखने एवं उसका पूजन करके प्रज्वलित करने एवं यमराज से प्रार्थना करने पर असामयिक मृत्यु से बचा जा सकता है। धनतेरस के दिन भगवान धनवंतरी का जन्म हुआ था। समुद्र मंथन के समय इसी दिन धनवंतरी सभी रोगों के लिए औषधि कलश में लेकर प्रकट हुए थे। अतः इस दिन भगवान धनवंतरी का पूजन श्रद्धापूर्वक करना चाहिए जिससे दीर्घ जीवन एवं आरोग्य की प्राप्ति होती है। धनतेरस के दिन अपनी शक्ति अनुसार बर्तन क्रय करके घर लाना चाहिए एवं उसका पूजन करके प्रथम उपयोग भगवान के लिए करने से धन-धान्य की कमी वर्षपर्यन्त नहीं रहती है।