-वेबदुनिया डेस्क अमेरिका के नए राष्ट्रपति के रूप में बराक ओबामा का चुना जाना अमेरिका में नए युग का सूत्रपात माना जा रहा है। उन्हें पहला अश्वेत अमेरिकी राष्ट्रपति करार देकर रंगभेद के खिलाफ सालों से संघर्ष कर रहे लोगों की जीत बताया जा रहा है।
यह स्वाभाविक भी है कि जिस अधिकार और सम्मान की खातिर कोई समाज बरसों से अपमान के घूँट पी रहा हो, उसके लिए ओबामा की विजय वास्तव में सुखदायक है। इसे लेकर उफने उत्साह को नजरअंदाज भी नहीं किया जा सकता। कहीं न कहीं यह हजारों-हजार लोगों के जख्मों पर मरहम जैसा है। असल में अश्वैत समुदाय ओबामा को अपने रहनुमाँ के रूप में देख रहा है।
...लेकिन गहराई में जाकर देखें तो सुपरपॉवर में सत्ता पाने वाले इस शख्स की जीत सिर्फ नस्ल और रंग में सिमटकर रह गई है। हर कोई इसे नीतिगत, मुद्दों पर आधारित और परिवर्तन के सहज सिद्धांत से ज्यादा दो समाजों के बीच की लड़ाई से जोड़कर देख रहा है।
अगर वाकई ऐसा है तो ओबामा की पारिवारिक पृष्ठभूमि कुछ और ही बयाँ करती है। यदि उसे आधार बनाया जाए तो ओबामा के सीने से पहला अश्वेत राष्ट्रपति होने का तमगा पूरी तरह अलग हो जाएगा।
...क्योंकि ओबामा के पिता तो अफ्रीकी देश केन्या के निवासी थे, लेकिन उनकी माँ एक श्वेत महिला थीं। ऐसे में ओबामा को पूरी तरह अश्वैत कहना बॉयोलॉजीकली मुनासिब नहीं होगा। इनसे पूर्व भी अब्राहम लिंकन, थॉमस जेफरसन, वारेन हार्डिंग, कॉलिन कुलिज भी अमेरिकी राष्ट्रपति रह चुके हैं, जिनका संबंध कहीं न कहीं अश्वेत समुदाय से रहा है। इन चारों पूर्व राष्ट्रपतियों के पूर्वज अश्वेत थे।
ऐसे में यह कहना जल्दबाजी होगी कि ओबामा के राष्ट्रपति बनने से सालों से चला रहा शीर्ष पर कायम देश में नस्लभेद की बुराई आसानी से दूर हो पाएगी।