रविवार, 6 अक्टूबर 2024
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  4. ।। मां गायत्री चालीसा ।।
Written By WD

मां गायत्री चालीसा...

gayatri chalisa
ह्रीं श्रीं क्लीं मेधा प्रभा जीवन ज्योति प्रचंड ॥
 
शांति कांति जागृत प्रगति रचना शक्ति अखंड ॥1॥
 
जगत जननी मंगल करनि गायत्री सुखधाम ।
 
प्रणवों सावित्री स्वधा स्वाहा पूरन काम ॥ २॥
 
भूर्भुवः स्वः ॐ युत जननी ।
 
गायत्री नित कलिमल दहनी ॥॥
 
अक्षर चौबीस परम पुनीता ।
 
इनमें बसें शास्त्र श्रुति गीता ॥॥
 
शाश्वत सतोगुणी सत रूपा ।
 
सत्य सनातन सुधा अनूपा ॥॥
 
हंसारूढ श्वेतांबर धारी ।
 
स्वर्ण कांति शुचि गगन-बिहारी ॥॥
 
पुस्तक पुष्प कमंडलु माला ।
 
शुभ्र वर्ण तनु नयन विशाला ॥॥
 
ध्यान धरत पुलकित हित होई ।
 
सुख उपजत दुख दुर्मति खोई ॥॥
 
कामधेनु तुम सुर तरु छाया ।
 
निराकार की अद्भुत माया ॥॥
 
तुम्हरी शरण गहै जो कोई ।
 
तरै सकल संकट सों सोई ॥॥
 
सरस्वती लक्ष्मी तुम काली ।
 
दिपै तुम्हारी ज्योति निराली ॥॥
 
तुम्हरी महिमा पार न पावैं ।
 
जो शारद शत मुख गुन गावैं ॥॥
 
चार वेद की मात पुनीता ।
 
तुम ब्रह्माणी गौरी सीता ॥॥
 
महामंत्र जितने जग माहीं ।
 
कोउ गायत्री सम नाहीं ॥॥
 
सुमिरत हिय में ज्ञान प्रकासै ।
 
आलस पाप अविद्या नासै ॥॥
 
सृष्टि बीज जग जननि भवानी ।
 
कालरात्रि वरदा कल्याणी ॥॥
 
ब्रह्मा विष्णु रुद्र सुर जेते ।
 
तुम सों पावें सुरता तेते ॥॥
 
तुम भक्तन की भक्त तुम्हारे ।
 
जननिहिं पुत्र प्राण ते प्यारे ॥॥
 
महिमा अपरम्पार तुम्हारी ।
 
जय जय जय त्रिपदा भयहारी ॥॥
 
पूरित सकल ज्ञान विज्ञाना ।
 
तुम सम अधिक न जगमें आना ॥॥
 
तुमहिं जानि कछु रहै न शेषा ।
 
तुमहिं पाय कछु रहै न क्लेसा ॥॥
 
जानत तुमहिं तुमहिं व्है जाई ।
 
पारस परसि कुधातु सुहाई ॥॥
 
तुम्हरी शक्ति दिपै सब ठाई ।
 
माता तुम सब ठौर समाई ॥॥
 
ग्रह नक्षत्र ब्रह्मांड घनेरे ।
 
सब गतिवान तुम्हारे प्रेरे ॥॥
 
सकल सृष्टि की प्राण विधाता ।
 
पालक पोषक नाशक त्राता ॥॥
 
मातेश्वरी दया व्रत धारी ।
 
तुम सन तरे पातकी भारी ॥॥
 
जापर कृपा तुम्हारी होई ।
 
तापर कृपा करें सब कोई ॥॥
 
मंद बुद्धि ते बुधि बल पावें ।
 
रोगी रोग रहित हो जावें ॥॥
 
दरिद्र मिटै कटै सब पीरा ।
 
नाशै दुख हरै भव भीरा ॥॥
 
गृह क्लेश चित चिंता भारी ।
 
नासै गायत्री भय हारी ॥॥
 
संतति हीन सुसंतति पावें ।
 
सुख संपति युत मोद मनावें ॥॥
 
भूत पिशाच सबै भय खावें ।
 
यम के दूत निकट नहिं आवें ॥॥
 
जो सधवा सुमिरें चित लाई ।
 
अछत सुहाग सदा सुखदाई ॥॥
 
घर वर सुख प्रद लहैं कुमारी ।
 
विधवा रहें सत्य व्रत धारी ॥॥
 
जयति जयति जगदंब भवानी ।
 
तुम सम ओर दयालु न दानी ॥॥
 
जो सतगुरु सो दीक्षा पावे ।
 
सो साधन को सफल बनावे ॥॥
 
सुमिरन करे सुरूचि बडभागी ।
 
लहै मनोरथ गृही विरागी ॥॥
 
अष्ट सिद्धि नवनिधि की दाता ।
 
सब समर्थ गायत्री माता ॥॥
 
ऋषि मुनि यती तपस्वी योगी ।
 
आरत अर्थी चिंतित भोगी ॥॥
 
जो जो शरण तुम्हारी आवें ।
 
सो सो मन वांछित फल पावें ॥॥
 
बल बुधि विद्या शील स्वभाउ ।
 
धन वैभव यश तेज उछाउ ॥॥
 
सकल बढें उपजें सुख नाना ।
 
जे यह पाठ करै धरि ध्याना ॥
 
यह चालीसा भक्ति युत पाठ करै जो कोई ।
 
तापर कृपा प्रसन्नता गायत्री की होय ॥