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Last Updated :भोपाल , शुक्रवार, 30 दिसंबर 2016 (20:03 IST)

साल 2016 : सिमी आतंकियों की मौत के कारण चर्चाओं में मध्यप्रदेश

साल 2016 : सिमी आतंकियों की मौत के  कारण चर्चाओं में मध्यप्रदेश - big news in  Madhya Pradesh in  2016
भोपाल। मध्यप्रदेश की राजनीति के लिए वर्ष 2016 उतार-चढ़ाव के दौर से भरा रहा। एक तरफ जहां मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस ने धार्मिक समागम सिंहस्थ महाकुंभ और दिवाली की रात स्टूडेंट इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया के 8 आतंकवादियों के भोपाल की जेल से भागने और बाद में मुठभेड़ में मारे जाने की घटना पर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) नीत सरकार को भरपूर घेरने की कोशिशें कीं, वहीं तमाम अटकलों के बीच भी हर उपचुनाव में भाजपा की जीत ने खासी सुर्खियां बटोरीं। 
प्रदेश ने इस वर्ष 4 पूर्व राज्यपालों मोहम्मद शफी कुरैशी, भाई महावीर, बलराम जाखड़ और रामनरेश यादव को खो दिया। पूर्व राज्यपाल रामनरेश यादव का कार्यकाल समाप्त होने के बाद गुजरात के राज्यपाल ओमप्रकाश कोहली ने प्रदेश के राज्यपाल का अतिरिक्त प्रभार ग्रहण किया। 
 
साल के जाते-जाते प्रदेश के 2 बार मुख्यमंत्री रह चुके भाजपा के वरिष्ठ नेता सुंदरलाल पटवा ने भी अचानक दुनिया को अलविदा कह दिया। पटवा के निधन की खबर सुनते ही प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भी अल्प प्रवास के तहत उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करने भोपाल पहुंचे। इसी वर्ष अक्टूबर में विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष और भिंड जिले के अटेर से कांग्रेस विधायक सत्यदेव कटारे का भी कैंसर से लंबी लड़ाई के बाद मुंबई में निधन हो गया। 
 
मध्यप्रदेश पूरे वर्ष प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की विभिन्न मौकों पर 5 यात्राओं के चलते भी राष्ट्रीय स्तर पर सुर्खियों में रहा। फरवरी में प्रधानमंत्री मोदी ने सीहोर जिले में किसान कल्याण मेले को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के दिशा-निर्देश देश को समर्पित किए।
 
अप्रैल महीने की 14 तारीख को प्रधानमंत्री मोदी का डॉ. भीमराव अंबेडकर की जन्मस्थली महू पहुंचकर डॉ अंबेडकर को उनके 125वें जन्मदिन पर नमन करना भी चर्चाओं में रहा। मई में मोदी ने सिंहस्थ में आयोजित 3 दिवसीय अंतरराष्ट्रीय वैचारिक महाकुंभ के समापन समारोह को संबोधित किया, वहीं अगस्त में प्रधानमंत्री ने चन्द्रशेखर आजाद की जन्मस्थली अलीराजपुर जिले के भाबरा में विशाल आदिवासी समुदाय के बीच आजादी के 70 साल के मौके पर आयोजित 'आजादी 70 वर्ष : याद करो कुर्बानी' कार्यक्रम की शुरुआत की। 
 
इसी वर्ष मोदी ने भोपाल में शहीदों की स्मृति में बनाए गए शौर्य स्मारक का लोकार्पण किया। अपनी इसी यात्रा के दौरान प्रधानमंत्री ने राजधानी भोपाल में चातुर्मास कर रहे दिगंबर जैन संत आचार्य विद्यासागरजी महाराज से भी मुलाकात की। 
 
प्रदेश के मुखिया शिवराज सिंह चौहान इस साल प्रदेश के ऐसे पहले मुख्यमंत्री बन गए, जो पिछले 11 साल से इस पद पर काबिज हैं। 29 नवंबर को चौहान के मुख्यमंत्रित्व के 11 साल पूरे होने पर एक हितग्राही सम्मेलन आयोजित किया गया। इसी माह प्रदेश में नर्मदा संरक्षण के लिए 'नमामि देवि नर्मदे' सेवा यात्रा शुरू की गई। 
 
पिछले वर्ष की तरह इस बार भी प्रदेश में व्यापमं घोटाला समय-समय पर सुर्खियों में रहा। उच्चतम न्यायालय ने केंद्रीय जांच ब्यूरो को घोटाले से जुड़े 170 में से 37 मामलों की जांच पूरी करने के निर्देश दिए। इसके कुछ ही महीने बाद जांच एजेंसी ने शीर्ष अदालत को जांच परीक्षण के हवाले से बताया कि हार्ड डिस्क के साथ छेडछाड़ नहीं हुई है। इसी साल घोटाले से जुड़े कई प्रमुख आरोपियों को जमानत भी मिल गई। 
 
देश के इतिहास को बदल देने वाली नवंबर महीने में हुई नोटबंदी ने मध्यप्रदेश में भी व्यापक असर डाला। 8 नवंबर को हुई नोटबंदी के बाद राजधानी भोपाल समेत प्रदेश के लगभग सभी हिस्सों में बैंकों में अभूतपूर्व भीड़ और एटीएम के बाहर लंबी-लंबी कतारें देखने को मिलीं। आयकर विभाग ने 22 दिसंबर तक मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में लगभग 400 बैंक खातों में 1-1 करोड़ रुपए से भी ज्यादा की राशि जमा किए जाने की जानकारी दी। 
 
मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस में गुटबाजी की खबरों के बीच आम आदमी पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की दिसंबर में भोपाल में हुई रैली को भी राष्ट्रीय मीडिया में भरपूर जगह मिली। केजरीवाल ने भोपाल के एक मैदान से हुंकार भरते हुए नोटबंदी पर हमला बोला और दावा किया कि केंद्र सरकार ने ये कदम व्यावसायिक घरानों को लाभ पहुंचाने के लिए उठाया है।
 
दिवाली की गहमागहमी के बीच सिमी के 8 आतंकवादियों के एक जेल प्रहरी की हत्या कर जेल से भागने और बाद में पुलिस मुठभेड़ में मारे जाने की घटना ने राजधानी भोपाल को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सुर्खियों में ला दिया। मामले में सुरक्षा व्यवस्था की खामियों के सामने आने के बाद प्रदेश सरकार की कई मोर्चों पर किरकिरी हुई। पूरा मामला अब न्यायिक जांच के दायरे में है।
 
वहीं तेजी से विकास करते मध्यप्रदेश के दावों के बीच राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने सितंबर में प्रदेश के श्योपुर में कुपोषण से 5 महीने में लगभग 116 बच्चों की मौत संबंधित खबरों पर स्वत: संज्ञान लेते हुए प्रदेश सरकार को झटका दिया। आयोग ने कहा कि जिले के 3 पोषण पुनर्वास केंद्रों में क्षमता से अधिक बच्चों को रखा गया है। मामले की गूंज विधानसभा के शीतकालीन सत्र में भी सुनाई दी।
 
सितंबर महीने में प्रदेश के बालाघाट में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के एक प्रचारक सुरेश यादव की पुलिस द्वारा कथित तौर पर बर्बर पिटाई ने भी प्रदेश के राजनीतिक और प्रशासनिक गलियारों में खलबली मचाई। संघ ने मामले में आरोपियों की गिरफ्तारी की मांग की। घटनाक्रम के बाद 2 अधिकारियों का तबादला कर दिया गया, वहीं लगभग 1 दर्जन पुलिसकर्मियों के खिलाफ मामला दर्ज किया गया।
 
चुनाव की दृष्टि से ये साल भाजपा के लिए खुशियों की सौगात लेकर आया। प्रदेश के 3 विधानसभा और 1 लोकसभा सीट पर इस वर्ष उपचुनाव हुए, जो सभी भाजपा की झोली में गईं। प्रदेश सरकार और भाजपा ने इस साल अपने स्वरूप में भी बदलाव किया। प्रदेश के 2 उम्रदराज और वरिष्ठ मंत्रियों बाबूलाल गौर और सरताज सिंह को केंद्रीय नेतृत्व द्वारा मंत्रियों की अधिकतम उम्र 75 वर्ष निर्धारित किए जाने का हवाला देते हुए पद से हटा दिया गया। इसके पहले जनवरी में लोकसभा सांसद और पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष नंदकुमार सिंह चौहान को दोबारा सर्वसम्मति से पार्टी अध्यक्ष चुन लिया गया।
 
इसी साल मध्यप्रदेश को देश में पहली बार 'आनंद मंत्रालय' स्थापित करने वाला पहला प्रदेश बनने का गौरव मिला। मंत्रालय प्रदेश के लोगों में खुशियां फैलाने के लिए स्थापित किया गया है।
 
प्रदेश से 3 सीटों के लिए होने वाले राज्यसभा चुनाव के पहले 'हाई वोल्टेज ड्रामा' भी देखने को मिला। भाजपा ने इन सीटों के लिए अनिल माधव दवे और एमजे अकबर को उतारा, वहीं कांग्रेस के विवेक तन्खा को पराजित करने के लिए भाजपा महामंत्री विनोद गोठिया ने भी अचानक मैदान में उतरते हुए निर्दलीय के तौर पर पर्चा दाखिल कर दिया, हालांकि तीसरी सीट अपने खाते में लेने के लिए अक्सर खेमों में बंटी रहने वाली कांग्रेस ने भी जबर्दस्त एकता का परिचय दिया जिसका परिणाम पार्टी के लिए सकारात्मक रहा।
 
उपचुनावों में मिली हार के बाद भी कांग्रेस गुटबाजी में ही उलझी दिखी। नेता प्रतिपक्ष सत्यदेव कटारे के निधन के बाद भी पार्टी की ओर से कोई नेता प्रतिपक्ष नहीं चुना गया जिसके चलते शीतकालीन सत्र भी उपनेता प्रतिपक्ष बाला बच्चन की अगुवाई में ही चला।
 
इसके पहले अप्रैल और मई महीने में उज्जैन ने सिंहस्थ मेले के दौरान देश-विदेश से आए करोड़ों लोगों की अगवानी की, हालांकि अचानक आए आंधी-तूफान के चलते कई लोगों को मेले के दौरान अपनी जान से हाथ धोना पड़ा, इसके बाद भी सिंहस्थ में आने वालों का उत्साह कम नहीं हुआ।
 
विपक्षी दल कांग्रेस ने सिंहस्थ में भ्रष्टाचार के आरोप लगाते हुए सरकार को घेरने की भरपूर कोशिशें कीं। पार्टी ने सरकार से सिंहस्थ पर श्वेत पत्र लाने की मांग करते हुए मुद्दे को मानसून और शीतकालीन सत्र में प्रमुखता से उठाया। (वार्ता)