Last Modified: नई दिल्ली ,
शनिवार, 24 दिसंबर 2011 (18:37 IST)
फॉर्मूला-1 से विश्व पटल पर चमका भारत
भारत ने इस साल पहली फॉर्मूला वन ग्रांप्री की सफल मेजबानी से विश्व खेलों में अपना कद और ऊंचा किया, लेकिन देश के ड्राइवरों का इस ग्लैमरस और महंगे खेल में जूझना जारी है।
अंतरराष्ट्रीय मोटरस्पोर्ट प्रतियोगिता की मेजबानी करना निश्चित रूप से काफी चुनौतीपूर्ण कार्य था विशेषकर पिछले साल विवादों से भरे राष्ट्रमंडल खेलों की मेजबानी को देखते हुए। लेकिन फॉर्मूला वन के आयोजक जेपी ग्रुप ने बेहतरीन रेसिंग सुविधाएं मुहैया कराकर बिना किसी समस्या के रेस आयोजित कराई।
ग्रेटर नोएडा के बुद्ध अंतरराष्ट्रीय सर्किट की भी शीर्ष ड्राइवरों जैसे दो बार के विश्व चैम्पियन सेबेश्चियन वेटेल ने तारीफ की। यह रेस और भी शानदार हो सकती थी, अगर देश के ड्राइवर करूण चंडोक को भी नरेन कार्तिकेयन के साथ इसमें भाग लेने का मौका मिल जाता।
लेकिन लोटस टीम ने भावुक होने के बजाय दिमाग से काम लेते हुए अनुभवी ड्राइवर को ट्रेक पर उतारा जिससे चंडोक अपनी घरेलू सरजमीं पर आयोजित रेस में भाग लेने से महरूम रह गये ।
कार्तिकेयन अपने हिस्पानिया के साथी ऑस्ट्रेलिया के डेनियल रिकाडरे से आगे 17वें स्थान पर रहे। यह सत्र समाप्त हो गया है, लेकिन कार्तिकेयन को अब भी भरोसा नहीं है कि उनकी टीम उन्हें बरकरार रखेगी या नहीं। चंडोक ने भी स्वीकार किया कि वह टेस्ट और रिजर्व ड्राइवर के रूप में बरकार रहेंगे। पूरे 2011 सत्र में चंडोक सिर्फ जर्मन ग्रांप्री में ही रेसिंग कर पाए थे और पूरे सत्र में उन्होंने लोटस के लिये टेस्ट ड्राइव की थी।
कार्तिकेयन ने रिकाडरे द्वारा हटाए जाने से पहले पहली आठ रेस में अपनी टीम के लिए रेसिंग की थी। इसके बाद उन्हें घरेलू प्रशंसकों के सामने रेसिंग की अनुमति दे दी गई। इसमें कोई शक नहीं कि फॉर्मूला वन काफी महंगा खेल है और टीमें प्रायोजकों के लिए पूरी तरह से ड्राइवरों पर निर्भर होती है।
इससे कार्तिकेयन का काम और कठिन हो गया था क्योंकि इस खेल में भारतीय ड्राइवरों पर ज्यादातर कंपनियां निवेश की इच्छुक नहीं हैं। इसे देखते हुए चंडोक और कार्तिकेयन के लिये आगामी वषरें में अपने करियर को जारी रखना काफी चुनौतीपूर्ण होगा।
स्थानीय टीम फोर्स इंडिया में कोई भी भारतीय ड्राइवर मौजूद नहीं है और घरेलू ग्रांप्री में उसका प्रदर्शन ठीक रहा जिसमें एड्रियन सुतिल ने नौं वे स्थान पर रहकर टीम को दो अंक दिलाए।
विजय माल्या की टीम को तब काफी बड़ा सहारा मिला जब सहारा ग्रुप ने इसमें एक करोड़ डॉलर की राशि निवेश करने का फैसला किया। यह घोषणा इंडियन ग्रांप्री से तुंरत पहले हुई जिससे टीम को सहारा फोर्स इंडिया कहा जाने लगा। टीम ने कंस्ट्रक्टर्स सूची में छठा स्थान हासिल कर शानदार प्रदर्शन किया। टीम ने 2010 की तुलना में एक पायदान का सुधार किया जिसमें फोर्स इंडिया सातवें स्थान पर रही थी।
फोर्स इंडिया ने मेलबर्न, सिंगापुर, अबुधाबी और ब्राजील में सत्र की अंतिम रेस में चार बार दोहरे अंक हासिल किए। साल के अंत में टीम ने सुतिल को हटा दिया और उसने पाल डि रेस्टा के साथ टेस्ट ड्राइवर निको हुले कनबर्ग को रेसिंग सीट पर बिठाया।
रेस्टा ने अपने पहले सत्र में 27 अंक हासिल कर अच्छा काम किया जिससे माल्या को उनकी योग्यता पर काफी भरोसा है और इसलिए उन्हें बरकरार रखने का फैसला किया गया। (भाषा)