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Written By नृपेंद्र गुप्ता
Last Updated : शुक्रवार, 26 अगस्त 2022 (12:51 IST)

क्या है शिक्षा का मूल उद्देश्य और कहां हो रही है चूक?

क्या है शिक्षा का मूल उद्देश्य और कहां हो रही है चूक? - education in india
आजादी के बाद के 75 सालों में हमने शिक्षा के क्षेत्र में काफी तरक्की की है। आज देश के कई शहरों में IIT, IIM जैसी संस्थाएं  काम कर रही है। इंजीनियरिंग और मेडिकल कॉलेजों की भी भरमार है। बड़ी बड़ी इमारतों में उच्च शिक्षा प्राप्त करते बच्चों को देख गर्व की अनुभूति होती है। लेकिन इन सब के बीच कुछ बातें ऐसी भी है जो खटकती है। आजादी के अमृत महोत्सव के अंतर्गत  'कल आज और कल' सीरीज के तहत इस विषय पर वेबदुनिया ने ख्यात शिक्षाविद्‍ और IIST, IIP और IIMR जैसी शैक्षणिक  संस्थाओं के डायरेक्टर जनरल अरुण एस भटनागर से चर्चा की। 
 
उन्होंने कहा कि आजादी के समय डेंटल कॉलेज 4 थे आज 323 है। 28 मेडिकल कॉलेज थे आज 618 है। 33 इंजीनियरिंग कॉलेज थे आज 6000 है। आज युवा वर्ग इंजीनियरिंग कॉलेज और मेडिकल कॉलेज पास होकर निकल रहा है, वह हमारी शक्ति है। आजादी के बाद भले ही देश में कॉलेज बहुत बढ़े हैं, लेकिन शिक्षा व्यवस्था में बहुत अधिक सुधार की आवश्यकता है। 
 

क्या है शिक्षा का मूल उद्देश्य : भटनागर ने कहा कि शिक्षा का मूल उद्देश्य बच्चों की अंतर्निहित प्रतिभा को सामने लाना है। ऋषि  उद्दालक ने उनके शिष्य श्वेतकेतु से कहा था कि तत्वमसि श्वेतकेतु। तुम वही हो श्वेतकेतु जो तुम खोज रहे हो। बच्चों को उनके अंदर जो छुपी हुई प्रतिभा है उसके बारे में ज्ञान नहीं है। शिक्षक, शिक्षण संस्थान और शिक्षा व्यवस्था का यह दायित्व है कि उसे  बाहर लाए। उसे मौका दे, मंच प्रदान करें। उसका सर्वांगीण विकास करें।
 
हम अपने समूह के कॉलेजों में समग्र समुत्कर्ष योजना चला रहे हैं। इसका मतलब है समग्र रूप से उत्थान करना। इसके योजना के तहत हम छात्रों का फिजिकली, मेंटली और इथिकली फिटनेस पर काम कर रहे हैं। ताकि वह देश, समाज और प्रकृति के प्रति अपने कर्तव्यों को जानें।
ग्रीन वेव मूवमेंट : उन्होंने कहा कि इसके लिए हमने अपने कॉलेजों में ग्रीन वेव मूवमेंट शुरू किया है। इसमें हम एग्रो फॉरेस्टी को  बढ़ावा दे रहे हैं। यहां बच्चे पौधे लगाते हैं। प्लांटेशन के साथ वॉटर हार्वेस्टिंग, प्लास्टिक का उपयोग कम से कम करने की प्रेरणा  देते हैं। इससे बच्चों में अपनी भूमि के प्रति, जमीन के प्रति चेतना आती है। अगर हमने पर्यावरण पर ध्यान नहीं दिया, पृथ्वी का ख्याल नहीं रखा तो मानव सभ्यता के पास बहुत कम समय बचा है। सेव द सॉइल जैसे अभियान बहुत जरूरी है। वृक्षारोपण बहुत जरूरी हैं। 
 
होलिस्टिक हार्टफुल मेडिटेशन सोसाइटी 100 से ज्यादा देशों में काम कर रही है, इसके साथ AICTE ने एक MOU साइन किया है ताकि इच्छुक छा‍त्रों को योग और ध्यान की शिक्षा मुफ्त दी जा सके। हमने भी तीनों कॉलेजों के लिए MOU साइन किए ताकि लोगों को ध्यान के बारे में जानकारी मिल सके।
 
युवा पीढ़ी को कोई कुछ बता नहीं रहा : आज युवा पीढ़ी को कोई कुछ बता नहीं रहा। वह दिग्भ्रमित हो रही है। अंग्रेज चले गए  लेकिन हमारी मानसिकता वेस्टर्न ही है। अब जैसे कथक 4 सेंचुरी BC का है। लेकिन किसी को पता नहीं। हमारे यहां नेशनल  गैलरी का म्यूजियम देखने के लिए साल भर में केवल 30 हजार लोग आते हैं। लंदन की गैलरी को देखने के लिए हर साल 40  लाख लोग आते हैं।
 
हमारी पुरानी सभ्यता के बारे में लोग ज्यादा नहीं जानते। कणाद, वराहमिहिर जैसे दिग्गजों के बारे में कितने लोग जानते हैं। हमने होस्टल का नाम वराहमिहिर के नाम पर रखा तो एक बच्चे ने पूछा वराहमिहिर कौन थे? मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ, मैने कहा- वराहमिहिर तो उज्जैन के थे, विक्रमादित्य के 9 रत्नों में से थे। अगर इनके बारे में लोग नहीं जानते तो दोष किसका है, बच्चों का या आपका?
 
संस्कृति से जुड़ाव जरूरी : उन्होंने कहा कि अपनी संस्कृति से जुड़ा होना तो बहुत ही गर्व की बात है। इससे जुड़ते हुए आप जो  सीखना चाहते हैं सीखिए। किसी ने मना नहीं किया। स्पेनिश, जर्मन सब सीखिए, लेकिन अपनी मूल संस्कृति को कम आंकना तो  गलत होगा ना। यह एक बड़ा विषय है जिस पर ध्यान देने की आवश्यकता है।
 
हेमचंद्र गोपाल ने 1135 में फीबोनैसी नंबर को ईजाद किया। महान गणितज्ञ आर्यभट्ट के बारे में सभी जानते ही हैं। हिंदुस्तान में  साइंस कल्चर भी 5000 साल पहले से है। सुश्रुत का नाम तो आपने सुना ही होगा, प्लास्टिक सर्जरी के जनक हैं, उन्होंने सुश्रुत  संहिता लिखि है। अब कहां यह बच्चों को बताया जा रहा है। हमें यह सब बच्चों को बताना होगा।
 
रिसर्च और डेवलपमेंट पर देना होगा ध्यान : उन्होंने कहा ‍कि एक और काम हमें करना चाहिए। भारत में इनोवेशन नहीं हो रहा है। आरएंडी पर हमारी कंपनी बहुत कम खर्च  कर रही है। आज हमें रिसर्च और डेवलपमेंट पर खर्च करना होगा। हम पेटेंट फाइल करें और अच्छे रिसर्च पेपर लिखें तो  अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्य हो। इस पर इंडस्ट्री को कॉलेज के सिनियर प्रोफेसर्स को बहुत काम करना होगा।

शिक्षा का  स्तर तो सुधारना है जो अभी गड़बड़ हो रहा है। देश सुधरेगा तो 3 चीजों से सुधरेगा। एजुकेशन, मोर एजुकेशन एंड मोर  एजुकेशन। शिक्षा हमारी प्राथमिकता होना चाहिए। एजुकेशन में भी क्वालिटी एजुकेशन होना चाहिए। 
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