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Written By WD

रोमन में हिन्दी लिखना गलत है : अमिताभ बच्चन

रोमन में हिन्दी लिखना गलत है : अमिताभ बच्चन - amitabh bachchan
हिन्दी को लेकर छोटे शहरों में अब भी चेतना है। मेट्रो शहरों में भले अब हिन्दी पर ज्यादा काम न हो रहा हो, पर शहरी कोलाहल से जो भी दूर है, वह हिन्दी से जुड़ा हुआ है। हिन्दी को लेकर मेरी चिंता पूछी जाए तो वह इसकी लिपि को लेकर है। देवनागरी बहुत ही सरल और आत्मीय लिपि है, पर लोग इसे भूलते जा रहे हैं।


इसे बाजार का दबाव कहकर भुला देना ठीक नहीं होगा, क्योंकि किसी भी भाषा की पहचान उसकी लिपि से ही होती है। हिन्दी को रोमन में लिखे जाने की प्रवृत्ति न सिर्फ गलत है बल्कि इसके विकास और प्रचार-प्रसार में बाधक भी बनती जा रही है। इसके लिए जिम्मेदारी किसकी बनती है, इस पर बात करने के बजाय बहस इस बात पर हो सकती है कि इससे निजात कैसे पाई जाए।

अगले पेज पर जारी : अमिताभ बच्चन के विचार


जाहिर है कि पहल उन लोगों को ही करनी चाहिए जिनके लिए हिन्दी रोमन में लिखी जाती है। कम्प्यूटर के आने के बाद हम लोग वैसे ही लिखना भूलते जा रहे हैं। अब तो हस्ताक्षर करते वक्त भी दिक्कत महसूस होती है। ऐसे में किसी भाषा की लिपि के संवर्धन में तकनीक का भी प्रयोग हो सकता है।


मैं खुद भी अपने ब्लॉग या ट्विटर पर यदा-कदा हिन्दी को देवनागरी में ही लिखने की कोशिश करता हूं। अभ्यास करने से यह काम भी मुश्किल नहीं है।

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भारत में पैदा हुए या भारत से संबंध रखने वाले विदेश में बसे लोगों में हिन्दी को लेकर अब भी अकुलाहट देखी जाती है। वे हिन्दी को अपने देश से जोड़े रखने का सेतु मानते हैं।


अपने बाबूजी (डॉ. हरिवंश राय बच्चन) की कविताओं का पाठ करने जब मैं विदेश दौरे पर गया था तो मेरे मन में यही आशंका थी कि हिन्दी के प्रति लोगों का रुझान होगा भी या नहीं, लेकिन श्रोताओं में भारतीयों के अलावा बड़ी संख्या में वे विदेशी भी आए, जिन्हें भारतीय परंपराओं और संस्कृति के बारे में जानने की ललक रहती है।

हिन्दी जोड़ने वाली भाषा है और इसको समृद्ध बनाने की जिम्मेदारी हम सबकी है। मैं अपनी तरफ से बस इतना प्रयास करता हूं कि हिन्दी में जो कुछ मेरे सामने आए वह देवनागरी में ही लिखा हो।



रोमन में लिखी गई हिन्दी मुझे कतई पसंद नहीं है, जिस भाषा की जो लिपि है, उसे उसी में पढ़ना रुचिकर होता है। हिन्दी का विकास इसमें लिखे गए साहित्य को सर्वसुलभ बनाने से ही होगा।

मैं बाबूजी की लिखी सारी रचनाओं को एक जगह एकत्र करने और उनसे जुड़ी स्मृतियों को उनके प्रशंसकों को समर्पित करने की एक योजना पर काम कर रहा हूं।(समाप्त)
प्रस्तुति : पंकज शुक्ल