योग में उज्जायी क्रिया और प्राणायाम के माध्यम से बहुत से गंभीर रोगों से बचा जा सकता है बशर्तें की उक्त प्राणायाम और क्रिया को किसी योग्य योग शिक्षक से सीखकर नियमित की जाए।
प्राणायाम की विधी : कंठ को सिकुड़ कर श्वास इस प्रकार लें व छोड़ें की श्वास नलिका से घर्षण करते हुए आए और जाए। इसको करने से उसी प्रकार की आवाज उत्पन्न होगी जैसे कबूतर गुटुर-गूँ करते हैं। उस दौरान मूलबंध भी लगाएँ।
पाँच से दस बार श्वास इसी प्रकार लें और छोड़ें। फिर इसी प्रकार से श्वास अंदर भरकर जालंधर बंध (कंठ का संकुचन) शिथिल करें और फिर धीरे-धीरे रेचन करें अर्थात श्वास छोड़ दें। अंत में मूलबंध शिथिल करें। ध्यान विशुद्धि चक्र (कंठ के पीछे रीढ़ में) पर रखें।
सावधानी : इस प्राणायाम को करते समय कंठ में अंदर खुजलाहट एवं खाँसी हो सकती, बलगम निकल सकता है, लेकिन यदि इससे अधिक कोई समस्या हो तो इस प्राणायाम को ना करें। इसके लाभ : श्वास नलिका, थॉयराइड, पेराथायराइड, स्वर तंत्र आदि को स्वस्थ व संतुलित करती है। जल तत्व पर नियंत्रण लाती है।
उज्जायी क्रिया : यह क्रिया दो प्रकार से की जाती है (1). खड़े रहकर (2). लेटकर। यहाँ प्रस्तुत है लेटकर की जाने वाली क्रिया।
पीठ के सहारे जमीन पर लेट जाएँ शरीर सीधा रखें। हथेलियों को जमीन पर शरीर से सटाकर रखें। एड़ियों को सटा लें तथा पैरों को ढीला रखें। सीधा ऊपर देखें तथा स्वाभाविक श्वास लें।
1.मुँह के द्वारा लगातार तेजी से शरीर की पूरी हवा निकाल दें। हवा निकालने की गति वैसी ही रहनी चाहिए जैसी सीटी बजाने के समय होती है। चेहरे पर से तनाव को हटाते हुए होठों के बीच से हवा निकाल दी जाती है। 2.नाके के दोनों छीद्रों से धीरे-धीरे श्वास खींचना चाहिए। शरीर ढीला रखें, जितना सुखपूर्वक श्वास खींचकर भर सकें, उसे भर लें। 3.तब हवा को भीतर ही रोके और दोनों पैरों के अँगूठे को सटाकर उन्हें आगे की ओर फैला लें, प्रथम सप्ताह केवल तीन चार सेंकड रहें इसे बढ़ाकर आठ सेकंड तक करें या जितनी देर हम आसानी से श्वास रोक सकें, रोकें। 4.फिर मुँह से ठीक उसी प्रकार श्वास निकालें, जैसे प्रथम चरण में किया गया, जल्दबाजी ना करें, श्वास छोड़ने के समय माँसपेशियों को ऊपर से नीचे तक ढीला करें अर्थात पहले सीने को तब पेट को जाँघों, पैरों और हाथों को पूरी श्वास छोड़ने के बाद, पूरे शरीर को ढीला छोड़ दें 5-6 सेकंड विश्राम करें।
सावधानी : प्रथम दिन 3 बार, द्वितीय दिन 4 बार, तृतीय दिन 5 बार इसे करें, इससे अधिक नहीं। इसके लाभ : हृदय रोगी, उच्च-निम्न रक्तचाप वाले व्यक्तियों के लिए बहुत ही उपयुक्त।