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Last Updated : गुरुवार, 20 मार्च 2025 (18:41 IST)

मी लॉर्ड! यह कैसी टिप्पणी, बेटियों को बचाना चाहते हैं या अपराधियों को?

मी लॉर्ड! यह कैसी टिप्पणी, बेटियों को बचाना चाहते हैं या अपराधियों को? - Allahabad high court news
Allahabad high court news: कानून अंधा होता है, लेकिन क्या संवेदनहीन भी होता है? संवेदनहीन इस हद तक कि कहने लगे कि किसी 11 साल की बच्ची को पुलिया के नीचे खींचना, उसके स्तनों को दबाना और उसके पैजामे का नाड़ा तोड़ देना, रेप नहीं हैं। 

यह टिप्पणी है इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायाधीश राम मनोहर मिश्र की। साथ ही जज साहब ने 'अपराध की तैयारी' और 'सच में अपराध करने का प्रयास करने में भी अंतर बताया'। उनकी इस बेहूदा टिप्पणी ने देश में एक बड़ी बहस का आगाज कर दिया है। जैसे ही ये खबर सोशल मीडिया पर आई लोगों ने अपनी प्रतिक्रिया देते हुए जज साहब को खरी खोटी सुनाना शुरू कर दी। यहां तक की कुछ लोगों ने तो उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को संबोधित करते हुए सवाल पूछ डाले।
 
क्या है पूरा मामला

यह पूरा मामला 2021 का है जब आरोपियों ने एक नाबालिग बच्ची के साथ लिफ्ट देने के बहाने रेप करने का प्रयास किया। वे उसे पुलिया से नीचे खींच कर ले गए, उसके प्राइवेट पार्ट्स दबाए और उसके पजामे का नाड़ा तोड़ दिया। लेकिन तभी पीड़िता की आवाज सुन कुछ राहगीर वहां पहुंच गए और आरोपी मौके से भागने पर मजबूर हो गए।

क्या है केस में जज साहब की विशेष टिप्पणी
17 मार्च 2025 को दिए आदेश में जस्टिस राम मनोहर नारायण मिश्र ने कहा कि 'रेप के प्रयास का आरोप लगाने के लिए यह साबित करना होगा कि यह तैयारी के चरण से आगे की बात थी। अपराध करने की तैयारी और वास्तविक प्रयास के बीच अंतर होता है।' अदालत ने यह भी कहा कि 'गवाहों ने यह नहीं कहा है कि आरोपी के इस कृत्य के कारण पीड़िता नग्न हो गई या उसके कपड़े उतर गए। ऐसा कोई आरोप नहीं है कि आरोपी ने पीड़िता के यौन उत्पीड़न की कोशिश की।' इसके बाद कोर्ट में निर्देश दिए कि आरोपी पर आईपीसी की धारा 354 (B) और पोक्सो अधिनियम की धारा 9 और 10 (गंभीर यौन हमले) के तहत मुकदमा चलाया जाए।

अदालत की इस संवेदनहीन टिप्पणी के बाद लोगों की तीखी प्रतिक्रियाओं की बाढ़ से आ गई है। निश्चित ही यह शोचनीय स्थित है। जब देश की उच्च अदालत के एक सम्मानित जज की ओर से महिला सुरक्षा और सम्मान को ताक पर रख इस तरह की संवेदनहीन टिप्पणी आए तो महिलाओं की सुरक्षा को लेकर चिंता बढ़ना लाजमी है।

देश का उच्च न्यायालय वो जगह है जिसकी तरफ समाज भरोसे से देखता है। जहां लिए गए फैसले महिलाओं की सुरक्षा और उनके सम्मान को सुनिश्चित करते हुए होने चाहिए। लेकिन इससे उलट जब वहां के जज ही पीड़ित नाबालिग बच्ची के विरुद्ध हुए अपराध को हल्के में लेने लगें तो क्या इससे महिलाओं के विरुद्ध होने वाले अपराधों और अपराधियों के क्रूर इरादों को और हवा नहीं मिलेगी।

किसी बच्ची के साथ की गई बदतमीजी और बदसुलूकी को क्या इस तरह से केटेगराइज किया जा सकता है? ये सवाल तब और भी अहम हो जाता है जब इस तरह की हल्की बात और कोई नहीं बल्कि न्यायपालिका की ऊंची कुर्सी बैठ कर खुद न्यायाधीश कर रहे हों?

चिंताजनक बात यह है कि देश में बाल और महिला अपराधों के मामले रोज बढ़ रहे हैं और सख्त कानून के अभाव में अपराधियों पर नकेल कसना पहले से ही मुश्किल है। ऐसे में उच्च न्यायालय के जज की ओर से ही यदि अपराध की गंभीरता को हल्के में लिया जाएगा तो क्या इससे अपराधियों के हौसले को बढ़ावा नहीं मिलेगा? क्या देश के उच्च न्यायालय के जज की कुर्सी पर बैठे व्यक्ति को महिलाओं और बच्चियों से जुड़े अपराधों के मामलों में और अधिक संवेदनशील और सतर्क होकर अपनी बात नहीं कहनी चाहिए। ये पहली घटना नहीं है जब महिलाओं के खिलाफ अपराधों के मामले में हमारी न्यायपालिका की ओर से इस तरह की चौंकाने वाली टिप्पणी आई है जो हमें सोचने पर मजबूर करती है कि क्या इस तरह से हम आने वाले समय में महिलाओं और बच्चियों की सुरक्षा को सुनिश्चित करने की दिशा में पुख्ता कदम उठा पाएंगे।