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Written By WD

कहीं आप नकचढ़ी तो नहीं?

लड़की
- शैलेंद्र सिंह

NDND
बात-बात पर आप दूसरों को नीचा दिखाने पर तुल जाती है। जाने-अनजाने किसी चीज की बुराई कर उस व्यक्ति को लज्जित कर देती है, जो चीज वह खासतौर पर आपके लिए लाया था। सहेलियाँ हो, सहकर्मी या रिश्तेदार आपकी नाक हमेशा उनके सामने चढ़ी ही रहती है .... संभल जाइए, यदि आप ऐसी हैं तो ...वरना ये नकचढ़ापन आपको ले डूबेगा।

नकचढ़े लोग मुख्य रूप से दो किस्म के होते हैं। एक जिनमें श्रेष्ठता का प्राकृतिक बोध होता है। चाहे वह बौद्धिक क्षमता के कारण हो या सामाजिक व आर्थिक हैसियत की वजह से वहीं शारीरिक क्षमता के कारण भी व्यक्ति अभिमानी हो सकता है। लेकिन एक व्यक्ति उस समय अपेक्षित व्यवहार की सीमा लाँघ जाता है जब वह अपना नकचढ़ापन उन लोगों के सामने प्रदर्शित करता है जिन्हें वह अपने सामने तुच्छ समझता है।

एक रईस व्यक्ति जीवन की अच्छी चीजों का आनंद उठाता है, लेकिन एक नकचढ़ा व्यक्ति यह देखकर खुश होता है कि दूसरों के पास ऐश करने के लिए उस जैसी दौलत नहीं है। ऐसे लोग अक्सर अपने से कम सामाजिक हैसियत वालों को अपमानित करने के प्रयास करते रहते हैं।

  अपने से बड़े या छोटे सभी को सम्मान दें। ध्यान रहे कि जो पेड़ फलों से लदा होता है उसकी ही शाखें झुकी होती हैं और इसके बावजूद सभी उसी को उपलब्धि की नजर से देखते हैं।      
दूसरे किस्म के नकचढ़े वे होते हैं जिनके पास अपने चुने हुए क्षेत्र में महारत तो हासिल नहीं होती लेकिन अपने रखरखाव या ज्ञान से दूसरों को अपमानित करने का प्रयास वे जरूर करते हैं। यह जरूरी नहीं हैं कि किसी नकचढ़े व्यक्ति को यह एहसास भी हो कि वह नकचढ़ा या घमंडी है। लेकिन दूसरे लोग उसे फौरन ही समझ जाते हैं।

दरअसल, नकचढ़ेपन का मूल तत्व यह है कि इसका शिकार व्यक्ति दूसरे लोगों को प्रभावित करने का प्रयास करता है। वैसे हर नकचढ़ा व्यक्ति स्वभाव से बुरा नहीं होता। कुछ तो फैशन की वजह से ऐसे हो जाते हैं, और कुछ सामाजिक परिस्थितियों के कारण। इसलिए अगर थोड़ा-सा प्रयास करके किसी के नकचढ़ेपन को दूर किया जा सकता है तो इसमें कोई हर्ज नहीं है।

गौरतलब है कि १९वीं शताब्दी से पहले स्नॉब या नकचढ़ा शब्द अँगरेजी में मौजूद नहीं था। इससे मालूम होता है कि पहले लोग बहुत सादे थे और नकचढ़ा होना विशिष्ट आधुनिक बीमारी है बल्कि लोकतंत्र की बाई प्रोडक्ट। ज्यादातर अजीबो गरीब बर्ताव बदलते माहौल के कारण उत्पन्न हो रहे हैं। जो सांस्कृतिक परिवर्तन हो रहा है उसके कारण नकचढ़ों की संख्या बढ़ती जा रही है।

इसमें कोई शक नहीं है कि नकचढ़ा होना और दूसरों को अपने सामने तुच्छ समझना बुरी आदत है, लेकिन सवाल यह है कि इससे छुटकारा कैसे पाया जाए? इस संदर्भ में विशेषज्ञों के निम्न सुझाव हैं-

* जीवन की इस तेज रफ्तारी में हम दूसरों के प्रति दयालु होना अक्सर भूल जाते हैं। इसलिए स्नॉब होने से बचने का मुख्य तरीका यह है कि दूसरों को अपनी बराबर का समझें, और उन्हें सम्मान दें।

* दूसरों के साथ वैसा व्यवहार करें, जैसा कि आप चाहती हैं कि वे आपके साथ करें। इसलिए अपने आपको दूसरों के जूतों में रखकर देखने की कोशिश करें कि जब आप उनको अपमानित करती हैं तो वे कैसा महसूस करते हैं।

* कम्युनिकेशन में दक्षता हासिल करें, ताकि अपने इर्द-गिर्द वाले नकचढ़े बर्ताव से बच सकें।

* अपने विचारों और जीवन शैली में अधिक क्रिएटिव बनें। लोगों से संपर्क करना न छोड़ें।

* अपनी निजी स्पेस को अपनी स्नॉब स्पेस न बनाएँ और उससे बाहर निकलें।

* आप जो हैं उसमें विश्वास करें।

* आपके पास जो कुछ है या जो कुछ आपने हासिल किया है उसे अपने लिए पर्याप्त समझें। जीवन में आपकी उपलब्धियों का कोई विकल्प नहीं है।

* किसी का अपमान न करें। अपने से बड़े या छोटे सभी को सम्मान दें। ध्यान रहे कि जो पेड़ फलों से लदा होता है उसकी ही शाखें झुकी होती हैं और इसके बावजूद सभी उसी को उपलब्धि की नजर से देखते हैं। इसलिए स्नॉब न बनें, अपने नखरे और नकचढ़ेपन को ताक पर रखकर इंसान बनने का प्रयास करें।