वसंत पर कविता : पीत अमलतास
पीत अमलतास,
नीरव-सा क्यों उदास है।
सत्य के संदर्भ का,
चिर परिवर्तित इतिहास है।
सर्जना को संजोये,
दर्द का संत्रास है।
अहं की अभिव्यंजना,
उपमान मैले हो गए।
अनुभूतियां निसृत हुईं,
बिम्ब धुंधले सो गए।
शब्द-लय सब सिमटकर,
छंद छैले हो गए।
वेदना अस्तित्व की,
स्वपन तृप्ति के गहे।
प्रेम से संपुटित मन,
विरह दर्द क्यों सहे।
तृषित शांत जिजीविषा,
सरिता-सी क्यों बहे।
अरुणाली-सी पौ फटी,
हरसिंगार हर्षित है।
निशा लोहित मधुकामनी,
प्रेम सलिल मोहित है।
स्मृति के घटाटोप,
निर्विकल्प निसृत हैं।
अनिमेष-सी निर्वाक सांध्य,
प्रेम-सी उधार है।
क्षितिज के सुभाल पर,
धूल का गुबार है।
महाशून्य, स्तब्ध मौन,
नाद का आधार है।