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Last Updated : रविवार, 19 दिसंबर 2021 (16:12 IST)

आधार कार्ड से वोटर आईडी को लिंक करने से क्‍या फायदा होगा, आखि‍र क्‍यों चुनाव आयोग ऐसा करना चाहता है?

आधार कार्ड से वोटर आईडी को लिंक करने से क्‍या फायदा होगा, आखि‍र क्‍यों चुनाव आयोग ऐसा करना चाहता है? - Voter id online apply, adhaar card, link to adhaar card,
चुनावी प्रक्रिया में महत्वपूर्ण सुधारों को ध्यान में रखते हुए केंद्र सरकार ने भारतीय चुनाव आयोग के वोटर आईडी को आधार नंबर के साथ जोड़ने के प्रस्ताव की ओर एक कदम और बढ़ा दिया है। इसमें इस साल 18 साल पूरे करने वाले युवाओं को वोटरों की संख्या में इजाफा करने के लिए उनका पंजीकरण भी शामिल है।

इस सुधार पर सहमति के बाद, 2021 शीतकालीन सत्र में विधेयक प्रस्तुत किया जाना है। 5 राज्य गोवा, उत्तराखंड, पंजाब, उत्तर प्रदेश और मणिपुर में चुनाव होना है। ऐसे में यह फैसला अहम साबित हो सकता है।

प्रस्तावित चार सुधारों में सबसे अहम चुनाव आयोग को आधार नंबर को मतदाता सूची से जोड़ने की अनुमति देना है। हालांकि यह योजना स्वेच्छा के आधार पर बढ़ायी जाएगी। रिपोर्ट कहती है कि चार प्रस्तावों में दूसरा बड़ा प्रस्ताव हर साल चार बार मतदाता सूची में नए मतदाताओं के नाम दर्ज करने से जुड़ा है। फिलहाल जो लोग 1 जनवरी को 18 साल के होते हैं, उन्हें साल में एक बार अपना नाम मतदाता सूची में जोड़ने के लिए मौका मिलता है।

चुनाव आयोग ने मतदाता पंजीकरण के लिए कई कट ऑफ डेट की मांग की है, क्योंकि आयोग का मानना है कि 1 जनवरी होने की वजह से कई मतदाता सूची में शामिल होने से वंचित रह जाते हैं।

रिपोर्ट बताती है कि केंद्र ने हाल ही में संसदीय समिति के समक्ष लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 14 (ब) में संशोधन के लिए प्रस्ताव दिया, जिसके अनुसार मतदाता सूची में नाम शामिल करने के लिए चार तारीख, 1 जनवरी, 1 अप्रैल, 1 जुलाई, और 1 अक्टूबर रखने की बात कही गई है।

इसके अलावा लोक प्रतिनिधि कानून 1951 से जुड़ी धाराओं में कुछ शाब्दिक बदलाव की बात भी रखी गई है, ताकि ऐसी महिलाएं जो सशस्त्र बल में कार्यरत हैं, उनके पति को को भी सेवा मतदाता के तौर पर पंजीकृत करने के योग्य माना जा सके। अंतिम प्रस्ताव के तहत चुनाव आयोग को किसी भी परिसर में चुनाव संचालित करने का अधिकार मिल जाएगा।

पिछले साल मार्च में केंद्रीय कानून मंत्री ने संसद में कहा था कि चुनाव आयोग ने आधार डेटाबेस का इस्तेमाल त्रुटि रहित चुनाव की तैयारी सुनिश्चित करने और प्रविष्टियों के दोहराव को रोकने के लिए करने का प्रस्ताव दिया था।

इसके बाद मंत्रालय को इसके लिए 1951 के लोक प्रतिनिधि कानून में बदलाव की जरूरत महसूस हुई, साथ ही आधार अधिनियम 2016 में भी बदलाव की आवश्यकता जाहिर की गई।

रिपोर्ट बताती है कि तत्कालीन कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने संसद में एक जवाब में कहा था कि आधार के साथ वोटर आईडी जोड़ने से अलग-अलग स्थानों पर एक ही व्यक्ति के नामांकन को रोकने में मदद मिलेगी।
संसदीय स्थायी समिति ने पिछले साल मार्च में लोक शिकायत, कानून और न्याय पर प्रस्तुत अपनी 101वीं रिपोर्ट में कहा था कि भारत चुनाव आयोग ने फरवरी 2015 में एक पायलट प्रोजेक्ट शुरू किया था।

यह राष्ट्रीय मतदाता सूची शुद्धिकरण और प्रमाणीकरण कार्यक्रम (एनईआरपीएपी) नाम से था। हालांकि, इस प्रोजेक्ट को अगस्त 2015 में न्यायमूर्ति केएस पुट्टस्वामी (सेवानिवृत्त) और एक अन्य बनाम भारत संघ के निजता के संरक्षण के फैसले के जरिये रोक दिया गया था, जिसने “आधार योजना और आधार की वैधता अधिनियम 2016” को चुनौती दी थी। लेकिन सर्वोच्च न्यायालय ने सरकारी संस्थाओं में आधार के इस्तेमाल पर रोक लगा दी थी।

इसके बाद चुनाव आयोग ने नए प्रस्ताव के साथ 2019 में फिर से कानून मंत्रालय का दरवाजा खटखटाया था। जिसमें वोटर आईडी को आधार के साथ जोड़ने की बात कही गई थी। तत्कालीन कानून मंत्री ने संसद में कहा था कि चुनाव आयोग ने मतदाता सूची डेटा की सुरक्षा के लिए कई कदम उठाये हैं।
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