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शे'री भोपाली की ग़ज़ल
1.
हमें तो शामे-ग़म में काटनी है ज़िन्दगी अपनीजहाँ वो हों वहीं ऎ चाँद ले जा चाँदनी अपनीअगर कुछ थी तो बस ये थी तमन्ना आख़री अपनीके वो साहिल पे होते और कश्ती डूबती अपनीजो वो अपने हुए तो सारी दुनिया हो गई अपनीचमन के फूल अपने, चाँद अपना, चाँदनी अपनीख़ुदा के वासते ज़ालिम घड़ी भर के लिए आजाबुझानी है तेरे दामन से शम्मे-ज़िन्दगी अपनीवहीं चलिए, वहीं चलिए तक़ाज़ा है मोहब्बत कावो मेहफ़िल हाय! जिस मेहफ़िल में दुनिया लुट गई अपनी 2.
अब रोके से कब रुकती है फ़रयाद किसी की नश्तर की तरह चुभने लगी याद किसी कीथम-थम के बरसती हैं घटाओं पे घटाऎंरेह-रेह के रुलाती है मुझे याद किसी कीमैं मिट गया लेकिन न मिटा इश्क़ किसी कादिल मिट गया लेकिन न मिटी याद किसी की3.
अभी नहीं रविशे-ग़म पे इख़्तियार मुझे ज़रा संभाल के ले चल ख़्याले-यार मुझे मेरे गुनह की पशेमानियाँ ही क्या कम थींतेरे करम ने किया और शर्मसार मुझे ख़्याले-यार को मैं भूल जाऊँ नामुमकिन भुला सके तो भुला दे ख़्याले-यार मुझे
4.
दिल को दीवाना किया, आँखों को हैराँ कर दियाहुस्न बन कर उसने ने जब ख़ुद को नुमायाँ कर दियाजज़बा-ए-बेताब-ए-वेहशत को नुमायाँ कर दिया हमने दामन तक गरेबाँ को गरेबाँ कर दियाअश्के-पेहम, नाला-ए-ग़म, इज़तरार-ओ-इज़तेराब जो मोयस्सर आ गया वो उनपे क़ुरबाँ कर दियाइज़्तेराब-ए-शौक़ को लेजा के अब तड़पूं कहाँ वुसअत-ए-कोनेन को भी जिसने ज़िनदाँ कर दियादेखना शे'री जमाले-यार की अफ़ज़ाइशें ख़ुद नुमायाँ होके मुझको भी नुमायाँ कर दिया5.
नज़र से नज़र ने मुलाक़ात करली रहे दोनों ख़ामोश और बात कर ली अजब हाल है अपना दीवानगी में कहीं दिन गुज़रा, कहीं रात कर ली सरे-बज़्म उसने हमारे अलावा इधर बात कर ली, उधर बात कर