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लगता नहीं है जी मेरा
लगता नहीं है जी मेरा उजड़े दयार मेंकिसकी बनी है आलमे-ना-पायदार मेंबुलबुल को बाग़बां से न सय्याद से गिलाक़िस्मत में क़ैद थी लिखी फ़स्ले-बहार मेंकहदो इन हसरतों से कहीं और जा बसेंइतनी जगह कहां है दिले दाग़दार मेंएक शाख़े-गुल पे बैठ के बुलबुल है शादमांकांटे बिछा दिए हैं दिले-लालज़ार मेंउम्रे-दराज़ मांग के लाए थे चार दिनदो आरज़ू में कट गए दो इंतिज़ार मेंदिन ज़िंदगी के ख़त्म हुए शाम हो गईफैला के पांव सोएंगे कुंजे मज़ार मेंकितना है बदनसीब ज़फ़र दफ़्न के लिएदो गज़ ज़मीं भी मिल न सकी कूए-यार में-
बहादुर शाह जफ़र