भाद्रपद के शुक्ल पक्ष की तृतीया को सुहागन महिलाएं पति की लंबी उम्र और अच्छे स्वास्थ्य के लिए हरतालिका तीज का निर्जला व्रत रखती है। इस दिन महिलाएं मिट्टी के शिवलिंग बनाकर पूरे दिन और रात इसकी आठों प्रहर पूजा करती हैं। इस दौरान फुलेरा या फुलहरा का विशेष महत्व होता है। आओ जानते हैं कि यह क्या होता है।
पूजन सामग्री : गीली काली मिट्टी या बालू, बेलपत्र, शमी पत्र, केले का पत्ता, धतूरे का फल एवं फूल, आंक का फूल, मंजरी, जनेऊ, वस्त्र, फल एवं फूल पत्ते, श्रीफल, कलश, अबीर,चंदन, घी-तेल, कपूर, कुमकुम, दीपक, फुलहरा, विशेष प्रकार की 16 पत्तियां और 2 सुहाग पिटारा। इसी में से एक है फुलेरा।
1. क्या होता है फुलहरा : प्राकृतिक फूल-पत्तियों, जड़ी-बूटियों और बांस के बंच को फुलहरा कहते हैं। यह सभी माता पार्वती और शिवजी को अर्पित किए जाते हैं।
2. बनाने में लगते हैं घंटों : इस फुलहरे को बनाने में कई घंटों का समय लग जाता है। फुलहरे की लंबाई 7 फुट होती है। यह प्राकृतिक फुलहरा तीज पर बांधा जाता है। फुलहरे में कुछ विशेष प्रकार की पत्तियों और फूलों का प्रयोग होता है।
3. बांस का होता है प्रयोग : फुलेरा बांस की पतली लकड़ियों को छिलकर बनाया जाता है। इसको बनाने के लिए कटर, टेप, रेशम धागा, कैची, रेजमाल और फूल आदि की आवश्यकता पड़ती है। इसमें विभिन्न रंगों के फूल का प्रयोग करते हुए उसे सुंदर से सुंदर बनाया जाता है।
4. फुलहरा की प्रमुख सामग्री : इसमें बिंजोरी, मौसत पुष्प, सात प्रकार की समी, निगरी, रांग पुष्प, देवअंतु, चरबेर, झानरपत्ती, लज्जाती, बिजिरिया, धतूरे का फूल, धतूरा, मदार, हिमरितुली, नवकंचनी, तिलपत्ती, शिल भिटई, शिवताई, चिलबिनिया, सागौर के फूल, नवबेलपत्र, हनुमंत सिंदूरी, वनस्तोगी आदि फूल पत्तियां या जड़ी बूटियां होती हैं।