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Last Updated : मंगलवार, 25 दिसंबर 2018 (17:40 IST)

मुक्केबाजी में ‘मैग्नीफिशेंट मेरी’ के नाम रहा साल 2018

मुक्केबाजी में ‘मैग्नीफिशेंट मेरी’ के नाम रहा साल 2018 - MC Mary Kom
नई दिल्ली। पिछले दो दशक से भारतीय मुक्केबाजी का प्रर्याय रही एमसी मैरीकॉम के लिए यह वर्ष शानदार रहा, जहां उन्होंने उम्र की बाधा को पार करते हुए इस साल विश्व चैम्पियनशिप का खिताब अपना नाम किया। उनके अलावा अमित पंघाल और गौरव सोलंकी ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर दमदार प्रदर्शन किया।
 
 
तीन बच्चों की मां 36 बरस की मैरीकॉम का यह विश्व चैम्पियनशिप में सातवां पदक था और वह टूर्नामेंट के दस सत्र के इतिहास में सबसे सफल मुक्केबाज बनीं। उनका अगला लक्ष्य 2020 ओलंपिक में देश के लिए पदक जीतना है।
 
अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक संघ (आईओसी) ने अंतरराष्ट्रीय मुक्केबाजी संघ (एआईबीए) के प्रशासकों की अलोचना की है, जिससे इस खेल के ओलंपिक में बने रहने पर संदेह है। एआईबीए के अध्यक्ष गाफूर राखिमोव पर कथित रूप से आपराधिक मामले को लेकर आईओसी का रवैया काफी सख्त है।
भारतीय मुक्केबाजी टीम के हाई परफोरमेंस निदेशक सांटियागो निएवा ने कहा, ‘मैरीकॉम शानदार हैं। दूसरे शब्दों में उसकी व्याख्या नहीं की जा सकती। उस स्तर पर प्रदर्शन करना, अपने से युवा खिलाड़ियों को हराना अद्भुत है।’
 
मैरीकॉम के अलावा अमित (49 किग्रा) ने एशियाई खेलों में स्वर्ण पदक हासिल किया, जहां फाइनल में उन्होंने ओलंपिक चैम्पियन हसनबॉय दुस्मातोव को हराया। अमित ने इसके अलावा राष्ट्रमंडल खेलों में रजत पदक अपने नाम किया। 
 
गौरव सोलंकी (52 किग्रा) इस खेल के नए सितारे के रूप में उभरे। उन्होंने राष्ट्रमंडल खेलों में स्वर्ण पदक जीतकर सबको चौंका दिया। गौरव ने जर्मनी में खेले गए कैमेस्ट्री कप में भी पीला तमगा हासिल किया।
 
इंडिया ओपन में स्वर्ण पदक के साथ साल की शुरुआत करने वाली मैरीकॉम ने साल का समापन (विश्व चैम्पियनशिप) भी इसी रंग के पदक के साथ किया। इसके बीच में उन्होंने बुल्गारिया में हुए यूरोपीय टूर्नामेंट में रजत पदक हासिल किया।
 
उनके प्रदर्शन के अलावा महिला मुक्केबाजी में भारत के यह साल निराशाजनक रहा। मैरीकॉम बड़े टूर्नामेंटों में स्वर्ण पदक जीतने वाली इकलौती खिलाड़ी रही। टीम उनके बिना एशियाई खेलों के लिए जकार्ता गई लेकिन उन्हें खाली हाथ लौटना पड़ा।
उनका सपना 2020 ओलंपिक में देश का प्रतिनिधित्व करने का है, जहां वह अपने पसंदीदा 48 किग्रा भारवर्ग की जगह 51 किग्रा भार वर्ग में खेलेंगी। लंदन ओलंपिक (2012) में इस भारवर्ग में कांस्य जीतने वाली मैरीकॉम के लिए अगले साल होने वाले क्वालीफायर्स में यह देखना दिलचस्प होगा की वह खुद को इस चुनौती के लिए कैसे तैयार करती हैं।
 
पुरुषों में भारत ने राष्ट्रमंडल खेलों में आठ पदक जीते। गौरव और विकास कृष्ण (75 किग्रा) का स्वर्ण अपने नाम किया। टीम हालांकि एशियाई खेलों में इस प्रदर्शन को दोहरा नहीं सकी और सिर्फ दो पदक ही जीत सकी। अमित के स्वर्ण के साथ विकास के कांस्य ने देश की लाज बचाई।
 
इस साल टीम चयन के लिए नई नीति की शुरुआत हुई, जिसमें ट्रायल्स की जगह अंक प्रणाली को अपनाया गया। ट्रायल्स का आयोजन सिर्फ उन भार वर्गों में हुआ, जिसमें अंकों का अंतर काफी कम था।
 
पेशेवर सर्किट में विजेंदर सिंह ने महान बॉब अरुम से करार किया और वह अगले साल अमेरिका में पदार्पण करेंगे। लंबे समय से रिंग से दूर विजेंदर इससे पहले भारत और इंग्लैंड में एक भी मुकाबला नहीं हारे हैं। 
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