सिंहासन बत्तीसी : ग्यारहवीं पुतली त्रिलोचना की कथा
Sinhasan Battisi 11th Story राजा भोज हर दिन तैयार होकर सिंहासन पर बैठने के लिए राज दरबार पहुंचते रहे और हर दिन दिव्य सिंहासन की सुंदर पुतलियां जाग्रत होकर उन्हें टोकती रही। हर पुतली उन्हें राजा विक्रमादित्य के त्याग और शौर्य की अतुलनीय गाथा सुनाकर सिंहासन पर बैठने से रोक देती। अब तक आप 10 पुतलियों द्वारा सुनाई कथा पढ़ चुके हैं। आइए आज पढ़ते हैं ग्यारहवीं पुतली त्रिलोचना की सुनाई कथा- अगले दिन राजा भोज जब दरबार में पहुंचे तो ग्यारहवीं पुतली त्रिलोचना जैसे जाग्रत होने के लिए तैयार ही बैठी थी। त्रिलोचना बोली, हे राजा भोज, आप प्रतिदिन इस सिंहासन पर बैठने के लिए आते हैं और राजा विक्रमादित्य की कथा सुनने के बाद लौट जाते हैं। फिर भी आपने अब तक हिम्मत नहीं हारी? राजा भोज का अभिमान अब कम हो चला था। वे विनम्रतापूर्वक बोले, हे सुंदरी, आप हमें राजा विक्रमादित्य की कौन सी कथा सुनाने वाली हैं कृपया सुनाएं। हमारे साथ-साथ नगर की प्रजा भी अपने पूर्व राजा की वीरता और त्याग से परिचित होना चाहती हैं। त्रिलोचना ने मुस्कुरा कर कथा आरंभ की-
हे राजन, राजा विक्रमादित्य बहुत बड़े प्रजापालक थे। उन्हें हमेंशा अपनी प्रजा की सुख-समृद्धि की ही चिंता सताती रहती थी। एक बार उन्होंने एक महायज्ञ करने की ठानी। असंख्य राजा-महाराजाओं, पंडितों और ॠषियों को आमन्त्रित किया। यहां तक कि देवताओं को भी उन्होंने नहीं छोड़ा।पवन देवता को उन्होंने खुद निमंत्रण देने का मन बनाया तथा समुद्र देवता को आमन्त्रित करने का काम एक योग्य ब्राह्मण को सौंपा। दोनों अपने काम से विदा हुए। जब विक्रम वन में पहुंचे तो उन्होंने ध्यान करना शुरू किया ताकि पवन देव का पता-ठिकाना ज्ञात हो। योग-साधना से पता चला कि पवन देव आजकल सुमेरु पर्वत पर वास करते हैं। उन्होंने सोचा अगर सुमेरु पर्वत पर पवन देवता का आह्वान किया जाए तो उनके दर्शन हो सकते हैं। उन्होंने दोनों बेतालों का स्मरण किया तो वे उपस्थित हो गए। उन्होंने उन्हें अपना उद्देश्य बताया। बेतालों ने उन्हें आनन-फानन में सुमेरु पर्वत की चोटी पर पहुंचा दिया। चोटी पर इतना तेज हवा थी कि पैर जमाना मुश्किल था।