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Written By अनिरुद्ध जोशी
Last Updated : शनिवार, 13 जून 2020 (14:46 IST)

Shri Krishna 12 June Episode 41 : नंदबाबा जब पहुंचे श्रीकृष्ण और बलराम से विदा लेने

Shri Krishna 12 June Episode 41 : नंदबाबा जब पहुंचे श्रीकृष्ण और बलराम से विदा लेने - Shri Krishna on DD National Episode 41
निर्माता और निर्देशक रामानंद सागर के श्रीकृष्णा धारावाहिक के 12 जून के 41वें एपिसोड ( Shree Krishna Episode 41 ) में महाराज उग्रसेन को राज सिंघासन पर बिठाकर महर्षि गर्ग मुनि उनका अभिषेक करते हैं। सभा में देवकी, वसुदेव, अक्रूजी, नंदबाबा, श्रीकृष्ण, बलराम आदि सभी जन उपस्थित रहते हैं और राज्य में उत्सव प्रारंभ हो जाता है।
 
 
रामानंद सागर के श्री कृष्णा में जो कहानी नहीं मिलेगी वह स्पेशल पेज पर जाकर पढ़ें...वेबदुनिया श्री कृष्णा
 
 
इसके बाद श्रीकृष्ण के चेहरे पर चिंता का भाव देखकर बलरामजी पूछते हैं क्या बात है कृष्‍ण। कृष्‍ण कहते हैं दाऊ भैया बड़ी मुश्किल की घड़ी आ रही है। बलरामजी कहते हैं, कौनसी मुश्किल की घड़ी? तब कृष्‍ण कहते हैं नंदबाबा के विदाई की घड़ी। बलरामजी कहते हैं तो इसमें क्या कठिनाई है चलो चलकर उन्हें विदा कर देते हैं।
 
यह सुनकर कृष्‍ण कहते हैं कि आपने जिस सहजता से कहा है उतना सहज नहीं है उन्हें विदा करना। उनकी भावुकता का वेग जानते हो। मुझे तो डर लग रहा है कि भावुकता में कोई ऐसी आज्ञा न दे दें कि हमें उनके साथ फिर से गोकुल ना जाना पड़ जाए। ऐसा हुआ तो जिस कार्य को करने के लिए हम धरती पर आएं हैं उसका क्या होगा? तब बलरामजी कहते हैं कि तो फिर हम ऐसी आज्ञा को ना मानेंगे।
 
यह सुनकर कृष्ण कहते हैं कि पिताश्री की आज्ञा को न मानना महापाप है और फिर बाबा का स्‍थान हमारे लिए पिताश्री से कहीं ऊंचा है। वो हमारे पालनहार हैं दाऊ भैया, इसीलिए वो हमें पिता के रूप में प्राप्त हुए हैं। उस पर भी वह हमारे भक्त हैं और हमारा तो प्रण है भक्तों के वश में रहने का। इसलिए भावना के वेग में आकर वो कोई जिद कर बैठे तो बड़ी मुश्किल हो जाएगी दाऊ भैया। तब बलरामजी कहते हैं कि तो फिर सोचो कोई इलाज। तब कृष्ण कहते हैं कि ऐसे समय में तो महामाया ही हमारा सहयोग कर सकती हैं।
 
फिर श्रीकृष्‍ण महामाया का आह्‍वान करते हैं। महामाया प्रकट होकर कहती हैं आज्ञा प्रभु। फिर श्रीकृष्ण कहते हैं कि नंदबाबा के हृदय से ममता और मोह को निकालकर वहां ज्ञान के लिए थोड़ासा स्थान बना दो ताकि उनके मन की उद्दिग्नता शांत हो जाए। महामाया कहती हैं, जो आज्ञा प्रभु। यह कहकर महामाया अदृश्य हो जाती है।
 
तभी वहां पर नंदबाबा पधार जाते हैं। बलरामजी कहते हैं लो, बाबा तो यहीं आ रहे हैं। दोनों कुमार नंदबाबा के चरणों में प्रणाम करते हैं। नंदबाबा दोनों से गले लगकर खूब रोते हैं। श्रीकृष्ण उनके आंसू पोंछते हुए कहते हैं ये क्या कर रहे हैं बाबा। नंदबाबा कहते हैं मैं क्या करूं कान्हा मेरे आंसू मेरे बस में नहीं है। मैंने तो सोच था कि जाते वक्त मैं तुझसे नहीं मिलूं लेकिन ये कदम बरबस ही तेरे कक्ष की ओर चल पड़े। 
 
तीनों में भावुक संवाद होता है अंतत: श्रीकृष्ण कहते हैं कि मैंने कंस का वध करके अभी तो एक ही कर्तव्य को पूरा किया है। अभी तो मुझे कई कर्तव्यों का पालन करना हैं। कर्तव्यों से मुक्त होकर एक दिन मैं मैया के पास जरूर लौटूंगा बाबा। श्रीकृष्ण कई तरह से नंदबाबा को समझाते हैं, उपदेश देते हैं तो नंदबाबा कहते हैं इतना ज्ञान तुझे कहां से मिला है? कुछ लोग कहते हैं तू भगवान है। सच-सच बता क्या सचमुच तू भगवान है?
 
यह सुनकर श्रीकृष्ण कुछ देर रुककर कहते हैं हां बाबा, मैं भगवान भी हूं। यह सुनकर नंदबाबा कहते हैं भगवान भी? क्या मतलब? तब श्रीकृष्ण कहते हैं बाबा शास्त्र कहते हैं कि हर आत्मा में भगवान का ही प्रतिबिंब होता है। सो मैं भी भगवान हूं और इसी प्रकार आप भी भगवान हैं। सभी जड़-चेतन आदि में भगवान होते हैं। फिर श्रीकृष्ण उन्हें कई प्रकार से उपदेश देते हैं।
 
तब नंदबाबा कहते हैं कि आज मुझे लग रहा है कि तू मेरा पुत्र नहीं मेरा गुरु है। आज से तेरा ये बाबा न रोएगा और न कभी तेरे रास्ते में आएगा। तेरे बाबा का ये आशीर्वाद है और यही भगवान से प्रार्थना भी है कि तेरा कर्तव्य पथ ही तेरा कीर्ती पथ हो जाए। तुम दोनों सदा विजयी रहो। अंतत: नंदबाबा अपना कठोर हृदय करके वहां से चले जाते हैं।
 
फिर गर्ग मुनि के पास एक ऋषि आकर कहते हैं कि कुमार वसुदेव अपने दोनों पुत्रों के साथ द्वार पर दर्शन की अभिलाषा से खड़े हैं। गर्ग कहते हैं कि ज्योति का भंडार स्वयं आ गया। हम स्वयं जाकर उनका स्वागत करेंगे। गर्ग मुनि तीनों का स्वागत करते हैं। वसुदेव, श्रीकृष्‍ण और बलराम तीनों गर्ग मुनि को प्रणाम करते हैं। फिर गर्ग मुनि तीनों को अपनी कुटिया में ले जाकर बिठाते हैं।
 
वसुदेवजी गर्ग मुनि से दोनों बालकों का यज्ञोपवीत संस्कार करने और उन्हें शिष्य बनाने के लिए कहते हैं। यह सुनकर गर्ग मुनि प्रसन्न होकर कहते हैं कि ये दोनों यदि अपने भक्त को गुरुपद प्रदान करना चाहते हैं तो यह मेरे लिए सौभाग्य की बात है। मैं आपका यह संकल्प अवश्य पूरा करूंगा। मेरे विचार से परसों ही ऐसा शुभ मुहूर्त है कि यह कार्य सम्पन्न किया जाना चाहिए। आप पुरोहित सत्यकजी से इसकी तैयारी करने का कहिये।
 
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