निर्माता और निर्देशक रामानंद सागर के श्रीकृष्णा धारावाहिक के 26 मई के 24वें एपिसोड ( Shree Krishna Episode 24 ) में फिर एक दिन सभी सखा के साथ कान्हा गेंद खेल रहे होते हैं। तभी कान्हा के हाथ से गेंद यमुना में चली जाती है। सभी सखा कहते हैं कि तूने ही गेंद फेंकी है तो तू ही लेकर आ।
कृष्ण कहते हैं अच्छी बात है मैं ही लेकर आता हूं। कृष्णा नदी के पास एक वृक्ष पर चढ़ जाते हैं यमुना में कूदने के लिए। तभी वहां पर एक ग्वाला आकर उन्हें रोककर कहता है कि रूक जाओ छोटे मुखिया नदी में मत कूदना। यहां कालिया देह है। इसमें महा भयंकर सर्पों का राजा कालिया नाग रहता है। यह सुनकर कान्हा के सखा भी कहते हैं आ जाओ कान्हा हमें गेंद नहीं चाहिए। तब कान्हा कहते हैं कि अरे तुम्हारा सेनापति किसी नाग के भय से वापस आने वाला नहीं। देखते रहो मैं क्या करता हूं। यह कहकर वे नदी में कूद जाते हैं। सभी उन्हें रोकते ही रह जाते हैं। वह ग्वाल नंदबाबा कहता हुआ गांव की ओर भागता है और सारे सखा भागकर तट पर खड़े हो जाते हैं।
उधर श्रीकृष्ण नदी में नीचे गहरे नागलोक में चले जाते हैं वहां नाग महिलाएं उन्हें देखकर हैरान रह जाती हैं। कृष्ण देखते हैं कि एक बड़ासा नाग सामने सो रहा है। वे आगे बढ़ते हैं तो एक महिला रोककर कहती है अरे मूर्ख बालक तू यहां कहां चला आया? तब कृष्ण कहते हैं कि मेरी गेंद यहां गिर गई है उसे लेने के लिए ही आया हूं। वह महिला कहती है यहां हाथी भी गिर जाए तो नागराज के विष से भस्म हो जाता है। जाने क्यूं तू अभी तक कैसे बच गया। जा वापस चला जा।
तब कृष्णा कहते हैं कि खाली हाथ गया तो मेरे मित्र मुझ पर क्रोध करेंगे। तब वह नाग महिला कहती हैं कि मित्रों के क्रोध से तो बच जाएगा लेकिन नागराज के क्रोध से तुझे कौन बचाएगा पगले? तब कृष्ण कहते हैं तुम। वह महिला कहती हैं मैं? कृष्णा कहते हैं हां तुम्हीं तो अपने पति के क्रोध से मुझे बचा लोगी ना मैया? यह सुनकर वह नाग महिला अन्य नाग महिला की ओर देखकर प्रसन्न होकर कहती है मुझे तू मैया कहता है पगले। तू कितना भोला है। एक गेंद के पीछे क्यों अपने प्राण गवाने चला आया। तेरा भाग्य अच्छा है नागराज सो रहे हैं तू जल्दी यहां से भाग जा।
यह सुनकर कृष्णा कहते हैं कि यहां तक आ गया हूं तो नागराज से मिले बिना कैसे चला जाऊं। तब कई तरह से नाग माहिलाएं उसे समझाती हैं तो कृष्णा कहते हैं मुझ पर दया न करो नागरानी अपने पति पर दया करो। उसने हमारे वृंदावन को अपने विष से दूषित कर रखा है। उसने हमारी यमुनाजी को विषैला कर दिया है। आज मैं उसे यहां से निकालने आया हूं।
तभी नागराज कालिया जाग जाता है और पूछता है कि कौन है जो हमारे विश्राम में विघ्न डालने आ गया और काल का ग्रास बनना चाहता है। तब कृष्णा कहते हैं मैं कृष्ण हूं जो काल का भी काल है। तुम मेरी शरण में आ जाओ तो मैं तुम्हें क्षमा कर दूंगा। यह सुनकर कालिया नाग भड़क जाता है। फिर भगवान कृष्ण और कालिया नाग का युद्ध होता है। सभी देवता आसमान से देख रहे होते हैं।
कालिया नाग भगवान को लपेटकर यमुना के ऊपर ले आता है। तट पर नंदबाबा, यशोदा मैया सहित सारा गांव खड़ा ये दृश्य देखकर भयभीत हो जाते हैं। वह नाग फिर से श्रीकृष्ण ने नदी के तल में ले जाता है। तब भगवान कृष्ण उस नाग के फन को पड़कर दूसरे फन से टकराकर मारने लगते हैं। फिर वह उसके सारे फन को नीचे तल में पटककर उसे पैरों से कुचलकर अधमरा कर देते हैं।
फिर कृष्ण उससे कहते हैं उठ कालिया उठ, युद्ध कर मुझे। कालिया नाग कहता है नहीं। नहीं उठा जाता। आंखों के आगे अंधकार छा रहा है। तभी सभी नाग महिलाएं श्रीकृष्ण से कहती हैं क्षमा, क्षमा हे नाथ। आप हमारे पति को छोड़ दीजिए। मैया कहा है तो मैया को विधवा मत करो। तब एक नाग महिला कालिया नाग से कहती है स्वामी प्रभु की शरण में आ जाइये। ऋषि, मुनि औ देवता सभी जिन चरणों की वंदना करते हैं वहीं चरण आज आपके शीश पर पड़े हैं। इन्हें नमस्कार कीजिए।
तब कालिया नाग कहता है त्राहिमाम, त्राहिमाम प्रभु त्राहिमाम। हे देवता मैं तुम्हारी शरण में हूं मेरी रक्षा करो। तब श्रीकृष्ण कहते हैं कि मैं तुम्हें जीवन दान देता हूं। तुम यह स्थान छोड़कर यमुनाजी के रास्ते समुद्र के मध्य रमणक द्वीप पर चले जाओ और वहीं रहो। तब कालिया नाग कहता है कि मैं वहां से ही आपके गरुड़देव के भय से यहां छुपा था। तब श्रीकृष्ण कहते हैं कि अब गरुड़ तुम्हारे शीश पर हमारी चरणधूली देखकर कुछ नहीं करेंगे। जाओ वहां जाओ। फिर कृष्ण कहते हैं उठो कालिया अब हमें बाहर लेकर चलो।
उधर, तट पर नंदबाबा और माता यशोदा रोते रहते हैं तो दाऊ कहते हैं नंदबाबा तुम चिंता मत करो।
कान्हा को कुछ नहीं होगा। उसे साधारण मानव मत समझो। वो देवलोक से आया है। तभी दाऊ देखते हैं कि यमुना में श्रीकृष्ण कालिया नाग के ऊपर बैठकर आ रहे हैं। दाऊ कहते हैं अरे वो देखो कन्नू आ गया।
सभी यह देखकर आश्चर्य करते हैं कि कान्हा तो कालिया नाग पर बांसुरी बजाकर नृत्य कर रहा है अन्य नाग महिलाओं के साथ। उपर आसमान में भी देवी देवता प्रसन्न होकर नृत्यगान करने लगते हैं। तट पर खड़े सभी ग्रमीण भी खुशी के मारे झुमने लगते हैं।
उधर, कंस चाणूर से पूछता है क्या लोगों ने उसे कालिया नाग के फन पर नाचते हुए देखा है? चाणूर कहता है जी महाराज। यह सुनकर कंस भयभीत हो जाता है। फिर वह पूछता है अपनी आंखों से? चाणूर कहता है जी। यह सुनकर वह और भी भयभीत हो जाता है। तब वह कहता है अवश्य उनकी आंखों पर किसी माया ने परदा डाल दिया होगा। किसी तांत्रिक ने जादू कर दिया होगा। यह असंभव है।
तब चाणूर कहता है कि हमारे गुप्तचरों की सूचना के अनुसार गांव वालों ने ये सारा दृश्य दिन के प्रकाश में देखा है। उनकी सूचना अनुसार अब तो खुले में इसकी चर्चा भी करते हैं और रही बात असंभव की तो तनिक सोचिये महाराज आज तक उस बालक ने जो कुछ भी किया है वह सारे कार्य असंभव ही थे। जिन्हें कोई साधारण मानव नहीं कर सकता था। सोचिये ऐसा कौनसा असंभव कार्य है जो उसने नहीं किया? इसलिए महाराज अब हमें यह मानकर ही आगे चलना है कि हमारा सामना किसी साधारण मानव से नहीं वरन किसी शक्तिशाली देवता से है।
यह सुनकर भयभीत कंस कहता है नहीं किसी देवता से नहीं बल्कि स्वयं भगवान विष्णु से है। तब चाणूर कहता है हो सकता है यह स्वयं विष्णु ही है। इस पर कंस कहता है हो सकता नहीं, है। ये स्वयं विष्णु ही है।
चाणूर कहता है जो भी है अब हमें ये सोचना होगा कि अब हमें क्या करना होगा। यह सुनकर कंस कहता है कि अब हमें उससे सीधी टक्कर लेनी होगी अर्थात अब हमें गोकुल पर चढ़ाई करनी होगी। हम स्वयं सेना लेकर जाएंगे और सारे गोकुल को तहस-नहस कर देंगे। सारे इलाके को घेरकर आग लगा देंगे।
तब चाणूर समझाता है कि हम गोकुल पर चढ़ाई नहीं कर सकते क्योंकि गोकुल में अब उस बालक को भगवान समझने लगे हैं और वे एकजुट होकर हमारी सेना को घेर लेंगे। जनता के सामने सेना बेबस हो जाएगी। जिसे लोग भगवान मानने लगते हैं उस पर खुले में आक्रमण किया जाए तो जनता इसे कभी सहन नहीं कर सकती। तब कंस कहता है फिर क्या किया जाए? यह सुनकर चाणूर कहता है कि वही सोच रहा हूं। वही सोच रहा हूं कि जनता में कैसे फूट डाली जाए। कुछ ऐसे बुद्धिजीजी लोग ढूंढने होंगे जो कृष्ण को एक छलिया और कपटी सिद्ध कर सकें। तब कंस कहता है कि नहीं चाणूर ये गोकुल में नहीं हो सकता, क्योंकि ऐसे बुद्धिमान लोग केवल नगरों में ही मिलते हैं। गांव के लोग सच्चे और दृढ़ होते हैं। उनका विश्वास नहीं डिगाया जा सकता।
यह सुनकर चाणूर कहता है सही कहा आपने। हमारे गुप्तचर कहते हैं कि अब तो यशोदा और नंदबाबा की पूजा भी होने लगी है। तब कंस कहता है कि अभी यह निर्णय नहीं हुआ है कि वह यशोदा का पुत्र है या देवकी का। भविष्यवाणी अनुसार तो देवकी के आठवें पुत्र से ही हमें सावधान रहना है।
तब चाणूर कहता है कि इसका भी अब निर्णय हो जाना चाहिए। तब कंस कहता है कैसे? इस पर चाणूर कहता है कि यदि देवकी और वसुदेव की मृत्यु हो जाए। क्योंकि माता पिता की अंत्येष्टि और श्राद्ध कराने के लिए उसे किसी न किसी बहाने मथुरा अवश्य लाया जाएगा। यह सुनकर कंस कहता है कि हां, हां अवश्य लाया जाएगा। तब चाणूर कहता है कि इससे एक तो यह सिद्ध हो जाएगा कि वह देवकी का पुत्र है कि नहीं और दूसरा यह कि मथुरा में आए कृष्ण का संहार करना आसान हो जाएगा। आपका हाथी उसे राह चलते कुचल सकता है महाराज।
यह सुनकर कंस कहता है कि सुंदर अति सुंदर, परंतु देवकी और वसुदेव की मृत्यु कब होगी? तब चाणूर कहता है आज ही रात को। कंस कहता है आज रात को? तब चाणूर दोनों को मारने की योजना बताता है। यह सुनकर कंस प्रसन्न हो जाता है।
चाणूर की योजना के तहत सभी पहरेदारों को मदिरा के नशे में चूर कर दिया जाता है। फिर चाणूर और कंस दोनों कारागार में जाते हैं। चाणूर कहता है जाइये महाराज भीतर। कारागार में देवकी और वसुदेव दोनों गहरी नींद में सोये रहते हैं। कंस धीरे-धीरे दबे पांव आगे बढ़ता है और उनके पास पहुंचकर धीरे से तलवार निकालकर उन्हें मारने ही लगता है तभी वहां शेषनाग प्रकट होकर फूंफकार कर उसे वहां से भगा देते हैं। कंस चाणूर, चाणूर चीखता और गिरता पह़ता हुआ वहां से बाहर निकल जाता है तो चाणूर उसे उठाकर पूछता है क्या हुआ महाराज? कंस कहता है चाणूर सांप, सांप। चाणूर कहता है सांप कहां है महाराज? कंस कहता है चलो भागो। दोनों वहां से भाग जाते हैं।
इधर, बलदाऊ नींद में ही जोर जोर फूंफकारते रहते हैं। यह देखकर रोहिणी की नींद खुल जाती है। वह यह देखकर घबरा जाती है कि बलराम नींद में जोर जोर से नाग की तरह फूंफकार रहे हैं। वह घबराकर बलराम का मुंह पकड़कर जगाने का प्रयास करती है और कहती है ये कैसे आवाजा निकाल रहा है पुत्र तू। लेकिन बलराम फूंफकारते ही रहते हैं। तब वह यशोदा को आवाज लगाती हैं। यशोदा यशोदा आवाज लगाती है।
यशोदा मैया और नंदबाबा आकर देखते हैं। रोहिणी कहती हैं कि न जाने कैसी कैसी आवाजें निकाल रहा है। उठाती हूं तो उठता नहीं। फिर वह दोनों भी उसे जगाने का प्रयास करते हैं लेकिन वह फूंफकारता ही रहता है। रोहिणी कहती हैं कि नंदराजय की मुझे तो भय लग रहा है मेरे बलराम पर किसी नाग के भूत की छाया पड़ गई है।
तभी श्रीकृष्णा वहां आकर कहते हैं इन पर किसी नाग का भूत क्या चढ़ेगा बड़ी मैया। तब श्रीकृष्ण पुकारते हैं दाऊ। दाऊ भैया तो स्वयं ही सब नागों की कला मरोड़ सकते हैं। मैं जानता हूं इन्हें क्या हुआ है। यह सुनकर रोहिणी कहती हैं यदि तुम जानते हो तो बोलो ना लल्ला किया हुआ है तुम्हारे दाऊ को। तब श्रीकृष्ण कहते हैं कि ये सपना देख रहे हैं कालिया नाग का। सो कालिया नाग की आवाजें निकाल रहे हैं। फिर दाऊ भैया का हाथ पकड़कर कहते हैं उठो दाऊ भैया उठो। वह दुष्ट अब चला गया है। क्रोध छोड़ों भी वह दुष्ट अब कुछ नहीं कर सकता। अब आप भी सुरक्षित हैं और मैया बाबा भी सुरक्षित हैं।
यह सुनकर नंदबाबा कहते हैं मैया बाबा? मैया बाबा को क्या हुआ? तब श्रीकृष्णा कहते हैं कि आप नहीं जानते बाबा। कालिया नाग की घटना के बाद से ही दाऊ भैया को बड़ा डर रहता है कि कहीं आप लोग अपने प्राण न दे बैठें। तब से इन्हें आपकी चिंता रहती है।... फिर श्रीकृष्णा उनकी आंखें खोलकर कहते हैं आंखे खोलो दाऊ भैया सब लोग कितने चिंतित हैं।
दाऊ भैया जागकर उठते ही कहते हैं कहां है, कहां है वह दुष्ट। श्रीकृष्ण कहते हैं वह भाग गया है। आपके डर से भाग गया है। यह सुनकर दाऊ भैया श्रीकृष्ण का चेहरा देखने लगते हैं और कहते हैं कन्नू तू नहीं जानता वो क्या करने वाला था। तब श्रीकृष्ण कहते हैं मैं जानता हूं दाऊ भैया। मैं सब जानता हूं। मैंने बड़ी मैया से यही कहा है कि कालिया नाग की घटना के बाद से आपको मैया बाबा की बड़ी चिंता रहती है। तब से आपको कालिया नाग के सपने आते रहते हैं और आप अपने आपको कालिया नाग से भी एक बड़ा नाग समझकर उसी की भांति फूंफकारने लग जाते हो। देखिये सब लोग कितने भयभीत हो गए हैं। यह सुनकर बलराम सब समझ जाते हैं और कहते हैं मुझे क्षमा करदो बाबा। आप सब लोग मेरे सपने से भयभीत हो गए थे।
लेकिन माता रोहिणी नहीं मानती है और कहती है कि बालक को इतने भयानक सपने आने लगे ये ठीक बाद नहीं नंदरायजी। हमें इसका शीघ्र ही कोई उपाय करना चाहिए। यशोदा भी कहती हैं कि हां दीदी ठीक कहती हैं। मैं तो कब से कह रही हूं कि हमारे बालकों को लोगों की नजर लग गई है। नंदबाबा कहते हैं कि इन्हें कौनसी नजर लगेगी। कन्नू को तो सारे गांव के लोग भगवान मानने लगे हैं।
तब यशोदा मैया रोते हुए कहती हैं इन्हीं सब बातों से तो नजर लगती है। पहले तो सब चोर कहती थीं। मटकी फोड़ कहती थीं तब मुझे क्रोध तो आता था लेकिन तब वह साधारण मानव तो था। लेकिन अब कोई उसे भगवान कहता है तो कोई अवतारी कहता है। इससे मुझे डर लगने लगा है। ऐसा लगता है कि कोई मुझसे मेरे लाल को छीनना चाहता है। अगर वे इसे भगवान बनाकर आकाश के मंदिर में बिठा देंगे तो मैं क्या करूंगी? आप उन सब से कहिये उसे साधारण मानव ही बना रहने दें। अगर आकाश में चला गया तो मैं उस तक कैसे पहूंचुगीं? तब श्रीकृष्ण कहते हैं तू चिंता मत कर मैया मैं आकाश में नहीं जाऊंगा। मैं इस धरती पर दाऊ भैया के साथ तेरे आंचल की छाया में खेलता रहूंगा। यह सुनकर मैया यशोदा लल्ला को गले लगा लेती हैं।
फिर दाऊ भैया कहते हैं कि आकाश में हमें मां का आंचल कहां मिलेगा? हे ना कन्नू? तब श्रीकृष्ण कहते हैं कि हां दाऊ भैया वहां से किसी को भेजना पड़ेगा कि गांव वालों की बुद्धि ठीक कर दें। तब श्रीकृष्ण हाथ जोड़कर आकाश में देखकर कहते हैं, हे देवी माता। यह सुनकर योगमाया प्रकट हो जाती है जो सिर्फ उन्हें ही दिखाई देती है। वे कहते हैं सबकी मती ठीक कर दें। तब माता कहती हैं जो आज्ञा प्रभु। तब दाऊ कहते हैं नहीं भ्रमित कर दें। तब माता कहती हैं जो आज्ञा प्रभु।
तब श्रीकृष्ण कहते हैं कि हां, छोटी मैया और बड़ी मैया दोनों को भ्रमित कर दें जिससे इनके सारे भय दूर हो जाए। तब माता यशोदा कहती हैं कि ऐसे भय दूर नहीं होंगे। प्रात: ही गुरुदेव के पास जाकर इसका कोई उपाय पूछेंगे। तब नंदबाबा कहते हैं कि पर गुरुदेव तो लंबी तीर्थ यात्रा पर गए हैं। इस पर मैया यशोदा कहती हैं कि आश्रम में और भी तो महात्मा होंगे। कोई तो उपाय बताएंगे। तब वे सभी आश्रम में जाते हैं वहां एक ऋषि उन्हें तुला दान की सलाह देते हैं। जय श्रीकृष्णा।