Sawan somwar 2024: कई लोग जब पूजा करते हैं तो वे शिवलिंग और नागदेव की पूजा करके यह समझते ही हमारी पूजा पूर्ण हो गई। वे शिवलिंग पर फूल, बेलपत्र अर्पित करने के बाद नागदेव पर फूल एवं बेलपत्र अर्पित करके पूजा करते हैं, लेकिन यह पूजा अधूरी मानी जाती है। आओ जानते हैं कि पूर्ण पूजा कैसे होती है। श्रावण का दूसरा सोमवार 29 जुलाई 2024 को रहेगा। सोमवार को शिवजी की पूजा के साथ अभिषेक भी किया जाता है।
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शिवलिंग के ठीक नीचे ब्रह्मा, मध्य में विष्णु और शीर्ष पर शिवजी का स्थान रहता है। सबसे ऊपर छत से लटके जल से भरे एक तांबे या पीतल के घड़े से शिवलिंग पर बूंद-बूंद जल टपकता रहता है। यह उसी तरह है जिस तरह की ब्रह्मरंध या कपाल से अमृत टपकता रहता है जो हमारे संपूर्ण शरीर में तृप्त करता है। इसलिए शिवलिंग के हर भाग पर वे फूल अर्पित करें तो उक्त देवी और देवताओं को पसंद है और उन सभी स्थानों की भी पूजा करें।
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- जब आप शिवलिंग की पूजा करें तो सिर्फ शिवलिंग की ही पूजा न करें। शिवलिंग के आसपास माता पार्वती विराजमान रहती हैं, जिसे हस्त कमल का नाम दिया है।
- इसी प्रकार सोमसूत्र यानी जिस नलिका से जल बाहर निकलता है, उसी स्थान पर भगवान शिव की बेटी अशोक सुंदरी विराजमान हैं।
- जलाधारी के आगे की ओर जो पद चिन्ह दिखाई देते हैं उस स्थान पर दाईं ओर गणेश जी और बाईं ओर कार्तिकेय विराजमान हैं।
- शिवलिंग के ठीक नीचे ब्रह्मा, मध्य में विष्णु और शीर्ष पर शिवजी का स्थान रहता है।
- सबसे ऊपर छत से लटके जल से भरे एक तांबे या पीतल के घड़े से शिवलिंग पर बूंद-बूंद जल टपकता रहता है। इसे गलंतिका कहा जाता है। इसे वसोधारा लगाना भी कहते हैं। यह ब्रह्मरंध से अमृत टपकते रहने जैसा है।
- इसलिए शिवलिंग के हर भाग पर वे फूल अर्पित करें तो उक्त देवी और देवताओं को पसंद है और उन सभी स्थानों की भी पूजा करें।
- सबसे पहले शिवलिंग का जलाभिषेक करें।
- इसके बाद धूप दीप प्रज्वलित करें।
- इसके बाद शिवलिंग पर बेलपत्र, चंदन आदि अर्पित करें।
- फिर नाग देवता पर बेलपत्र, फूल आदि अर्पित करें।
- फिर गलंतिका पर चंदन का टीका लगाएं।
- फिर शिवलिंग के नीचे आसपास माता पार्वती की पूजा करें।
- इसके बाद सोमसूत्र के पास विराजमान अशोक सुंदरी की पूजा करें।
- इसके बाद भगवान गणेश एवं कार्तिकेय की पूजा करें।
- इसके बाद जलाधारी पर भी चंदन, फूल आदि अर्पित करें।
- शिवलिंग के आगे मध्य में और ठीक पीछे के स्थान पर भी चंदन लगाएं।
- इसके बाद नैवेद्य अर्पित करें और अंत में नंदी भगवान को चंदन का टीका लगाकर उनकी पूजा करें।
- सबसे अंत में आरती करके प्रसाद का वितरण करें।