सर्वपितृ अमावस्या पर श्राद्ध करने के 5 फायदे, पितृदोष से मिलती है मुक्ति
आश्विन माह की कृष्ण अमावस्या को सर्वपितृ मोक्ष श्राद्ध अमावस्या, 'पितृविसर्जनी अमावस्या', 'महालय समापन' या 'महालय विसर्जन' भी कहते हैं। श्राद्ध, तर्पण, पिंडदान आदि कर्म करने के बाद भोजन कराए जाने की परंपरा है। 6 अक्टूबर 2021 को सर्वपितृ अमावस्या है। आओ जानते हैं कि इस दिन क्या करने से क्या लाभ होगा।
1. शास्त्र कहते हैं कि "पुन्नामनरकात् त्रायते इति पुत्रः" जो नरक से त्राण (रक्षा) करता है वही पुत्र है। इस दिन किया गया श्राद्ध पुत्र को पितृदोषों से मुक्ति दिलाता है। अत: पूर्वजों के निमित्त शास्त्रोक्त कर्म करें जिससे उन मृत प्राणियों को परलोक अथवा अन्य लोक में भी सुख प्राप्त हो सके।
2. अगर कोई श्राद्ध तिथि में किसी कारण से श्राद्ध न कर पाया हो या फिर श्राद्ध की तिथि मालूम न हो तो सर्वपितृ श्राद्ध अमावस्या पर श्राद्ध किया जा सकता है। सर्वपितृ अमावस्या उन पितरों के लिए भी होती है जिनके बारे में आप नहीं जानते हैं। अत: सभी जाने और अनजाने पितरों हेतु इस दिन निश्चित ही श्राद्ध किया जाना चाहिए। मान्यता है कि इस दिन सभी पितर आपके द्वार पर उपस्थित हो जाते हैं। ऐसे में उचित विधि से श्राद्ध करने से सभी पितृ प्रसन्न होकर आपके जीवन में खुशियां भर देते हैं।
3. इस श्राद्ध में गोबलि, श्वानबलि, काकबलि, पिप्लपादबलि और देवादिबलि कर्म करें। अर्थात इन सभी के लिए विशेष मंत्र बोलते हुए भोजन सामग्री निकालकर उन्हें ग्रहण कराई जाती है। अंत में मछली और चींटियों के लिए भोजन सामग्री पत्ते पर निकालने के बाद ही भोजन के लिए थाली अथवा पत्ते पर ब्राह्मण हेतु भोजन परोसा जाता है। इस दिन सभी को अच्छे से पेटभर भोजन खिलाकर दक्षिणा दी जाती है। ऐसा करने से आपके जीवन के संकट दूर होते हैं, कर्ज उतर जाता है, कोई रोग हो तो वह ठीक हो जाता है और घर में शांति, सुख और समृद्धि का वास होता है।
4. सर्वपितृ अमावस्या के दिन पितरों की शांति के लिए और उनका आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए गीता के सातवें अध्याय का पाठ करने का विधान भी है। सर्वपितृ अमावस्या पर पीपल की सेवा और पूजा करने से पितृ प्रसन्न होते हैं। स्टील के लोटे में, दूध, पानी, काले तिल, शहद और जौ मिला लें और पीपल की जड़ में अर्पित कर दें। ऐसा करने से भगवान विष्णु और श्रीकृष्ण प्रसन्न होते हैं।
5. इस दिन शास्त्रों में मृत्यु के बाद और्ध्वदैहिक संस्कार, पिण्डदान, तर्पण, श्राद्ध, एकादशाह, सपिण्डीकरण, अशौचादि निर्णय, कर्म विपाक आदि के द्वारा पापों के विधान का प्रायश्चित कहा गया है। ऐसा करने से अगले पिछले सभी जन्मों के पाप कट जाते हैं और व्यक्ति मोक्ष पाता है।