भोपाल। कहते हैं कि मध्यप्रदेश की प्राचीन नगरी भोपाल को पूर्व में भोजपाल कहा जाता था। राजा भोज ने इस नगरी में देश के सबसे बड़े तालाब का निर्माण कराया था। राजा भोज ने ही भोजपर में विशाल सरोवर का निर्माण कराया था। उन्होंने ही भोजपुर में विश्वप्रसिद्ध शिव मंदिरों का निर्माण करवाया था। लेकिन पिछले वर्ष ही भोपाल और भोजपुर के बारे में एक रहस्य का खुलासा हुआ है। यह खुलासा सैटेलाइट के चित्र को देखने के बाद हुआ। हालांकि यह रहस्य अभी भी बरकरार है।
शोधकर्ताओं के अनुसार भोपाल के पास एक ओम वैली है जिसके केंद्र में भोजपुर बसा हुआ है। भोपाल से लगभग 30 किमी दूर रायसेन जिले में स्थित है भोजपुर। इसी ओम वैली के एक सिरे पर भोपाल, दूसरे पर दौलतपुर और कालापानी बसा हुआ है जबकि इसी ओम वैली के अन्य हिस्सों पर बंछोद, चिकलोड, आशापुरी, गौहरगंज, तमोट आदि कस्बे बसे हुए हैं।
गुगल अर्थ या गुगल मैप में जाकर भोजपुर सर्च करें और फिर इसके आसपास बसी पहाड़ियों को देखेंगे तो आपको ओम की आकृति नजर आएगी। कहते हैं कि मानसून में जब चारों और हरियाली छा जाती है, जलाशाय पानी से भर जाते हैं, तभी यह ओम स्पष्ट रूप से उभर कर सामने आता है। कहते हैं कि मध्यप्रदेश में ओंकारेश्वर ज्योर्तिलिंग के पास भी ऐसी ही प्राकृतिक ओम वैली दूर आसमान से दिखाई देती है।
वैज्ञानिकों की नजर में यह ओम वैली है। इसके सैटेलाइट डाटा केलिबरेशन और वैलिडेशन का काम मप्र विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद को मिला है। परिषद की ताजा सैटेलाइट इमेज से 'ॐ' वैली के आसपास पुराने भोपाल की बसाहट और एकदम केंद्र में भोजपुर के मंदिर की स्थिति स्पष्ट देखी जा सकती है। परिषद के वैज्ञानिक डॉ. जीडी बैरागी अनुसार डाटा केलिबरेशन और वैलिडेशन के लिए हमें ठीक उस वक्त ओम वैली का ग्राउंड डाटा लेना होता है, जिस समय सैटेलाइट (रिसोर्स सेट-2) शहर के ऊपर से गुजरे। यह सैटेलाइट 24 दिनों के अंतराल पर भोपाल के ऊपर से गुजरता है। इससे गेहूं की खेती वाली जमीन की तस्वीरें ली जाती हैं।
आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया (एएसआई) के लिए भोजपुर मंदिर का इंटरप्रेटेशन सेंटर तैयार करने वाली आर्कियोलॉजिस्ट पूजा सक्सेना के अनुसार ओम की संरचना और शिव मंदिर का रिश्ता पुराना है। देश में जहां कहीं भी शिव मंदिर बने हैं, उनके आसपास के ओम की संरचना जरूरी होती है। इसका उदहारण है ओंकारेश्वर का शिव मंदिर। परमार राजा भोज के समय में ग्राउंड मैपिंग किस तरह से होती थी इसके अभी तक कोई लिखित साक्ष्य तो नहीं है, लेकिन यह शोध का विषय जरूर है।
भोज के निर्माण कार्य : मध्यप्रदेश के सांस्कृतिक गौरव के जो स्मारक हमारे पास हैं, उनमें से अधिकांश राजा भोज की देन हैं, चाहे विश्वप्रसिद्ध भोजपुर मंदिर हो या विश्वभर के शिवभक्तों के श्रद्धा के केंद्र उज्जैन स्थित महाकालेश्वर मंदिर, धार की भोजशाला हो या भोपाल का विशाल तालाब- ये सभी राजा भोज के सृजनशील व्यक्तित्व की देन हैं।
राजा भोज नदियों को चैनलाइज या जोड़ने के कार्य के लिए भी पहचाने जाते हैं। आज उनके द्वारा खोदी गई नहरें और जोड़ी गई नदियों के कारण ही नदियों के कंजर्व वाटर का लाभ आम लोगों को मिल रहा है। भोपाल शहर का बड़ा तालाब इसका उदाहरण है। भोज ने भोजपुर में एक विशाल सरोवर का निर्माण कराया था, जिसका क्षेत्रफल 250 वर्ग मील से भी अधिक विस्तृत था। यह सरोवर पन्द्रहवीं शताब्दी तक विद्यमान था, जब उसके तटबन्धों को कुछ स्थानीय शासकों ने काट दिया।
उन्होंने जहां भोज नगरी (वर्तमान भोपाल) की स्थापना की वहीं धार, उज्जैन और विदिशा जैसी प्रसिद्ध नगरियों को नया स्वरूप दिया। उन्होंने केदारनाथ, रामेश्वरम, सोमनाथ, मुण्डीर आदि मंदिर भी बनवाए, जो हमारी समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर हैं।
राजा भोज ने शिव मंदिरों के साथ ही सरस्वती मंदिरों का भी निर्माण किया। राजा भोज ने धार, मांडव तथा उज्जैन में 'सरस्वतीकण्ठभरण' नामक भवन बनवाए थे जिसमें धार में 'सरस्वती मंदिर' सर्वाधिक महत्वपूर्ण है। एक अंग्रेज अधिकारी सीई लुआर्ड ने 1908 के गजट में धार के सरस्वती मंदिर का नाम 'भोजशाला' लिखा था। पहले इस मंदिर में मां वाग्देवी की मूर्ति होती थी। मुगलकाल में मंदिर परिसर में मस्जिद बना देने के कारण यह मूर्ति अब ब्रिटेन के म्यूजियम में रखी है। (एजेंसी)