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Last Updated : गुरुवार, 28 नवंबर 2024 (18:54 IST)

उदयपुर सिटी पैलेस में जिस धूणी-दर्शन को लेकर मेवाड़ राजपरिवार के बीच विवाद हुआ, जानिए उसका इतिहास क्या है

महाराणा प्रताप ने शुरू की थी धूणी दर्शन की परंपरा, उदयपुर सिटी पैलेस के हैं अंदर

उदयपुर सिटी पैलेस में जिस धूणी-दर्शन को लेकर मेवाड़ राजपरिवार के बीच विवाद हुआ, जानिए उसका इतिहास क्या है - History of Dhuni Darshan located in Udaipur City Palace
Dhuni darshan udaipur: उदयपुर के सिटी पैलेस में स्थित धूणी का गहरा ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व है। कहा जाता है कि 1553 ईस्वी में महाराणा उदय सिंह को चित्तौड़गढ़ में हुए युद्धों के कारण नई राजधानी की आवश्यकता पड़ी। उन्हें वर्तमान उदयपुर की पहाड़ियों पर साधु प्रयाग गिरि महाराज तपस्या करते मिले, जिन्होंने सिटी पैलेस की स्थापना के लिए मार्गदर्शन दिया। 

  • उदयपुर सिटी पैलेस में स्थित धूणी का इतिहास क्या है?
  • उदायपुर धूणी दर्शन की राज परंपरा क्या है?
  • क्या है उदयपुर सिटी पैलेस धूणी दर्शन का विवाद?
     
क्या है ऐतिहासिक कहानी: वर्तमान में जहां सिटी पैलेस हैं, वहां की पहाड़ियां उदय सिंह को सही लगी। वे पहाड़ी के ऊपर पहुंचे। वहां एक साधु तपस्या करते हुए नजर आए। साधु ने उदय सिंह से पूछा कि आप किस वजह से यहां आए हैं? उदय सिंह ने बताया कि वे नई राजधानी के लिए जगह तलाशने आए हैं।
 
प्रयाग गिरि महाराज की तपस्या और धूणी की स्थापना:
वह साधु प्रयाग गिरि महाराज थे। उन्होंने उदय सिंह को आशीर्वाद दिया और बोले कि इस धूणी को बीच में लेकर राजधानी और महलों का निर्माण शुरू करो। यहां से तुम्हारी सत्ता कायम रहेगी। इसके बाद महाराणा उदय सिंह ने 1553 ईस्वी में 15 अप्रैल अक्षय तृतीया के दिन राजमहल की नींव रखी,  जिसे आज सिटी पैलेस के नाम से जाना जाता है।
 
कैसे हुई सिटी पैलेस की स्थापना?
चित्तौड़गढ़ के किले पर दो बार जौहर होने के बाद महाराणा उदय सिंह ने सुरक्षा कारणों से नई राजधानी की खोज शुरू की। 1553 ईस्वी में अक्षय तृतीया के दिन सिटी पैलेस की नींव रखी गई। साधु प्रयाग गिरि महाराज की तपस्या वाली जगह को धूणी के रूप में संरक्षित किया गया।
 
आइए जानते हैं कि जिस धूणी-दर्शन को लेकर मेवाड़ राजपरिवार के विश्वराज सिंह तथा लक्ष्यराज सिंह के बीच विवाद हुआ, उसका इतिहास क्या है और क्यों राजतिलक की रस्म के बाद धूणी के दर्शन करना जरूरी है।
 
धूणी दर्शन की परंपरा:
उल्लेखनीय है कि सिटी पैलेस के बीच में आज भी वह धूणी कायम है। मेवाड़ जन संस्थान के संयोजक प्रताप सिंह झाला 'तलावदा' बताते हैं कि सैकड़ों सालों से यह परंपरा चली आ रही है कि कोई भी राजा राजतिलक होने के बाद सबसे पहले इसी धूणी के दर्शन करता है। उसके बाद वह भगवान एकलिंग नाथ के दर्शन के लिए पहुंचता है। यह परंपरा महाराणा प्रताप के समय से शुरू हुई जो अब तक जारी है। 
 
धूणी दर्शन को लेकर विवाद:
हाल ही में 25 नवंबर 2024 को नाथद्वारा विधायक और मेवाड़ राजपरिवार के सदस्य विश्वराज सिंह मेवाड़ का चित्तौड़गढ़ में पारंपरिक राजतिलक हुआ। इसके बाद उन्होंने सिटी पैलेस में धूणी दर्शन करने की कोशिश की, लेकिन संपत्ति विवाद के कारण पैलेस के गेट बंद कर दिए गए। इस दौरान समर्थकों और पुलिस के बीच झड़प हुई, जिसमें पथराव और तोड़फोड़ हुई, जिससे माहौल तनावपूर्ण हो गया था। इससे पहले दिवंगत पूर्व सांसद और पूर्व महाराणा महेंद्र सिंह मेवाड़ का भी राजतिलक सिटी पैलेस प्रांगण में हुआ था, फिर उसी धूणी के उन्होंने दर्शन किए थे।
 
उदयपुर के पूर्व राजपरिवार में राजतिलक की रस्मों को लेकर छिड़ा विवाद अब खत्म हो गया है। परंपरानुसार राजतिलक की रस्म के बाद मेवाड़ राजपरिवार के विश्वराज सिंह ने 40 वर्षों बाद सिटी पैलेस में बुधवार शाम करीब 6:30 बजे सिटी पैलेस में धूणी दर्शन किए। विश्वराज सिंह मेवाड़ के साथ सलूंबर के देवव्रत सिंह रावत, रणधीर सिंह भींडर, बड़ी सादड़ी राज राणा समेत 5 लोग धूणी दर्शन करने पहुंचे। 
 
एकलिंगजी मंदिर के दर्शन:
धूणी दर्शन के बाद मेवाड़ के राजा भगवान एकलिंग नाथ के दर्शन करते हैं। यह परंपरा राजाओं के लिए सत्ता और शासन में स्थिरता का प्रतीक है। एकलिंगजी को मेवाड़ के संरक्षक देवता के रूप में पूजा जाता है।
 
उदयपुर स्थित सिटी पैलेस के भीतर स्थित धूणी न केवल मेवाड़ के राजवंश की परंपराओं का प्रतीक है, बल्कि यह एक आध्यात्मिक स्थल भी है, जहां सत्ता, धर्म, और इतिहास का संगम होता है। महाराणा प्रताप से लेकर वर्तमान राजपरिवार तक, यह परंपरा न केवल मेवाड़ की समृद्ध संस्कृति को जीवित रखती है बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए एक प्रेरणा का स्रोत भी है।